एक बार श्री कृष्ण से देव ऋषि नारद ने पूछा की आप सदा यह क्यों कहते है की गोपिया ही आप से ज्यादा प्रेम करती है आप की रानियों की अपेक्षा । श्री कृष्ण ने कहा कीमैं इस का उत्तर अवश्य दूंगा परंतु पहले मेरे लिए औषधि ले कर आओ क्यों की मुझे सिर में पीड़ा हो रही है।नारद जी समझे नहीं। श्री कृष्ण ने कहा की जो प्राणी संसार में मुझ से सबसे अधिक प्रेम करता हो उस के चरणों की धुल मुझे ला दो वही मैं औषधि के रूप में प्रयोग करूंगा।इतना सुनते ही नारद महल में रानियों के पास गए और चरण धुल मांगी श्री कृष्ण के लिए परंतु पाप होने के भय से किसी भी रानी ने अपने चरणों को धुल नहीं दी क्योंकि उन्हें भय सताने लगा की यदि श्री कृष्ण ने अपने माथे पर चरण रज का प्रयोग किया तो रानियों को नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी। नारद अब गोपियो के पास गए और श्री कृष्ण की पीड़ा मुक्ति के लिए गोपियो से उनकी चरण धूलि मांगी।जैसे हीगोपियो ने यह सुना तो वो व्याकुल हो गयी।और सभी अपने चरणों की भूल देने के लिए तुरंत तैयार हो गयी। नारद जी ने कहा की क्यों उन्हें इस कार्य के लिए नर्क जाने का भय नहीं है ?गोपियो ने कहा यदि हमारे चरणों की धुल श्री कृष्ण के माथे पर लगने से उन की पीड़ा कम होती है तो हम हज़ारो बार नर्क जाने के लिए तैयार है। और तुरंत सभी ने अपने पैरो की धुल नारद जी को दे दी। यह देख नारद जी के नेत्र आंसुओ से भर गए और समझ गए की सच्चा प्रेम तो गोपियो का ही है।प्रेम और भक्ति में सौदा नहीं होता।
Edited and compiled by Smt Kanchan ji
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