Thursday, September 22, 2016

Misjudgement

  A lady in a faded grey dress and her husband, dressed in a home-spun suit walked in timidly without an appointment into the Harvard University President's outer office. The secretary could tell in a moment that such backwoods, country hicks had no business at Harvard and probably didn't even deserve to be in Harvard.

"We want to see the President "the ma n said softly.

"He'll be busy all day "the secretary snapped.

"We'll wait" the lady replied.

For hours the secretary ignored them, hoping that the couple would finally become discouraged and go away. They didn't and the secretary grew frustrated and finally decided to disturb the president..

"Maybe if you see them for a few minutes, they'll leave" she said to him. The President, stern faced and with dignity, strutted toward the couple.

The lady told him "We had a son who attended Harvard for one year. He loved Harvard. He was happy here. But about a year ago, he was accidentally killed. My husband and I would like to erect a memorial to him, somewhere on campus."

The president wasn't touched....He was shocked. "Madam "he said, gruffly, " we can't put up a statue for every person who attended Harvard and died. If we did, this place would look like a cemetery."

"Oh, no," the lady explained quickly” We don't want to erect a statue. We thought we would like to give a building to Harvard."

The president rolled his eyes. He glanced at the gingham dress and homespun suit, and then exclaimed, "A building! Do you have any earthly idea how much a building costs? We have over seven and a half million dollars in the physical buildings here at Harvard."

For a moment the lady was silent. The president was pleased. Maybe he could get rid of them now. The lady turned to her husband and said quietly, "Is that all it costs to start a university ? Why don't we just start our own?"

Her husband nodded. The president's face wilted in confusion and bewilderment. Mr. and Mrs. Leland Stanford got up and walked away, traveling to Palo Alto, California where they established the University that bears their name: Stanford University, a memorial to a son that Harvard no longer cared about.

Most of the time we judge people by their outer appearance, which can be misleading. And in this impression, we tend to treat people badly by thinking they can do nothing for us. Thus we tend to lose our potential good friends, employees or customers.

In our Life, we seldom get people with whom we want to share & grow our thought process. But because of our inner EGO we miss them forever.

Contributed by
Sh Deep ji

Wednesday, September 14, 2016

बहु की चुड़िया

मान्यता है ठाकुर जी से यदि प्रेम करना हो तो उनसे कोई न कोई सम्बन्ध स्थापित कर लो, ऐसा ही एक सम्बन्ध ठाकुर जी से जोड़ा बाबा विट्टल दास किशोरी जी ने, बाबा ठाकुर जी के अनन्य भक्त थे। बाबा हर वक्त उनकी निकुंज लीलाओं का ही स्मरण किया करते थे एवं किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर बात नहीं किया करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर तक बोलना ठाकुर जी से ध्यान हटाने के बराबर है इसलिए हमेशा आंख मूंदे श्री राधा कृष्ण की युगल छवि का ध्यान करते थे।

बाबा श्री कृष्ण भगवान को पुत्र भाव से मानते थे और हमेशा उन्हें मेरा लाला और किशोरी जी को मेरी लाडली कहकर पुकारते थे। एक दिन बाबा विट्टलदास जी अपने घर के बाहर बैठे किशोरी जी का ध्यान कर रहे थे। तभी एक चूड़ी बेचने वाली आती है बाबा उसे बुलाते है और कहते है,"कि जा अन्दर जाकर मेरी बहूओं को चूड़ी पहना कर आ और जो पैसे हो वो मुझसे आकर ले लेना।"

तब चूड़ी बेचने वाली अंदर चली गयी और थोड़ी देर बाद बाहर आई और बोली,"बाबा 8 रुपये हुए?"

बाबा ने पूछा,"8 रुपये कैसे हुए?"

चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा तुम्हारी 8 बहुएं थी और हर एक को मैंने 1 रुपये की चूड़ी पहनाई।"

लेकिन बाबा बोले,"मेरे तो 7 बेटे हैं और उनकी 7 बहुएं है फिर ये 8 बहुएं कैसे?"

चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा मैं तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?"

अब बाबा का ज्यादा बहस करने का मन नहीं था उन्हें लगा की अब इससे बहस करूंगा तो ठाकुर के ध्यान में विघ्न पड़ेगा इसलिए उन्होंने उस मनिहारिन को 8 रुपये ही देकर विदा कर दिया और अपने युगल सरकार का ध्यान करने लगे लेकिन उन्हें मन ही मन इस बात का दु:ख था की चूड़ी बेचने वाली ने झूठ बोलकर उनसे ज्यादा पैसे ले लिए थे क्योंकि पूरे गांव में बाबा जी से कोई भी झूठ न बोलता था।

वो इसी बात की चिंता में थे कि मुझसे उस चूड़ी बेचने वाली ने झूठ क्यों कहा? रात्रि में बाबा को सोते हुए स्वप्न में किशोरी जी आती है और कहती है,"बाबा!ओ बाबा!"

बाबा मंत्रमुग्ध हो कर किशोरी जी को प्रणाम करते है।

तब किशोरी जी कहती है कि, " बाबा तू ठाकुर जी को अपना पुत्र मानते हो ?"

बाबा बोले,"ठाकुर जी तो मेरे बेटे है मेरा लाला है वो तो।"

तब किशोरी जी कहती है,"यदि ठाकुर जी तुम्हारे बेटे है तो मैं भी तो तुम्हारी बहु हुई न? "

बाबा बोले,"हां हां बिलकुल बिलकुल मेरी लाली।"

फिर किशोरी जी कहती है,"फिर तुम दुखी क्यों होते हो जब चूड़ी बेचने वाली ने मुझे भी चूडियां पहना दी तो?"

तभी बाबा फूट-फूट कर रोने लग जाते है और कहते है कि,"हाय कितना अभागा हूं मैं मेरी किशोरी जी ने खुद मेरे घर आकर चूडियां पहनी और मैं पहचान भी न पाया?"

तभी किशोरी जी अंतर्धान हो जाती है और बाबा कि नींद खुल जाती है और फिर अगले दिन वो चूड़ी बेचने वाली उनके घर पर फिर से आती है और बाबा कहते है कि,"आगे से 8 जोड़ी चूडियां लेकर आना और मेरी सबसे छोटी बहु के लिए नीले रंग कि चूडियां लाना।"

Contributed by
Mr Gothi ji 

खाने का महत्व

रिश्तेदार की शादी की पार्टी में सोनू अपने परिवार के साथ पहुंचा। वहाँ जाकर उसने देखा कि खाना शुरू हाे चुका था। जाते ही उसने एक प्लेट में पनीर की सब्जी, खूब सारे चावल, दही-भल्ले, पापड़, अचार, सलाद अादि सजा लिए।
अपनी खाने से लबालब प्लेट काे लेकर सोनू एक साईड में चला गया। खाना शुरू ही किया था कि दाे चम्मच चावल खाते ही सोनू काे लगा कि खाने में नमक ज़्यादा है। सोनू ने साेचा कि मैं ये खाना खाकर पेट क्यों भर रहा हूँ, ये ताे राेज़ घर पर खाता हूँ। ... मुझे ताे रसगुल्ले, गुलाब जामुन, आइसक्रीम, इत्यादि खाने चाहिए।
बस फिर क्या था, सोनू खाने से भरी प्लेट चुपचाप रखने की जगह ढूँढने लगा। एक जगह से टैंट खुला हुआ था। सोनू ने नज़रें बचाकर टैंट से बाहर जाकर वह प्लेट रख दी आैर चुपचाप टैंट के अन्दर आ गया।
किसी काे कुछ ना पता चलता देख सोनू खुश हाे गया आैर गुलाब जामुन लेने चला गया।
गुलाब जामुन लेकर सोनू उसी जगह आ गया जहाँ वाे पहले खड़ा हाेकर खाना खा रहा था। गुलाब जामुन बड़े आनन्द से खाकर वो खाली प्लेट उसी जगह फेंकने गया जहाँ उसने खाने से भरी प्लेट रखी थी, पर जैसे ही सोनू प्लेट फेंकने गया, वहाँ का दृश्य देख सोनू हैरान हाे गया।
सोनू ने देखा कि जाे प्लेट उसने वहाँ रखी थी उसमें रखे खाने काे एक बच्चा खा रहा था।
सोनू नेे बच्चे काे देखकर कहा,
- ए बच्चे, ये क्या कर रहे हाे ?
बच्चा डर गया आैर सोनू के पाँव में आकर गिर गया और कहने लगा,
- खाने दाे भैया, मैंने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं आपके पाँव पड़ता हूँ।
सोनू की आँखे भर आईं। वह बच्चे के पास बैठा आैर बाेला,
- बेटा ये खाना ज़मीन पर गिरकर ख़राब हाे गया है आैर देखाे इसमें नमक भी ज़्यादा है।
बच्चा राेने लगा बाेला,
- भैया, आपके लिए ये खाना जैसा भी हाेे, पर मुझे तो इस समय ये मेरी ज़िंदगी लग रहा है, खाने दाे भैया।
सोनू के आँसू राेके नहीं रुक रहे थे।
सोनू ने उससे कहा,
- गुलाब जामुन खाआेगे, लाऊँ तुम्हारे लिए ?
बच्चा बाेला,
- नहीं भैया, मेरे लिए तो यही बहुत है।
सोनू राेने लगा, उसे रोता देख बच्चा हँसा आैर बाेला,
- भैया, आप क्यों राेते हाे ? आप जैसे किस्मत वालों काे राेना शाेभा नहीं देता।
- मैं किस्मत वाला कैसे ? सोनू ने बड़ी हैरानी से पूछा।
बच्चा खाना खाते-खाते बाेला,
- भैया, ये सब खाना खाने के, मेरे जैसे ना जाने कितने बच्चे रात काे सपना देखकर राेड पर भूखे साे जाते हैं, आैर एक आप हो जाे एेसे खाने काे फेंक देते हो, ताे हुए ना आप किस्मत वाले ?
... आप मत रोइये भैया,
राेना ताे मुझे चाहिए, जिसे आज तो आपका ये झूठा, फेंका हुआ खाना खाने काे मिल गया, पर कल इस समय फिर ये पेट भूखा हाेगा। आैर पता है भैया, तब मैं आज के इस पल काे याद करके भूखा सो जाऊंगा, ये साेचकर कि कल मैं इस समय ये खाना खा रहा था।
आप कल इस समय फिर से अच्छा खाना खाएंगे, पर मैं नहीं, मैं फिर भूखा तड़पूंगा। इसलिए राेना ताे मुझे चाहिए, आपकाे नहीं।
सोनू राेने लगा आैर अब सोनू काे उस अन्न की महिमा आैर महत्व पता चल गया था जिसे उसने फेंका था।
सोनू ने कहा,
- रुक मैं तेरे लिए गुलाब जामुन लाता हूँ।
बच्चे ने जाते सोनू काे राेका आैर कहा,
- भैया, अगर कृपा करनी ही है ताे मुझे ये खाना घर ले जाने दीजिए। मेरी माँ हमेशा मुझे खिलाकर ही खाती है। साेचिए मैंने तीन दिन से खाना नहीं खाया ताे मेरी माँ भी ताे तीन दिन से ही भूखी हाेगी। क्या मैं ये अपनी माँ के लिए ले जाऊं ??
सोनू गया आैर उसके लिए खूब सारा खाना लाया और उसे दे दिया।
वाे बच्चा ताे चला गया पर अब जब भी सोनू खाना खाता आैर उसे उसका स्वाद अच्छा ना लगता, ताे खाने की प्लेट वापस करने से पहले ही उसके आगे वह बच्चा आ जाता जाे उससे कहता,
- देखाे भैया, हाे ना आप किस्मत वाले, मैं तो आज भी भूखा हूँ आैर आपकाे खाना मिल रहा है ताे आप उसका अादर नहीं कर रहे हो।
... ये सुनते ही सोनू खाने काे सिरमाथे लगाता आैर भगवान का शुक्रिया कर उसे खाता।
~ धन्यवाद


Contributed by Kamaljeet ji  

Tuesday, September 13, 2016

नगाड़ा

एक राजा के पास कई हाथी थे!!लेकिन...
एक हाथी बहुत शक्तिशाली था!
बहुत आज्ञाकारी समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था।
बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था!और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था!!

इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था!!

समय गुजरता गया....और एक समय ऐसा भी आया!!
जब वह वृद्ध दिखने लगा...!!
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था!!
इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे...!!

एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया!!लेकिन
वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया.....!!उस हाथी ने बहुत कोशिश की........
लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।

उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है...!!

हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे...लेकिन बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग
नहि निकला.....!!

तब राजा के एक वरिष्ठ मंत्री ने बताया कि.....!!
तथागत गौतम बुद्ध मार्गक्रमण कर रहे है तो क्यो ना तथागत गौतम बुद्ध से सलाह मांगि जाये.

राजा और सारा मंत्रीमंडल तथागत गौतम बुद्ध के पास गये और अनुरोध किया कि.......
आप हमे इस बिकट परिस्थिती मे मार्गदर्शन करे....!!

तथागत गौतम बुद्ध ने सबके अनुरोध को स्वीकार किया और घटनास्थल का निरीक्षण किया और....
फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ....!!

सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि......
भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा
जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया!!

आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा!!

पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया.....!!

अब तथागत गौतम बुद्ध ने सबको स्पष्ट किया कि....
हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी!!
आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी!!

हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि....
यदि हमारे मन में एक बार उत्साह – उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता...!

जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि....... मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे!!

कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि......
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है!!

सकारात्मक सोच ही आदमी को "आदमी" बनाती है...........

Contributed by
Sh Vineet ji

            

Monday, September 12, 2016

Five more minutes

A woman sat down next to a man on a bench near a playground at West Coast park one fine Sunday Morning.

"That's my son over there" she said, pointing to a little boy in a red T-shirt who was gliding down the slide.

"He's a fine looking boy," the man said. "That's my son on the swing in the blue T-shirt."

Then, looking at his watch, he called to his son.

"What do you say we go, Jack?"

Jack pleaded, "Just five more minutes, Dad. Please?" "Just five more minutes."

The man nodded and Jack continued to swing to his heart's content. Minutes passed and the father stood and called again to his son. "Time to go now?"

Again Jack pleaded, "Five more minutes, Dad.

Just five more minutes." The man smiled and said, "O.K."

"My, you certainly are a patient father," the woman responded.

The man smiled and then said, "My older son John was killed by a drunk driver last year while he was riding his bike near here. I never spent much time with John and now I'd give anything for just five more minutes with him. I've vowed not to make the same mistake with Jack.

He thinks he has five more minutes to swing. The truth is, I get Five more minutes to watch him play."

Life is not a race.

Life is all about making Priorities.

What are your priorities?

Give someone you love, 5 more minutes of your time no matter how busy and you will have no regret forever.

Once you have lost it, shall be lost Forever...

Life can only be understood backwards; But it must be Lived forwards.

Life is an uncompromising reconciliation of uncompromising extremes.

Life is real... Life is earnest... And the grave is not its goal.

*Live Life before you Leave Life* - *5 More Minutes*

Contributed by
Ojasvita ji

Sunday, September 11, 2016

साक्षात्कार

एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा करता था।
.
लेकिन साधु टाल देता था।
.
वह बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में फिर कभी बताएगा।
.
लेकिन चोर पर इसका असर नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता।
.
एक दिन चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ गया।
.
उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने वहां से जाएगा ही नहीं।
.
साधु ने चोर को दूसरे दिन सुबह आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।
.
साधु ने कहा, ‘तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रख कर पहाड़ पर चढ़ना होगा।
.
वहां पहुंचने पर ही ईश्वर के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।’
.
चोर के सिर पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा।
.
इतना भार लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से उसकी गर्दन दुखने लगी।
.
उसने अपना कष्ट कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।
.
थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन प्रतीत हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया।
.
यही क्रम आगे भी चला।
.
ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोड़े पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल हो रहा था।
.
चोर बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था।
.
अंत में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर पर जा पहुंचा।
.
साधु ने कहा, ‘जब तक तुम्हारे सिर पर पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव नहीं हो सका।
.
पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके वैसे ही चढ़ाई सरल हो गई।
.
इसी तरह पापों का बोझ सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।’
.
चोर ने साधु का आशय समझ लिया। उसने कहा, ‘आप ठीक कह रहे हैं।
.
मैं ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।’
.
उस दिन से चोर पूरी तरह बदल गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Contributed by
Mrs Rashmi ji

Pedro

Pedro was driving down the Panjim street in a swift because he had an important meeting and couldn't find a parking place.

Looking up to heaven he said, "Lord take pity on me. If you find me a parking place I will go to Mass every Sunday for the rest of my life and give up my Whiskey. I will give up Gambling and Womanising too !"

Miraculously, a parking place appeared.

Pedro  looked up again and said, "Never mind, I found one ! Sorry I bothered you !!"

😎....we all are Pedro...

Contributed by
Mr  Deep ji

Saturday, September 10, 2016

Duty or love

*Arjuna once asked Krishna, " Lord, why do people consider Karna more generous than Yudhistara? Neither have ever refused whatever has been asked for nor whoever has asked. So why is Karna considered greater than Yudhistara?"*

*The Lord said with a smile, "Come, I'll show you why."*

*Disguised as brahmins, they first went to Yudhishtira's court and asked for sandalwood sticks to conduct 'yagna'. The king immediately sent his soldiers to all parts of his Kingdom in search of sandalwood sticks. It was monsoon, the trees were all drenched and the soldiers returned with wet sandalwood pieces. Yagna was not possible with the wet sticks.*

*Krishna and Arjuna* *proceeded to Karna's court next and asked for the same sticks. Karna thought for a while and said " as it's raining for several days now, it will be impossible to collect dry sandalwood sticks. But there is a way. Please wait for a while."*
*Saying this, Karna proceeded to chop and cut down the doors and windows of the court which were made of sandalwood and after making them into pieces, gifted the dry* *sandalwood sticks to the* *brahmins to conduct 'yagna'.*
*They accepted the offerings and went back. On their way back, Krishna asked Arjuna "do you realise the difference between the two, Arjuna? Had we asked* *Yudhishtira to give his doors and windows for us to conduct yagna, he would have given us without a second thought. But he did not think of it himself. We did not ask Karna either. Yudhishtira gave because that was his dharma. Karna gave because he loves to give. This is the difference between the two and that is why Karna is considered greater. Whatever work you do, it becomes nobler* *when you do it with love.*"

*We can work with different attitudes.*
*1. Someone asked you to,*
*2. or as a duty*
*3. or as your dharma*
*4. or as Karna did, *out of love for doing the job*.

Contributed by
Mrs Ojasvita ji

Be grateful

*One*

"A guy met one of his school mates several years after school and he could not believe his eyes; his friend was driving one of the latest sleek Mercedes Benz cars. He went home feeling awful and very disappointed in himself. He thought he was a failure. What he didn't know was that his friend was a driver and had been sent on errand with his boss's car !"

*Two*

"Rosemary nagged her husband always for not being romantic. She accused him for not getting down to open the car door for her as her friend Jane's husband did when he dropped her off at work. What Rosemary didn't know was that Jane's husband's car had a faulty door that could only be opened from the outside !"

*Three*

"Sampson's wife went to visit one of her long time friends and was very troubled for seeing the 3 lovely kids of her friend playing around. Her problem was that she had only one child and have been struggling to conceive for the past five years. What she didn't know was that one of those kids who was the biological child of her friend had sickle cell and had just a year to live; the other two are adopted !"

*Lessons*

Life does not have a universal measuring tool; so create yours and use it.

Looking at people and comparing yourself with them will not make you better but bitter. If you know the sort of load the chameleon carries, you wouldn't ask why it takes those gentle strides. So, enjoy what you have and be grateful for it.

Live and be happy with what you have ; everyone is going through one thing or the other.

Contributed by
Mrs Sujata ji

Thursday, September 8, 2016

आनंदी की भक्ति

गोकुल के पास ही किसी गाँव में एक महिला थी जिसका नाम था आनंदीबाई। देखने में तो वह इतनी कुरूप थी कि देखकर लोग डर जायें।
.
गोकुल में उसका विवाह हो गया, विवाह से पूर्व उसके पति ने उसे नहीं देखा था। विवाह के पश्चात् उसकी कुरूपता को देखकर उसका पति उसे पत्नी के रूप में न रख सका एवं उसे छोड़कर उसने दूसरा विवाह रचा लिया।
.
आनंदी ने अपनी कुरूपता के कारण हुए अपमान को पचा लिया एवं निश्चय किया कि ‘अब तो मैं गोकुल को ही अपनी ससुराल बनाऊँगी।’
.
वह गोकुल में एक छोटे से कमरे में रहने लगी। घर में ही मंदिर बनाकर आनंदीबाई श्रीकृष्ण की भक्ति में मस्त रहने लगी।
.
आनंदीबाई सुबह-शाम घर में विराजमान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ बातें करती, उनसे रूठ जाती, फिर उन्हें मनाती…. और दिन में साधु-सन्तों की सेवा एवं सत्संग-श्रवण करती।
.
इस प्रकार कृष्ण भक्ति एवं साधु-सन्तों की सेवा में उसके दिन बीतने लगे।
.
एक दिन की बात है गोकुल में गोपेश्वरनाथ नामक जगह पर श्रीकृष्ण-लीला का आयोजन निश्चित किया गया था। उसके लिए अलग-अलग पात्रों का चयन होने लगा, पात्रों के चयन के समय आनंदीबाई भी वहाँ विद्यमान थी।
.
अंत में कुब्जा के पात्र की बात चली। उस वक्त आनंदी का पति अपनी दूसरी पत्नी एवं बच्चों के साथ वहीं उपस्थित था, अतः आनंदीबाई की खिल्ली उड़ाते हुए उसने आयोजकों के आगे प्रस्ताव रखाः-
.
“सामने यह जो महिला खड़ी है वह कुब्जा की भूमिका अच्छी तरह से अदा कर सकती है, अतः उसे ही कहो न, यह पात्र तो इसी पर जँचेगा, यह तो साक्षात कुब्जा ही है।”
.
आयोजकों ने आनंदीबाई की ओर देखा, उसका कुरूप चेहरा उन्हें भी कुब्जा की भूमिका के लिए पसंद आ गया। उन्होंने आनंदीबाई को कुब्जा का पात्र अदा करने के लिए प्रार्थना की।
.
श्रीकृष्णलीला में खुद को भाग लेने का मौका मिलेगा, इस सूचना मात्र से आनंदीबाई भाव विभोर हो उठी। उसने खूब प्रेम से भूमिका अदा करने की स्वीकृति दे दी।
.
श्रीकृष्ण का पात्र एक आठ वर्षीय बालक के जिम्मे आया था।
.
आनंदीबाई तो घर आकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के आगे विह्वलता से निहारने लगी एवं मन-ही-मन विचारने लगी कि ‘मेरा कन्हैया आयेगा…
.
मेरे पैर पर पैर रखेगा, मेरी ठोड़ी पकड़कर मुझे ऊपर देखने को कहेगा….’
.
वह तो बस, नाटक में दृश्यों की कल्पना में ही खोने लगी।
.
आखिरकार श्रीकृष्णलीला रंगमंच पर अभिनीत करने का समय आ गया। लीला देखने के लिए बहुत से लोग एकत्रित हुए।
.
श्रीकृष्ण के मथुरागमन का प्रसंग चल रहा था, नगर के राजमार्ग से श्रीकृष्ण गुजर रहे हैं… रास्ते में उन्हे कुब्जा मिली….
.
आठ वर्षीय बालक जो श्रीकृष्ण का पात्र अदा कर रहा था उसने कुब्जा बनी हुई आनंदी के पैर पर पैर रखा और उसकी ठोड़ी पकड़कर उसे ऊँचा किया।आनंदी बाई भाव विह्वाल होकर चेतनशून्य हो गयी , उसका रोम रोम अपने कान्हा को साक्षात पाकर मानो धन्य हो रहा था , साक्षात समाधि की अवस्था में आनंदी के साथ कुछ घटा-

.
किंतु यह कैसा चमत्कार……………… कुरूप कुब्जा एकदम सामान्य नारी के स्वरूप में आ गयी…..
.
वहाँ उपस्थित सभी दर्शकों ने इस प्रसंग को अपनी आँखों से देखा।
.
आनंदीबाई की कुरूपता का पता सभी को था, अब उसकी कुरूपता बिल्कुल गायब हो चुकी थी।
.
यह देखकर सभी दाँतो तले ऊँगली दबाने लगे। आनंदीबाई तो भाव विभोर होकर अपने कृष्ण में ही खोयी हुई थी…
.
उसकी कुरूपता नष्ट हो गयी यह जानकर कई लोग कुतुहल वश उसे देखने के लिए आये।
.
फिर तो आनंदीबाई अपने घर में बनाये गये मंदिर में विराजमान श्रीकृष्ण में ही खोयी रहतीं। यदि कोई कुछ भी पूछता तो एक ही जवाब मिलता “मेरे कन्हैया की लीला कन्हैया ही जाने….”
.
आनंदीबाई ने अपने पति को धन्यवाद देने में भी कोई कसर बाकी न रखी। यदि उसकी कुरूपता के कारण उसके पति ने उसे छोड़ न दिया होता तो श्रीकृष्ण में उसकी इतनी भक्ति कैसे जागती ?
.
श्रीकृष्णलीला में कुब्जा के पात्र के चयन के लिए उसका नाम भी तो उसके पति ने ही दिया था, इसका भी वह बड़ा आभार मानती थी।
.
प्रतिकूल परिस्थितियों एवं संयोगों में शिकायत करने की जगह प्रत्येक परिस्थिति को भगवान की ही देन मानकर धन्यवाद देने से प्रतिकूल परिस्थिति भी उन्नतिकारक हो जाती है।
.
प्रभु से अगाध प्रेम जिसमें कुछ भी पाने की आकांक्षा ना की गयी हो , अद्भुत फलदायिनी होती है

Contributed by
Mr . Gothi ji

Sunday, September 4, 2016

The boat

*A man was asked to paint a boat.*_
*He brought with him paint and brushes and began to paint the boat a bright red, as the owner asked him*.
While painting, he realized there was a hole in the hull and decided to repair it.
*When finished painting, he received his money and left.*
The next day, the owner of the boat came to the painter and presented him with a nice cheque , much higher than the payment for painting.
The painter was surprised:
- You've already paid me for painting the boat! he said.
- But this is not for the paint job.
It's for having repaired the hole in the boat.
*Ah! But it was such a small service ... certainly it's not worth paying me such a high amount for something so insignificant!*
My dear friend, you do not understand. Let me tell you what happened.
*When I asked you to paint the boat, I forgot to mention about the hole.*
When the boat dried, my kids took the boat and went on a fishing trip.
*They did not know that there was a hole.*
I was not at home at that time.
When I returned and noticed they had taken the boat, I was desperate because I remembered that the boat had a hole.
Imagine my relief and joy when I saw them returning from fishing.
Then, I examined the boat and found that you had repaired the hole! You see, now, what you did?* You saved the life of my children! I do not have enough money to pay your "small" good deed.
So, no matter who, when or how. Just continue to help, sustain, wipe tears, listen attentively and carefully repair all the "leaks"* you find, because you never know when one is in need of us or when God holds a pleasant surprise for us to be helpful and important to someone.
You may have repaired numerous "boat holes" along the way, of several people without realizing how many lives you've saved.

Contributed by
Mrs Sujata ji