एक संत थे वे ठाकुर जी को बहुत मानते थे। उनका मानता था कि यदि भगवान के निकट आना है तो उनसे कोई नाता जोड़ लो, जहाँ जीवन में कमी है वही ठाकुर जी को बैठा दो, वे जरुर उस सम्बन्ध को निभायेगे। इसी तरह संत ठाकुर जी को अपना शिष्य मानते थेऔर शिष्य पुत्र के समान होता है इसलिए राधा रानी को पुत्र वधु (बहू)के रूप में देखते थे। उनका नियम था प्रति दिन मंदिर जाते और ठाकुर रुपी अपने शिष्य को अपने आशीर्वाद के रूप में अपने गले में पहनी हुई माला उतार कर ठाकुर को पहनाते थे। किन्तु उनका यह व्यवहार मंदिर के लोगो को अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने पुजारी से कहा - ये बाबा प्रति दिन मंदिर आते है और भगवान को अपनी उतारी हुई माला पहनाते है, कोई तो बाजार से खरीदकर भगवान को पहनाता है और ये अपनी पहनी हुई माला भगवान को पहनाते है। पुजारी जी को सबने भडकाया कि बाबा की माला आज भगवान को मत पहनाना। अगले दिन जैसे ही संत मंदिर आये और पुजारी जी को माला उतार कर दी तो आज पुजारी जी ने माला भगवान को पहनाने से इंकार कर दिया, और कहा यदि आपको माला पहनानी है तो बाजार से नाई माला लेकर आये ये पहनी हुई माला ठाकुर जी को नहीं पहनाएंगे। उस दिन वह संत बहुत दुःखी हुए वे बाजार गए और नई माला लेकर आये, आज संत मन में बड़े उदास थे, अब जैसे ही पुजारी जी ने वह नई माला भगवान को पहनाई तुरंत वह माला टूट कर नीचे गिर गई , उन्होंने फिर जोड़कर पहनाई, फिर टूटकर गिर पड़ी, ऐसा तीन-चार बार किया पर भगवान ने वह माला स्वीकार नहीं की, तब पुजारी जी समझ गए कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है और पुजारी जी ने संत से क्षमा माँगी।
संत राधा रानी को बहू मानते थे इसलिए जब भी मंदिर जाते पुजारी जी राधा रानी के विग्रह के आगे पर्दा कर देते थे, भाव ये होता था कि बहू ससुर के सामने सीधे कैसे आये, और बाबा केवल ठाकुर जी का ही दर्शन करते थे । जब भी संत मंदिर आते तो बाहर से ही आवाज लगाते पुजारी जी हम आ गए और पुजारी जी झट से राधा रानी के विग्रह के आगे पर्दा कर देते। एक दिन संत ने बाहर से आवाज लगायी पुजारी जी हम आ गए, उस समय पुजारी जी किसी दूसरे काम में लगे हुए थे, उन्होंने सुना नहीं, तब राधा रानी जी तुरत अपने विग्रह से बाहर आई और अपने आगे पर्दा कर दिया। जब संत मंदिर में आये, और पुजारी ने उन्हें देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ और राधा रानी के विग्रह की ओर देखा तो पर्दा लगा है। पुजारी बोले - बाबा! आज आपने आवाज तो लगायी ही नहीं ? बाबा बोले - पुजारी जी! मै तो प्रति दिन की तरह आवाज लगाने के बाद ही मंदिर में आया। तब संत समझ गए कि राधा रानी जी स्वयं आसन छोड़कर आई और उन्हें थी और उन्होंने ही अपने आगे पर्दा किया है। तब भाव से भरे उन संत को अत्यंत दुःख हुआ उन्होंने मन में सोंचा कि मेरे लिए राधा रानी को इतना कष्ट उठना पड़ा। उन्होंने मन में निश्चय किया कि अब हम मंदिर में प्रवेश ही नही करेंगे। उस दिन के बाद से संत प्रतिदिन मंदिर के सामने से निकलते और बाहर से ही आवाज लगाते अरे चेला राम तुम्हे आशीर्वाद है सुखी रहो और चले जाते।
Compiled and edited by
Smt Anuradha ji
Friday, November 6, 2015
भक्त और भगवान्
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