Friday, July 26, 2019

मुक्ति

नारद एक गांव के करीब से निकले। एक वृद्ध साधु ने उनसे कहा कि तुम भगवान के पास जाओ तो उनसे पूछ लेना कि मेरी मुक्ति कब तक होगी? मुझे मोक्ष कब तक मिलेगा? मुझे साधना करते बहुत समय बीत गया। नारद ने कहाः मैं जरूर पूछ लूंगा। वे आगे बढ़े तो बगल के बरगद के दरख्त के नीचे एक नया-नया फकीर जो उसी दिन फकीर हुआ था, अपना तंबूरा लेकर नाचता था, तो नारद ने उससे मजाक में पूछा, नारद ने खुद उससे पूछा, तुमको भी पूछना है क्या भगवान से कि कब तक तुम्हारी मुक्ति होगी? वह कुछ बोला नहीं।
जब वे वापस लौटे, उस वृद्ध फकीर से उन्होंने जाकर कहा कि मैंने पूछा था, भगवान बोले कि अभी तीन जन्म और लग जाएंगे। वह अपनी माला फेरता था, उसने गुस्से में माला नीचे पटक दी। उसने कहा, तीन जन्म और! यह तो बड़ा अन्याय है। यह तो हद्द हो गई। नारद आगे बढ़ गए। वह फकीर नाचता था उस वृक्ष के नीचे। उससे कहा कि सुनते हैं, आपके बाबत भी पूछा था, लेकिन बड़े दुख की बात है; उन्होंने कहा कि वह जिस दरख्त के नीचे नाचता है, उसमें जितने पत्ते हैं, उतने जन्म उसे लग जाएंगे। वह फकीर बोला, तब तो पा लिया। और वापस नाचने लगा। वह बोला, तब तो पा लिया, क्योंकि जमीन पर कितने पत्ते हैं! इतने ही पत्ते, इतने ही जन्म न? तब तो जीत ही लिया, पा ही लिया। वह वापस नाचने लगा।