महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारिका गए. इस बार रथ अर्जुन चलाकर ले गए. द्वारिका पहुंचकर अर्जुन बहुत थक गए थे इसलिए विश्राम करन अतिथिभवन में चले गए. संध्या को रूक्मिणीजी ने श्रीकृष्ण को भोजन परोसा. प्रभु रूक्मिणीजी से बोले- प्रिय घर में अतिथि आए हुए हैं. हम अतिथि को भोजन कराए बिना भोजन कैसे ग्रहण कर लूं. रूक्मिणीजी ने कहा- भगवन आप भोजन आरंभ तो करिए मैं अर्जुन को अभी बुलाकर आती हूं. रूक्मिणीजी जब अतिथिकक्ष में पहुंची तो वहां अर्जुन गहरी नींद में सो रहे थे. रूक्मिणीजी यह देखकर आश्चर्य में थीं कि नींद में सोए अर्जुन के रोम-रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि निकल रही है. यह देख रूक्मिणी अर्जुन को जगाना भूल आनंद में डूब गईं और धीमे-धीमे ताली बजाने लगीं. प्रभु के दर्शन के लिए नारदजी पहुंचे तो देखा प्रभु के सामने भोग की थाली रखी है और वह प्रतीक्षा में बैठे हैं. नारदजी ने श्रीकृष्ण से कहा- भगवन भोग ठण्डा हो रहा है, इसे ग्रहण क्यों नहीं करते. श्रीकृष्ण बोले- नारदजी, बिना अतिथि को भोजन कराए कैसे ग्रहण करूं. नारदजी ने सोचा कि प्रभु को अतिथि की प्रतीक्षा में विलंब हो रहा है. इसलिए बोले- प्रभु मैं स्वयं बुला लाता हूं आपके अतिथि को. नारदजी भी अतिथिशाला की ओर चल पड़े. वहां पहुंचे तो देखा अर्जुन सो रहे हैं. उनके रोम- रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि सुनकर देवी रूक्मिणी आनंद विभोर ताली बजा रही हैं. प्रभुनाम के रस में विभोर नारदजी ने वीणा बजानी शुरू कर दी. सत्यभामाजी प्रभु के पास पहुंची. प्रभु तो प्रतीक्षा में बैठे हैं. सत्यभामाजी ने कहा- प्रभु भोग ठण्डा हो रहा है प्रारंभ तो करिए. भगवान ने फिर से वही बात कही- हम अतिथि के बिना भोजन नहीं कर सकते. अब सत्यभामाजी अतिथि को बुलाने के लिए चलीं. वहां पहुंचकर सोए हुए अर्जुन के रोम-रोम द्वारा किए जा रहे श्रीकृष्ण नाम के कीर्तन, रूक्मिणीजी की ताली, नारदजी की वीणा सुनी तो वह भी भूल गईं कि आखिर किस लिए आई थीं. सत्यभामाजी ने तो आनंद में भरकर नाचना शुरू कर दिया. प्रभु प्रतीक्षा में ही रहे. जो जाता वह लौट कर ही न आता. प्रभु को अर्जुन की चिंता हुई सो वह स्वयं चले. प्रभु पहुंचे अतिथिशाला तो देखा कि स्वरलहरी चल रही है. अर्जुन निद्रावस्था में कीर्तन कर रहे हैं, रूक्मिणी जाग्रत अवस्था में उनका साथ दे रही हैं, नारद जी ने संगीत छेड़ी है तो सत्यभामा नृत्य ही कर रही हैं. यह देखकर भगवान के नेत्र सजल हो गये. प्रभु ने अर्जुन के चरण दबाना शुरू कर दिया. प्रभु के नेत्रों से प्रेमाश्रुओ की कुछ बूंदें अर्जुन के चरणों पर पड़ी तो अर्जुन वेदना से छटपटा कर उठ बैठे. जो देखा उसे देखकर हतप्रभ तो होना ही था. घबराए अर्जुन ने पूछा- प्रभु यह क्या हो रहा है भगवान बोले- अर्जुन तुमने मुझे रोम-रोम में बसा रखा है इसीलिए तो तुम मुझे सबसे अधिक प्रिय हो. गोविन्द ने अर्जुन को गले से लगा लिया. अर्जुन के नेत्रों से अश्रु की धारा फूंट रही थी. कुछ बूंदें सौभाग्य की, कुछ प्रेम की और कुछ उस अभिमान की जो भक्त को भगवान के लिए हो ही जाती है.
compiled and edited by
Smt Kanchanji
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