एक मुसलिम फकीर थे हाजी मोहम्मद साधु पुरुष थे । एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया है और एक चौराहे पर खड़ा है, जहां से एक रास्ता स्वर्ग को जाता है, एक नरक को; एक रास्ता पृथ्वी को जाता है, एक मोक्ष को । चौराहे पर एक देवदूत खड़ा है—एक फरिश्ता, और वह हर आदमी को उसके कर्मों के अनुसार रास्ते पर भेज रहा है ।हाजी मोहम्मद तो जरा भी घबडाया नहीं; जीवनभर साधु था । हर दिन की नमाज पांच बार पूरी पढ़ी थी । साठ बार हज की, इसलिए हाजी मोहम्मद उसका नाम हो गया । वह जाकर द्वार पर खड़ा हो गया देवदूत के सामने । देवदूत ने कहा, 'हाजी मोहम्मद! ' देवदूत ने इशारा किया, 'नरक की तरफ यह रास्ता है ।’ हाजी मोहम्मद ने कहा, ' आप समझे नहीं शायद । कुछ भूल — चूक हो रही है ।
60 बार हज किये हैं । देवदूत ने कहा, 'वह व्यर्थ गयी; क्योंकि जब भी कोई तुमसे पूछता तो तुम कहते, हाजी मोहम्मद ! तुमने उसका काफी फायदा जमीन पर ले लिया । तुम बड़े अकड़ गये उसके कारण । कुछ और किया है ?' हाजी मोहम्मद के पैर थोडे डगमगा गये । जब साठ बार की हज व्यर्थ हो गयी, तो अब आशा टूटने लगी । उसने कहा, *रोज पांच बार की नमाज पूरी—पूरी पढ़ता था ।*’ उस देवदूत ने कहा, 'वह भी व्यर्थ गयी; क्योंकि *जब कोई देखने वाला होता था तो तुम जरा थोड़ी देर तक नमाज पढ़ते थे । जब कोई भी न होता तो तुम जल्दी खत्म कर देते थे ।* *तुम्हारी नजर परमात्मा पर नहीं थी; देखने वालों पर थी ।* एक बार तुम्हारे घर कुछ लोग बाहर से आये हुए थे, तो तुम बड़ी देर तक नमाज पढ़ते रहे । *वह नमाज झूठी थी । ध्यान में परमात्मा न था, वे लोग थे ।* लोग देख रहे है तो जरा ज्यादा नमाज, ताकि पता चल जाये कि मैं धार्मिक आदमी हूं हाजी मोहम्मद; वह बेकार गयी; कुछ और किया है ?' अब तो हाजी मोहम्मद घबड़ा गया और घबड़ाहट में उसकी नींद टूट गयी । सपने के साथ जिंदगी बदल गयी । उस दिन से उसने अपने नाम के साथ हाजी बोलना बंद कर दिया । नमाज छिपकर पढ़ने लगा; किसी को पता भी न हो । गांव में खबर भी पहुंच गयी कि हाजी मोहम्मद अब धार्मिक नहीं रहा । कहते हैं कि नमाज तक बंद कर दी है ! बुढ़ापे में सठिया गया है । लेकिन उसने इसका कोई खंडन न किया । वह चोरी छिपे नमाज पढ़ता । वह नमाज सार्थक होने लगी । संतजनों कहने का भाव *सिर्फ इतना की भक्ति हो तो केवल प्रभु को रिझाने के लिए न की दुसरो को दिखाने के लिए* क्योंकी ये तो घट घट की जानता है भले बुरे की पीर पहचानता । हम लोगो को नही प्रभु को नही सतगुरु को नही बल्कि खुद को ही धोका दे रहे होते है आओ संतो कृपा करो की मनो के भाव और हमारे कर्म एकसमान हो । और एक भक्ति वाला हमारा जीवन बने किसी प्रकार का दिखावा हमारे जीवन में न हो भीतर और बहार दोनों तरफ से हम एकसमान हो इस ब्रह्म रस का आनंद प्राप्त कर पाये यही प्रार्थना दातार प्रभु के चरणो में है ।
Contributed by
Mrs Megha Gupta ji
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