यह प्रकृति का नियम है कि जिनका जन्म होता है उन्हें एक दिन मरना भी होगा। अगर मुक्ति नहीं मिली तो वापस पृथ्वी पर आकर अपने कर्मों का फल फिर से भोगना पड़ेगा। इस तरह जीवन और मृत्यु का सिलसिला चलता रहता है लेकिन जीवन और मृत्यु के बीच में प्राण कहां रहता है यह जानने की चाहत हर व्यक्ति की होती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इसे जानना भी बहुत आसान है। जब व्यक्ति का जन्म होता है तब पूर्व जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक की सभी स्थितियों को भगवान ग्रहों एवं राशि के माध्यम से जन्मकुण्डली में निर्धारित कर देते हैं।
ज्योतिष में मरणोपरांत पुर्नजन्म एवं परलोक
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जीवात्मा एक देह से दूसरी देह में जन्म लेती है. शरीर का नाश होता है, आत्मा का नहीं. पुराणों के अनुसार मनुष्य पाप और पुण्य का फल भोगने के लिए ही पुनर्जन्म लेता है. पुराणों में भी भगवान विष्णु के दस मुखय अवतारों (पुनर्जन्म) की धारणा को स्वीकारा गया है. महर्षि पराशर के अनुसार सूर्य से राम, चंद्रमा से कृष्ण, मंगल से नरसिंह, बुध से भगवान बुद्ध, गुरु से वामन, शुक्र से परशुराम, शनि से कूर्म, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुए हैं. भगवान गौतम बुद्ध के बारे में कहा गया है कि उन्हें अपने पूर्व के 5000 जन्मों की स्मृति थी. मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार 84 लाख योनीयों में से किसी एक योनी में जन्म लेता है. मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि मैं पूर्व जन्म में कौन था, किस योनी में था और कहां से आया हूं? इन सब प्रश्नों के उत्तर भारतीय ज्योतिष के द्वारा संभव है. जन्म कुंडली का पंचम भाव, पंचम भाव का स्वामी एवं पंचम भाव स्थित ग्रह व सूर्य और चंद्रमा में जो ग्रह बली हो उसकी द्रेष्काण में स्थिति, पुर्नजन्म के बारे में बताती है. महर्षि पराशर के ग्रंथ बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्मकालिक सूर्य और चंद्रमा में से जो बली हो, वह ग्रह जिस ग्रह के द्रेष्काण में स्थित हो, उस ग्रह के अनुसार जातक का संबंध उस लोक से था. कुंडली के पंचम भाव के स्वामी ग्रह से जातक के पूर्वजन्म के निवास का पता चलता है.
पूर्नजन्म में जातक की दिशा : जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित राशि के अनुसार जातक के पूर्वजन्म की दिशा का ज्ञान होता है.
पूर्नजन्म में जातक की जाति : जन्म कुंडली में पंचमेश ग्रह की जो जाति है, वही पूर्व जन्म में जातक की जाति होती है.
पूर्नजन्म के संकेत : मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं. इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है. मृत्यु के 13 दिन बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है. यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है. यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो, द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से दृष्टि होने पर मोक्ष प्राप्ति का योग होता है. यदि बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो, तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है. जन्म कुंडली में गुरु और केतु का संबंध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
जन्मपत्रिका और प्रेत आत्माओं का गहरा सम्बन्ध है। पत्रिाका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति आत्माओं का सम्बन्ध पूर्व कर्म के कर्मो से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाती है। शनि के पहे घर या बाद के घर में राहू की उपस्थिति या दोनों की युति और साथ में गुरु होने की दृष्टि या प्रभाव जातक पर प्रेत आत्माओं के प्रभाव को बढ़ा देता है।
गुरु, शनि, राहु किस प्रकार जन्म पत्रिाका को प्रभावित करते है, कुछ उदाहरण से देखें :-
1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्र्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति कों अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।
2. दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।
3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।
4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करना चाहिए।
5. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।
6. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रळा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्टध्प्रवृत्त
ि के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं ।
7. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्रा मंत्रा गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।
8. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।
अब शनि का प्रेतात्माओं पूर्वजों से सम्बन्ध देखिए :-
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1. शनि का लग्न या प्रथम स्थान पर होना दर्शाता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं जड़ी-बुटी, गूढ़विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसे व्यक्ति को अच्छी अदृश्य आत्माएं सहायता करती है। इनका बचपन बीमारी या आर्थिक परेशानीपूर्ण रहता है। ये ऐसे मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेत आत्माओं का निवास रहता हैं। उनकी पूजा अर्चना करने से लाभ मिता हैं।
2. शनि दूसरे स्थान पर हो तो माना जाता है। कि ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने या कष्ट देने से उनकी बददुआ के कारण आर्थिक, शारीरिक परिवारिक परेशानियां भोगता है। राहु का सम्बन्ध होने पर निद्रारोग, डऱावने स्वप्न आते हैं या किसी प्रेत आत्मा की छाया उदृश्य रुप से प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान रहते हैं।
3. शनि या राहु तीसरे या छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती है। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीडि़त पाये जाते हैं।
4. चौथे स्थान पर शनि या राहु पूर्वजों का सर्पयोनी में होना दर्शाता है। सर्प की आकृति या सर्प से डर लगता है। इन्हें जानवर या सर्प की सेवा करने से लाभ होता है। पेट सम्बन्धी बीमारी के इलाज से सफलता मिलती है।
5. पॉचवें स्थान पर शनि या राहु की उपस्थिति पूर्व जन्म में किसी को घातक हथियार से तकलीफ पहुचाने के कारण मानी जाती है। इन्हें सन्तान संबंधी कष्ट उठाने पड़ते हैं। पेट की बीमारी, संतान देर से होना इत्यादि परेशानियॉ रहती हैं।
6. सातवें स्थान पर शनि या राहू होने पर पूर्व जन्म संबंधी दोष के कारण ऑख, शारीरिक कष्ट, परिवारिक सुख में कमी महसूस करते हैं । धार्मिक प्रवृत्ति और अपने इष्ट की पूजा करने से लाभ होता है।
7. आठवें स्थान पर शनि या राहु दर्शाता है कि पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति पर तंत्रा-मंत्रा का गलत उपयोग करने से अकारण भय से ग्रसित रहता हैं। इन्हें सर्प चोर मुर्दों से भय बना रहता हैं। इन्हें दूध का दान करने से लाभ होता है।
8. नवें स्थान पर शनि पूर्व जन्म में दूसरे व्यक्तियों की उन्नति में बाधा पहुचाने का दोष दर्शाता है। अतरू ऐसे व्यक्ति नौकरी में विशेष उन्नति नहीं कर पाते हैं।
9. शनि का बारहवें स्थान पर होना सर्प के आशीर्वाद या दोष के कारण आर्थिक लाभ या नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति ने सर्पाकार चांदी की अंगुठी धारण करनी चाहिए ऐसे ोग सर्प की पूजा करने से लाभान्वित होते हैं। भगवान शंकर पर दूध पानी चढ़ाने से भी लाभ मिलता है।
10. जन्म पत्रिका के किसी भी घर में राहु और शनि की युति है ऐसा व्यक्ति बाहर की हवाओं से पीडि़त रहता है। इनके शरीर में हमेंशा भारीपन रहता है, पूजा अर्चना के वक्त अबासी आना आलसी प्रवृत्ती, क्रोधी होने से दोष पाया जाते हैं।
व्यक्ति नियमित रुप से प्राणायाम करें और गाय जानवरों की सेवा करे तो इन सब दोषों से राहत पा सकता ह
ज्योतिष में मरणोपरांत पुर्नजन्म एवं परलोक
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जीवात्मा एक देह से दूसरी देह में जन्म लेती है. शरीर का नाश होता है, आत्मा का नहीं. पुराणों के अनुसार मनुष्य पाप और पुण्य का फल भोगने के लिए ही पुनर्जन्म लेता है. पुराणों में भी भगवान विष्णु के दस मुखय अवतारों (पुनर्जन्म) की धारणा को स्वीकारा गया है. महर्षि पराशर के अनुसार सूर्य से राम, चंद्रमा से कृष्ण, मंगल से नरसिंह, बुध से भगवान बुद्ध, गुरु से वामन, शुक्र से परशुराम, शनि से कूर्म, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुए हैं. भगवान गौतम बुद्ध के बारे में कहा गया है कि उन्हें अपने पूर्व के 5000 जन्मों की स्मृति थी. मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार 84 लाख योनीयों में से किसी एक योनी में जन्म लेता है. मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि मैं पूर्व जन्म में कौन था, किस योनी में था और कहां से आया हूं? इन सब प्रश्नों के उत्तर भारतीय ज्योतिष के द्वारा संभव है. जन्म कुंडली का पंचम भाव, पंचम भाव का स्वामी एवं पंचम भाव स्थित ग्रह व सूर्य और चंद्रमा में जो ग्रह बली हो उसकी द्रेष्काण में स्थिति, पुर्नजन्म के बारे में बताती है. महर्षि पराशर के ग्रंथ बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्मकालिक सूर्य और चंद्रमा में से जो बली हो, वह ग्रह जिस ग्रह के द्रेष्काण में स्थित हो, उस ग्रह के अनुसार जातक का संबंध उस लोक से था. कुंडली के पंचम भाव के स्वामी ग्रह से जातक के पूर्वजन्म के निवास का पता चलता है.
पूर्नजन्म में जातक की दिशा : जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित राशि के अनुसार जातक के पूर्वजन्म की दिशा का ज्ञान होता है.
पूर्नजन्म में जातक की जाति : जन्म कुंडली में पंचमेश ग्रह की जो जाति है, वही पूर्व जन्म में जातक की जाति होती है.
पूर्नजन्म के संकेत : मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं. इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है. मृत्यु के 13 दिन बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है. यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है. यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो, द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से दृष्टि होने पर मोक्ष प्राप्ति का योग होता है. यदि बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो, तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है. जन्म कुंडली में गुरु और केतु का संबंध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
जन्मपत्रिका और प्रेत आत्माओं का गहरा सम्बन्ध है। पत्रिाका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति आत्माओं का सम्बन्ध पूर्व कर्म के कर्मो से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाती है। शनि के पहे घर या बाद के घर में राहू की उपस्थिति या दोनों की युति और साथ में गुरु होने की दृष्टि या प्रभाव जातक पर प्रेत आत्माओं के प्रभाव को बढ़ा देता है।
गुरु, शनि, राहु किस प्रकार जन्म पत्रिाका को प्रभावित करते है, कुछ उदाहरण से देखें :-
1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्र्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति कों अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।
2. दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।
3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।
4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करना चाहिए।
5. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।
6. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रळा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्टध्प्रवृत्त
ि के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं ।
7. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्रा मंत्रा गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।
8. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।
अब शनि का प्रेतात्माओं पूर्वजों से सम्बन्ध देखिए :-
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1. शनि का लग्न या प्रथम स्थान पर होना दर्शाता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं जड़ी-बुटी, गूढ़विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसे व्यक्ति को अच्छी अदृश्य आत्माएं सहायता करती है। इनका बचपन बीमारी या आर्थिक परेशानीपूर्ण रहता है। ये ऐसे मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेत आत्माओं का निवास रहता हैं। उनकी पूजा अर्चना करने से लाभ मिता हैं।
2. शनि दूसरे स्थान पर हो तो माना जाता है। कि ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने या कष्ट देने से उनकी बददुआ के कारण आर्थिक, शारीरिक परिवारिक परेशानियां भोगता है। राहु का सम्बन्ध होने पर निद्रारोग, डऱावने स्वप्न आते हैं या किसी प्रेत आत्मा की छाया उदृश्य रुप से प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान रहते हैं।
3. शनि या राहु तीसरे या छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती है। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीडि़त पाये जाते हैं।
4. चौथे स्थान पर शनि या राहु पूर्वजों का सर्पयोनी में होना दर्शाता है। सर्प की आकृति या सर्प से डर लगता है। इन्हें जानवर या सर्प की सेवा करने से लाभ होता है। पेट सम्बन्धी बीमारी के इलाज से सफलता मिलती है।
5. पॉचवें स्थान पर शनि या राहु की उपस्थिति पूर्व जन्म में किसी को घातक हथियार से तकलीफ पहुचाने के कारण मानी जाती है। इन्हें सन्तान संबंधी कष्ट उठाने पड़ते हैं। पेट की बीमारी, संतान देर से होना इत्यादि परेशानियॉ रहती हैं।
6. सातवें स्थान पर शनि या राहू होने पर पूर्व जन्म संबंधी दोष के कारण ऑख, शारीरिक कष्ट, परिवारिक सुख में कमी महसूस करते हैं । धार्मिक प्रवृत्ति और अपने इष्ट की पूजा करने से लाभ होता है।
7. आठवें स्थान पर शनि या राहु दर्शाता है कि पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति पर तंत्रा-मंत्रा का गलत उपयोग करने से अकारण भय से ग्रसित रहता हैं। इन्हें सर्प चोर मुर्दों से भय बना रहता हैं। इन्हें दूध का दान करने से लाभ होता है।
8. नवें स्थान पर शनि पूर्व जन्म में दूसरे व्यक्तियों की उन्नति में बाधा पहुचाने का दोष दर्शाता है। अतरू ऐसे व्यक्ति नौकरी में विशेष उन्नति नहीं कर पाते हैं।
9. शनि का बारहवें स्थान पर होना सर्प के आशीर्वाद या दोष के कारण आर्थिक लाभ या नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति ने सर्पाकार चांदी की अंगुठी धारण करनी चाहिए ऐसे ोग सर्प की पूजा करने से लाभान्वित होते हैं। भगवान शंकर पर दूध पानी चढ़ाने से भी लाभ मिलता है।
10. जन्म पत्रिका के किसी भी घर में राहु और शनि की युति है ऐसा व्यक्ति बाहर की हवाओं से पीडि़त रहता है। इनके शरीर में हमेंशा भारीपन रहता है, पूजा अर्चना के वक्त अबासी आना आलसी प्रवृत्ती, क्रोधी होने से दोष पाया जाते हैं।
व्यक्ति नियमित रुप से प्राणायाम करें और गाय जानवरों की सेवा करे तो इन सब दोषों से राहत पा सकता ह
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Khub Khub Dhanyvaad 🙏
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