Monday, July 13, 2009
एक अनुभव
ईश्वर के संकेत सचमुच विचित्र हैं । एक रात मुझे सपने में ईश्वर नटराज रूप में दिखे तभी से मेरे मन में एक अजीबजिज्ञासा जागृत हुई । खोज करने पर पता चला कि चिदम्बरम नामक स्थान में ईश्वर नटराज रूप में विद्यमान हैं . धीरे धीरे और खोज करने पर पता चला कि दक्षिण भारत में विभिन्न स्थानों में पञ्च-तत्त्व के रूप में भगवान् निवास करते हैं यह तत्त्व हैं आकाश रूप,वायु रूप,जल रूप,अग्नि रूप और पृथ्वी रूप। चिदम्बरम में नटराज रूप , ईश्वर के आकाश तत्व का ही रूप है . इस बात ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने निश्चय किया कि में एक दिनचिदम्बरम जरूर जाऊँगा । एक दिन सौभाग्य से मुझे मौका मिला एक अद्भुत तीरथ यात्रा करने का मौका मिला ।बड़ी बाधाओ को पार करने के बाद मैं चिदम्बरम पहुंचा । मंदिर के मुख्या द्वार पर पहुँच कर मेरे मन में बड़ी हलचलहुई. एक अजीब से घबराहट थी । ऐसा लग रहा था कि कोई यहाँ मेरा इंतज़ार कर रहा है। हम ने पूर्वी द्वार से मंदिरमैं प्रवेश किया । निगाहे कुछ ढूँढ रही थी । शायद अपनी सपने को साकार करने का समय आ गया था। कदमअचानक रूक गए आखों के ठीक सामने भगवान् नटराज मूर्ती रूप मैं विराजमान थे। आरती का समय था औरमूर्ती पूर्ण रूप में थी । सब कुछ अविश्वस्निये लग रहा था। तभी मैं गाइड के पास गया और कहा कि मैं चिदम्बरमरहस्यम देखना चाहता हूँ । वो हैरान हो गया कि मुझे कैसे पता है चिदम्बरम रहस्यम के बारे में ? मैं हिम्मत कर केमंदिर के गर्भ गृह तक गया और पंडितजी से रहस्यम के बारे में पुछा। पंडितजी ने बड़ी विचित्र मुस्कराहट के साथमुझे देखा और आगे आने को कहा और वेह बोले कि सामने वाली दीवार के बीच बने छेक में से देखो. पूरा अन्धकारथा । उन्हों ने एक काला पर्दा उठाया और दीपक के लौ से उसे प्रकाशित किया परन्तु घबराहट कि वजह से मुझे कुछस्पष्ट नहीं दिखाई दिया. मैं निराश हो गया । मैंने फिर से उनसे निवेदन किया कि मुझे दर्शन करा दें उन्हों ने बड़ीआशावादी नज़रों से मुझे देखा। उन्हों ने फिर से वही प्रक्रिया दोहराई । इस बार मैं सतर्क था । पर्दा उठते ही ईश्वरनिराकार रूप में स्पष्ट महसूस हो रहे थे । इतनी अंधेरे में भी उन पर स्वर्ण के बिलव पत्र अत्यंत शोभ्यमान प्रतीतहो रहे थे । पंडितजी ने बताया कि यही शक्ति का मूल स्तोत्र है। मैं बिलकुल स्थिर हो चुका था । ऐसा अनुभव कोबयान करने के लिए कोई भी शब्द किस्सी भी शब्दकोष मैं नहीं है। आज भी मैं उस पल को याद करता हूँ तो आँखोंसे आंसू सहसा बह जाते है और ज़बान भी लड़खडाने लगती है। इस अनुभव को वही समझ पायेगा जो प्रकृति केपञ्च तत्वों को गहरायी से जानता हो।
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