एक राजा का एक विशाल फलों का बगीचा था. उसमे तरह-तरह के फल होते थे और उस बगीचा की सारी देखरेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था. वह किसान हर दिन बागीचा मैं के ताज़े फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था.
एक दिन किसान ने पेड़ो पे देखा अमरुद, बेर, और अंगूर पक कर तैयार हो रहे हैं, किसान सोचने लगा आज कोन सा फल महाराज को अर्पित करूँ, फिर उसे लगा अँगूर करने चाहिये क्योंकि वो तैयार हैं और बोहत जल्द दूसरे फलों की अपैक्षा ओह्राब भी हो जायेंगे इस लिये उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा! किसान जब राजमहल में पहुचा, राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था और नाराज भी लग रहा था किसान रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी और थोड़े दूर बेठ गया, अब राजा उसी खयालो-खयालों में टोकरी में से अंगूर उठाता एक खाता और एक खिंच कर किसान के माथे पे निशाना साधकर फेक देता।
राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था किसान कहता था, ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’ राजा फिर और जोर से अंगूर फेकता था किसान फिर वही कहता था ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’
थोड़ी देर बाद राजा को एहसास हुआ की वो क्या कर रहा है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है वो सम्भल कर बैठा , उसने किसान से कहा, मै तुझे बार-बार अंगूर मार रहा हु, और ये अंगूर तुंम्हे लग भी रहे हैं, फिर भी तुम यह बार-बार क्यों कह रहे हो की ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’
किसान ने नम्रता से बोला, महाराज, बागान में आज बेर और अमरुद भी तैयार थे पर मुझे भान हुआ क्यों न आज आपके लिये अंगूर् ले चलूं लाने को मैं अमरुद और बेर भी ला सकता था पर मैं अंगूर लाया। यदि अंगूर की जगह बेर या बड़े बड़े अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता ? इसीलिए मैं कह रहा हू की ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’!!
कथा सार--
इसी प्रकार ईशवर भी हमारी कई मुसीबतों को बोहत हल्का कर के हमे उबार लेता है पर ये तो हम ही नासुकरे हैं जो सुकर न करते हुए उसे ही गुनहगार ठहरा देते हैं, मेरे सांथ हि ऐसा क्यूँ , मेरा क्या कसूर, आज जो भी फसल हम काट रहे हैं ये दरअसल हमारी ही बोई हुई है, बोया बिज बबूल का तो आम कहाँ से होये।। और बबुल से अगर आम न मिला तो गुनहगार भी हम नहीं हैं , इसका भी दोस हम किसी और पर मढेंगे ,, कोई और न मिला तो ईशवर तो है ही ।
आज हमारे पास जो कुछ भी है अगर वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर देखेंगे तो वास्तव में हम इसके लायक भी नही हैं पर उसके बावजूद मेरे ईशवर ने मुझे जरूरत से ज़्यादा दिया है और बजाये उसका सुकर करने के हम उसे हमेसा दोस ही देते रहते हैं। पर वो तो हमारा पिता है हमारी माता है किसी भी बात का कभी बुरा नही मानता और अपनी नेमते हमपर बरसाता रहता है। अगर एक बार उसकी बख्शिसों की तरफ देखेंगे तो सारी उम्र के भी सुकराने कम पड़ेंगे।।
Contributed by
Mr Rajat ji
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