Wednesday, June 15, 2016

दर्शन

क जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे। एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था।
एक दिन किरात संत से बोला की मैं तो मृग का शिकार करता हूँ,आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.? संत बोले - श्री कृष्ण का, और रोने लगे। तब किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ? मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।
संत ने भगवान का स्वरुप बताया, कि वो सांवला है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है। किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी नही पियूँगा।
फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया। 3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते भगवान को दया आ गयी वो बांसुरी बजाते आ गए, खुद ही जाल में फंस गए। किरात चिलाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया। अच्छा बचचू... 3 दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो.? कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाला और संत के पास ले गया।
बाबा आपका शिकार लाया हुँ, बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं। संत चरणों में गिर पड़े फिर ठाकुर से बोले - मैंने बचपन से घर बार छोडा आप नही मिले और इसे 3 दिन में मिल गए ऐसा क्यों..?
भगवान बोले - इसने तुम्हारा आश्रय लिया इसलिए इसे 3 दिन में दर्शन हो गए। अर्थात भगवान पहले उस पर कृपा करते हैं जो उनके दासों के चरण पकडे होता है, किरात को पता भी नहीं था की भगवान कौन हैं। पर संत को रोज़ प्रणाम करता था। संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि 3 दिन में ही ठाकुर मिल गए ।

संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान
ज्यो ज्यो पग आगे बढे कोटिन्ह यज्ञ समान

बोलो राधा रास बिहारी की जय


Contributed By
Sh Vineet ji

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