एक ऋषी रोज लोटा मांजते थे, एक शिष्य ने कहा के लोटे को रोज़ मांजने की क्या जरूरत है? सप्ताह में एक बार मांज लें, ऋषी ने कहा -बात तो सही है और उसके बाद उन्होंने उसे नही मांजा। उस लोटे की चमक फीकी पड़ने लगी, सप्ताह बाद ऋषी ने शिष्य को कहा कि लोटे को साफ कर दो। शिष्य लोटे को बहुत देर मांजने के बाद भी पहले वाली चमक नहीं ला सका। फिर और मांजा, तब जाकर लोटा कुछ चमका, ऋषी बोले- लोटे से सीखो, जब तक इसे रोज मांजा जाता रहा, यह रोज चमकता रहा। ऐसे ही साधक होता है अगर वह रोज मन को साफ न करे तो मन संसारी विचारो से अपनी चमक खो देता है, इसको रोज ध्यान से चमकाना चाहिए। यदि एक दिन भी भजन सिमरन का अभ्यास छोड़ा तो चमक फीकी पड़ जाएगी.
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