जब श्री राम लंका मैं विजय प्राप्त कर अयोध्या लौट रहे थे , तब उन्होंने गंध्मान पर्वत पर कुछ समय बिताया था ।परन्तु उन का मन काफी विचलित था । कारण स्पष्ट था । उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष था क्यों कि रावन एक ब्रह्मिण थाजिस का वध उन्हों ने किया था। अपने गुरुजनों से आज्ञा प्राप्त कर के श्री राम ने भगवान् शिव कि आराधना करनेका निर्णय किया । पूजा का एक विशेष मुहूर्त निकाला गया। श्री राम ने हनुमान जी को शिवलिंग लाने को कहा ।हनुमानजी बिना समय गवाए काशी की और चल पड़े । काफी समय बीत जाने के बाद जब हनुमान जी नही लौटेतब श्री राम चिंतित हो गए क्योंकि मुहूर्त का समय निकट था। तभी सीताजी ने अपने हाथ से एक शिवलिंग कानिर्माण किया गया और उस मैं प्राण प्रतिष्ठा की। इस शिवलिंग को रामलिंगम कहते हैं . इस प्रकार उस शुभ मुहूर्तमैं पूजा संपन्न हुई। कुछ देर बाद जब हनुमान जी शिवलिंग ले कर लौटे तो वोह बहुत निराश हुए की उन् का प्रयासविफल हुआ क्योंकि पूजा संपन्न हो चुकी थी । श्री राम जी हनुमान जी कि निराशा तुंरत भांप गए। उन् कि आज्ञा सेदूसरा शिवलिंग भी वहीँ स्थापित किया गया जिस का नाम विश्वलिंगम रखा गया और कहा कि आज के बाद सबसेपहले विश्वलिंगम ,
lकि पूजा होगी और उस के बाद रामलिंगम की । आज तक यह प्रथा जारी है । इस मन्दिर कीएक विशेषता और है कि यहाँ पर २२ तीर्थो का अनोखा संगम है। मन्दिर मैं प्रवेश से पहले समुद्र मैं स्नान करनाआवश्यक है जिसे "अग्नि तीरथ" कहते हैं । इस के पश्चात् मन्दिर मैं २२ कुएं हैं जिन मैं अलग अलग तीर्थो कापवित्र जल विद्यमान है। सभी कुओं मैं स्नान करने के पश्चात् ही इश्वर के दर्शन होते हैं। ऐसी अनोखी और पवित्रप्रथा संसार मैं किसी भी मन्दिर में नहीं है। निम्नलिखित २२ पवित्र तीर्थ मन्दिर मैं स्थित हैं--
1)लक्ष्मी तीर्थ 2)चक्र तीर्थ
3)शिव तीर्थ
4)शंख तीर्थ
5)यमुना तीर्थ
6)गंगा तीर्थ
7)गया तीर्थ
8)कोटि तीर्थ
9)सध्यम्रित तीर्थ
10 सर्व तीर्थ
11 चंद्र तीरथ 12) सूर्य तीर्थ
१३ब्रह्महत्यविमोचन
१४माधव तीर्थ
१५नल तीर्थ
१६ नील तीरथ
१७ गव्य
१८ गवाक्षा तीरथ
१९गंध्मान तीर्थ
२०सवित्रि तीर्थ
21 सरस्वती तीरथ
२२ गायत्री तीरथ
"अग्नि-तीर्थ"- जहाँ पर मैंने अपने पूर्वजो के लिए तर्पण किया
२२ तीर्थो का संपूर्ण स्नान-एक अद्वित्य अनुभव
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