एक राजा के पास कई हाथी थे!!लेकिन...
एक हाथी बहुत शक्तिशाली था!
बहुत आज्ञाकारी समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था।
बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था!और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था!!
इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था!!
समय गुजरता गया....और एक समय ऐसा भी आया!!
जब वह वृद्ध दिखने लगा...!!
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था!!
इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे...!!
एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया!!लेकिन
वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया.....!!उस हाथी ने बहुत कोशिश की........
लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।
उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है...!!
हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।
राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे...लेकिन बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग
नहि निकला.....!!
तब राजा के एक वरिष्ठ मंत्री ने बताया कि.....!!
तथागत गौतम बुद्ध मार्गक्रमण कर रहे है तो क्यो ना तथागत गौतम बुद्ध से सलाह मांगि जाये.
राजा और सारा मंत्रीमंडल तथागत गौतम बुद्ध के पास गये और अनुरोध किया कि.......
आप हमे इस बिकट परिस्थिती मे मार्गदर्शन करे....!!
तथागत गौतम बुद्ध ने सबके अनुरोध को स्वीकार किया और घटनास्थल का निरीक्षण किया और....
फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ....!!
सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि......
भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा
जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया!!
आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा!!
पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया.....!!
अब तथागत गौतम बुद्ध ने सबको स्पष्ट किया कि....
हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी!!
आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी!!
हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि....
यदि हमारे मन में एक बार उत्साह – उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता...!
जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि....... मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे!!
कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि......
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है!!
सकारात्मक सोच ही आदमी को "आदमी" बनाती है...........
Contributed by
Sh Vineet ji
No comments:
Post a Comment