एक सेठजी थे, उनके घर उनके गुरूजी आये जो उच्चकोटि के संत थे।
सेठजी उन्हें अपना घर दिखाने लगा, संत महाराज जी ने कहा:- ये गाडी किसकी है?
सेठजी बोले:- ठाकुर जी की।
गुरूजी ने पुछा:- ये किसके बच्चे हैं?
सेठजी बोले:- ठाकुर जी के।
गुरुजी बोले:- ये सब लोग कौन है?
सेठजी बोले:- ठाकुर जी के।
जब सारा घर देख लिया तो ऊपर गए जिधर मंदिर था।
महाराज जी ने कहा:- ये मंदिर किसका है?
सेठ जी बोले:- ठाकुर जी का।
गुरुजी ने पुछा:- और सोने-चाँदी के बर्तन किसके है?
सेठजी:- ठाकुर जी के।
गुरुजी:- और वस्त्र किसके है?
सेठजी:- ठाकुर जी के।
और सबसे आखिर में संत ने ठाकुरजी की और संकेत करते हुआ पूछा:- ये किसके है?
सेठजी ने बड़े ही भावपूर्वक बोला:- गुरुजी ये तो केवल मेरे है, मेरे हैं, केवल मेरे हैं….
अर्पण मेरे हैं सदा तुममें जीवन-प्राण।
तुम्हीं एक आधार हो, तुम्हीं परम कल्याण॥
तुम ही मेरी परम गति, प्रीति बिना परिमाण।
मिलो तुरत, मेरा करो विरह-कष्ट से त्राण॥
Contributed by
Sh Sanjeev ji
No comments:
Post a Comment