एक बार ब्रज की गोपियों ने माखनचोर श्रीकृष्ण को माखन चुराते हुए रंगे हाथ पकड़ने के लिए मिलकर एक युक्ति सोची। उन्होंने योजना बनाई कि किसी तरह कृष्ण की कमर में घंटी बांध दी जाए। उन्होंने इसके लिए यशोदा मैया से ही निवेदन करना उचित समझा। असल में वे यशोदा जी से जब-तब यह शिकायत करती थीं कि उनका लाल जब माखन चुराने आता है, चुपके से आता है और द्वार पर सांकल (कुंडी) लगा देता है ताकि कोई बाहर आकर उसे पकड़ न ले। यही नहीं, कोई शोर मचाए तो खूंटे से बंधे बछड़ों को खोल देता है जिससे वे गाय का सारा दूध पी जाते हैं। यशोदा मैया ने गोपियों की सारी बात सुनकर लाला कृष्ण की कमर में घंटी बांधने के लिए हामी भर दी, ताकि उसके आने का सबको पता चल सके। और एक दिन मैया ने भगवान की कमर पर घंटी बांध दी। भगवान कृष्ण ने इस पर आपत्ति भी जताई और कहा, 'मां! यह क्या करती हो, यह घंटी तो गर्मी में गर्म हो जाने पर शरीर को जलाएगी।' मैया ने उत्तर दिया, 'कुछ नहीं होगा, यह बजेगी तो मुझे पता लगता रहेगा कि तुम यहीं हो।' अब भगवान जब भी चलते, घंटी बजती। गोप-गोपियों को भी पता चल गया कि अगर घंटी की आवाज आ रही है तो वह माखनचोर कहीं आसपास ही होगा। सब सचेत हो जाते घंटी की ध्वनि सुनकर। इस कारण मित्र- मंडली को तो माखन के लाले पड़ गए। अत: सभी ने श्रीकृष्ण से कहा कि घंटी उतारो। भगवान ने कहा कि मां ने बांधी है, कैसे खोलूं? फिर खुद ही यह सुझाव
भी दिया कि ऐसा करते हैं कि जब कहीं माखन
चुराने जाएंगे, तो मैं घंटी को हाथ से पकड़ लूंगा ताकि वह बजे ही नहीं। सबने सहमति में सिर हिला दिया। अगले दिन जब घर से निकले तो भगवान श्रीकृष्ण ने घंटी को पकड़ लिया। मित्र- मंडली सहित चुपचाप गोपी के घर में घुसे। देखा माखन तो छींके पर रखा है। भगवान ने घंटी से कहा कि देखो मैं तो माखन मित्रों को, बंदरों को खिलाऊंगा, अत: बजना नहीं। मित्रों ने आसन बनाया, फिर उनके ऊपर छोटा आसन, फिर उस पर चढे़ श्रीकृष्ण। घंटी नहीं बजी। श्रीकृष्ण ने छींके पर रखे मटके में हाथ डाला, घंटी फिर भी नहीं बजी। उन्हें
तसल्ली हुई की घंटी उनकी बात मान रही है।
अब क्या था, खुले दिल से बंदरों को माखन लुटाने लगे। घंटी फिर भी नहीं बजी। फिर मित्रों की बारी आई। पहले माखन का एक लोंदा धीरे से उछाला, जब घंटी नहीं बजी तो बेधड़क होकर माखन मित्रों की ओर उछालने लगे। घंटी नहीं बजी। इतना कुछ हुआ, पर घंटी नहीं बजी। अब माखन को देखकर श्रीकृष्ण के मन भी लालच आने लगा। घंटी के न बजनेे से मन आश्वस्त था। अत: निश्चिंत होकर माखन को उंगली के ऊपर लगाया और मुंह में रखा। माखन जैसे ही मुख में गया, घंटी बजने लगी।
घंटी बजने की आवाज सुनकर सभी अवाक रह गए। जिसे जिधर समझ आया, उधर भागने लगा। एक अधेड़ उम्र गोपी ने शीघ्रता से आकर कन्हैया को पकड़ लिया और प्रसन्न होकर कहने लगी, 'लाला! आज पकड़ा गया, आज तुझे मैं यशोदा के पास ले जाऊंगी और बताऊंगी तेरी करतूत।' बड़ी अनुनय-विनय के बाद भी जब गोपी ने उन्हें नहीं छोड़ा, तो श्रीकृष्ण ने गोपी से कहा,' ठीक है, ले जाना, पर इससे पहले मुझे घंटी से कुछ पूछने दो।' कन्हैया ने घंटी से पूछा, 'इतनी देर मित्रों को माखन खिलाया, तुम नहीं बजी, पर मेरे खाते ही बजने लगी। मैंने मना किया था ना।' घंटी ने कहा, 'आपका आदेश सिर आंखों पर। आप ही का आदेश शास्त्रों की वाणी है। और शास्त्रों के अनुसार जब भी आपको भोग लगता है, घंटी बजती है। घंटी बजे बिना भोग ही नहीं लगता। अगर मैं नहीं बजती जो आपकी वाणी झूठी हो जाती। इसीलिए मैं आपके द्वारा माखन का भोग लगाते ही बज
Friday, January 1, 2016
घंटी
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