Saturday, December 24, 2016

सात आश्चर्य

एक किस्सा.....

गाँव के स्कूल में पढने वाली छुटकी आज बहुत खुश थी, उसका दाखिला शहर के एक अच्छे  स्कूल में क्लास 6 में हो गया था।

आज स्कूल का पहला दिन था और वो समय से पहले ही तैयार हो कर बस का इंतज़ार कर रही थी। बस आई और छुटकी बड़े उत्साह के साथ उसमे सवार हो गयी।

करीब 1 घंटे बाद जब बस स्कूल पहुंची तो सारे बच्चे उतर कर अपनी-अपनी क्लास में जाने लगे.छुटकी भी बच्चों से पूछते हुए अपनी क्लास में पहुंची।

क्लास के बच्चे गाँव से आई इस लडकी को देखकर उसका मजाक उड़ाने लगे।

"साइलेंस!", टीचर बोली, " चुप हो जाइए आप सब."

"ये छुटकी है, और आज से ये आपके साथ ही पढेगी।"
उसके बाद टीचर ने बच्चों को सरप्राइज टेस्ट के लिए तैयार होने को कह दिया।

"चलिए, अपनी-अपनी कॉपी निकालिए और जल्दी से "दुनिया के 7 आश्चर्य लिख डालिए।", टीचर ने निर्देश दिया।

सभी बच्चे जल्दी जल्दी उत्तर लिखने लगे, छुटकी भी धीरे-धीरे अपना उत्तर लिखने लगी।

जब सबने अपनी कॉपी जमा कर दी तब टीचर ने छुटकी से पूछा, "क्या हुआ बेटा, आपको जितना पता है उतना ही लिखिए, इन बच्चों को तो मैंने कुछ दिन पहले ही दुनिया के सात आश्चर्य बताये थे।"

"जी, मैं तो सोच रही थी कि इतनी सारी चीजें हैं.इनमे से कौन सी सात चीजें लिखूं..", छुटकी टीचर को अपनी कॉपी थमाते हुए बोली।

टीचर ने सबकी कापियां जोर-जोर से पढनी शुरू कीं..ज्यादातर बच्चों ने अपने उत्तर सही दिए थे.
ताजमहल
चीचेन इट्ज़ा
क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा
कोलोसियम
चीन की विशाल दीवार
माचू पिच्चू
पेत्रा
टीचर खुश थीं कि बच्चों को उनका पढ़ाया याद था। बच्चे भी काफी उत्साहित थे और एक दुसरे को बधाई दे रहे थे.।

अंत में टीचर ने छुटकी की कॉपी उठायी, और उसका उत्तर भी सबके सामने पढना शुरू किया..

दुनिया के 7 आश्चर्य हैं:
देख पाना
सुन पाना
किसी चीज को महसूस कर पाना
हँस पाना
प्रेम कर पाना
सोच पाना
दया कर पाना
छुटकी के उत्तर सुन पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। टीचर भी आवाक खड़ी थी..आज गाँव से आई एक बच्ची ने उन सभी को भगवान् के दिए उन अनमोल तोहफों का आभास करा दिया था जिनके तरफ उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था!

Contributed by
SH Rajat ji

Thursday, December 22, 2016

Silversmith

There was a group of women in a Bible Study on the book of Malachi. As they were studying chapter three, they came across verse three, which says: "He will sit as a refiner and purifier of silver. "This verse puzzled the women and they wondered what this statement meant about the character and nature of God.

One of the women offered to find out the process of refining silver and get back to the group at their next Bible Study. That week, this woman called up a silversmith and made an appointment to watch him at work. She didn't mention anything about the reason for her interest beyond her curiosity about the process of refining silver.

As she watched the silversmith, he held a piece of silver over the fire and let it heat up. He explained that in refining silver, one needed to hold the silver in the middle of the fire where the flames were hottest as to burn away all the impurities. The woman thought about God holding us in such a hot spot then she thought again about the verse, that "He sits as a refiner and purifier of silver." She asked the silversmith if it was true that he had to sit there in front of the fire the whole time the silver was being refined. The man answered that yes, he not only had to sit there holding the silver, but he had to keep his eyes on the silver the entire time it was in the fire. If the silver was left a moment too long in the flames, it would be destroyed.

The woman was silent for a moment. Then she asked the silversmith, how do you know when the silver is fully refined? He smiled at her and answered, "Oh, that's easy - when I see my image in it."
If today you are feeling the heat of the fire, remember that God has His eye on you and will keep watching you until He sees His image in you.

Contributed by
Mrs Shruti Chaabra ji

साधना और घमंड

संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे. संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते.
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वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे. इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला.
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आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो. शायद वह कुछ कर दें. सब तैयार हो गए. लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर. देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?
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तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है. सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है. आप काम बोलो क्या है ?
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लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी. कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है. अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए.
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कमाल ने कमंडल उठाया. लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया. लोगों की खुशी की सीमा न रही.
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इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए.
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आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा.
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कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो.
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कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है.
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कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना.
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कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था-
कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब.
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कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?
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कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी. अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ. तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है.
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संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम.
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संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी. थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले. संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो.
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कमाल तो देख के चौंक गया. अरे, इतने सारे लोग हैं. इतने लोगों को कैसे ठीक करूं. यह मेरे बस का नहीं है. संत जी ने कहा- कोई बात नहीं. अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं. तुम बैठो.
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संत जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया. एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए. फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक. बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए.
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संत जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल. हम भजन में आएंगे. पास के गांव में एक सूरदास जी रहते हैं. उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में.
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कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने. सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए. मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की. तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी.
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यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुंच गया. जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ. कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- बेटा जल्दी से दौड के जा. टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है. जल्दी से उसे बचा ले.
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कमाल दौड के गया. टेकरी पर से देखा नदी में एक लडका बहा आ रहा था. कमाल नदी में कूद गया और लडके को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लादके कुटिया की तरफ चलने लगा.
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चलते- चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं. फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लडका कैसे दिख गया. उसका दिमाग सुन्न हो गया था. लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लडका मर चुका था.
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सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”. तब तक लडका उठ के चल दिया. अब तो कमाल अचंभित की अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला. खाली रा बोलते ही लडका जिंदा हो गया.
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तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढा तो सब समझ मे आ गया.
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वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूं. गुरु जी आप तो यहीं रहिए. अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है.
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कथा का तात्पर्य कि गुरू की कृपा से सिद्धियां मिलती हैं. उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं. गुरू, गुरू ही रहेंगे. वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं.

Contributed by
Mrs Rashmi ji

Wednesday, December 21, 2016

O'Hare

Two small stories that show how the examples we set today, may help shape the character of generations tomorrow.

It's important you read both.

STORY - I

We all know about Al Capone. The notorious gangster, mafia who virtually owned Chicago. He was a crime boss who lorded over the windy city dealing with all sort of crimes prostitution to murder to...you name it...and he escaped the law for many many years.

It was because of one man ~ his lawyer nicknamed "Easy Eddie". Eddie was very good ! In fact, Eddie's skill at legal maneuvering kept Big Al out of jail for a long time.

To show his appreciation, Capone paid him very well. Not only was the money big, but Eddie got special dividends, as well. For instance, he and his family occupied a fenced-in mansion with live-in help and all of the conveniences of the day.

The estate was so large that it filled an entire Chicago City block. Eddie did have one soft spot, however. He had a son that he loved dearly. And, despite his involvement with organized crime, Eddie tried to teach him right from wrong. Eddie wanted his son to be a better man than he was.

Yet, with all his wealth and influence, there were two things he couldn't give his son ~ he couldn't pass on a Good Name or a Good Example.

One day, Easy Eddie reached a difficult decision. It's believed Easy Eddie wanted to rectify wrongs he had done. So he decided he would go to the authorities and tell the truth about Al "Scarface" Capone, clean up his tarnished name, and offer his son some semblance of integrity.

To do this, he would have to testify against The Mob, and he knew that the cost would be great. Nevertheless, he testified.

Within the year, Easy Eddie's life ended in a blaze of gunfire on a lonely Chicago Street. But in his eyes, he had given his son the greatest gift he had to offer, at the greatest price he could ever pay.

Police removed from his pockets a rosary, a religious symbol and medallion, and a poem clipped from a magazine.

The Poem read..."The clock of life is wound but once, and no man has the power to tell just when the hands will stop, at late or early hour. Now is the only time you own. Live, love, toil with a will. Place no faith in time. For the clock may soon be still."

STORY - II

World War II produced many heroes. One such man was Lieutenant Cdr Butch O'Hare. He was a fighter pilot assigned to the aircraft carrier Lexington in the South Pacific.

One day his entire squadron was sent on a mission. After he was airborne, he looked at his fuel gauge and realized that someone had forgotten to top off his fuel tank.

He would not have enough fuel to complete his mission and get back to his ship. His flight leader told him to return to the carrier. Reluctantly, he dropped out of formation and headed back to the fleet.

As he was returning to the mother ship, he saw something that turned his blood cold; a squadron of Japanese aircraft was speeding its way toward the American fleet. The American fighters were gone on a sortie, and the fleet was all but defenseless. He couldn't reach his squadron and bring them back in time to save the fleet. Nor could he warn the fleet of the approaching danger.

There was only one thing to do, only thing he'd learned growing up. He must somehow divert them from the fleet. Laying aside all thoughts of personal safety, he dove into the formation of Japanese planes. Wing-mounted 50 caliber's blazed as he charged in, attacking one surprised enemy plane and then another.

Butch wove in and out of the now broken formation and fired at as many planes as possible until all his ammunition was finally spent. Undaunted, he continued the assault. He dove at the planes, trying to clip a wing or tail in hopes of damaging as many B planes as possible, rendering them unfit to fly.

Finally, the exasperated Japanese squadron took off in another direction. Deeply relieved, Butch O'Hare and his tattered fighter limped back to the carrier. Upon arrival, he reported in and related the event surrounding his return.

The film from the gun-camera mounted on his plane told the tale. It showed the extent of Butch's daring attempt to protect his fleet. He had, in fact, destroyed five enemy aircraft.

This took place on February 20, 1942, and for that action Butch became the Navy's first Ace of WW II, and the first Naval Aviator to win the Medal of Honor.

A year later Butch was killed in aerial combat at the age of 29. His home town would not allow the memory of this WW II hero to fade, and today, O'Hare Airport in Chicago is named in tribute to the courage of this great man.

So, the next time you find yourself at O'Hare International, give some thought to visiting Butch's memorial displaying his statue and his Medal of Honor. It's located between Terminals 1 and 2.

What do these two stories have to do with each other?

Well, Butch O'Hare was... Easy Eddie's son.

Contributed by
Mr Deep Saxena ji

Monday, December 19, 2016

The Cross


A young man was at the end of his rope, seeing no way out, he dropped to his knees in prayer: “Lord, I can’t go on” he said. “I have too heavy a cross to bear.”

The Lord replied, “My son, if you can’t bear its weight, just place your
cross inside this room. Then, open that other door and pick out any cross you wish.”

The man was filled with relief and said, “Thank you Lord,” and he did as he was told. Upon entering the other room, he saw many crosses; some so large the tops were not visible. Then, he spotted a tiny cross leaning against a far wall.

“I’d like that one, Lord,” he whispered.

The Lord replied, “My son, that is the cross you just brought in.”

When life’s problems seem overwhelming, it helps to look around and see what other people are coping with. You may consider yourself far more fortunate than you imagined.

Contributed by
Mrs Preeti ji

Sunday, December 18, 2016

The Journey is so short

A young lady sat in a bus. At the next stop a loud and grumpy old lady came and sat by her. She squeezed into the seat and bumped her with her numerous bags.

The person sitting on the other side of the young lady got upset, asked her why she did not speak up and say something.

The young lady responded with a smile:

"It is not necessary to be rude or argue over something so insignificant, the journey together is so short. I get off at the next stop."

This response deserves to be written in golden letters:

"It is not necessary to argue over something so insignificant, our journey together is so short"

If each one of us realized that our time here is so short; that to darken it with quarrels, futile arguments, not forgiving others, discontentment and a fault finding attitude would be a waste of time and energy.

Did someone break your heart?
Be calm, the journey is so short.

Did someone betray, bully, cheat or humiliate you?
Be calm, forgive, the journey is so short.

Whatever troubles anyone brings us, let us remember that our journey together is so short.

No one knows the duration of this journey. No one knows when their stop will come. Our journey together is so short.

Let us cherish friends and family. Let us be respectful, kind and forgiving to each other. Let us be filled with gratitude and gladness.

If I have ever hurt you, I ask for your forgiveness. If you have ever hurt me, you already have my forgiveness.

After all, our journey together is so short!

Contributed by
Mrs Sujata ji

The four apples

A #teacher teaching Maths to a six-year-old asked him, “If I give you one apple and one apple & one apple, how many apples will you have?”

With a few seconds the boy replied confidently, “Four!”

The dismayed teacher was expecting an effortless correct answer (three).

She was disappointed. “May be the child did not listen properly,” she thought.

She repeated, “pls listen carefully.

It is very simple. You will be able to do it right if you listen carefully.

If I give you one apple and one apple and one apple, how many apples will you have?”

The boy had seen the disappointment on his teacher’s face.

He calculated again on his fingers.

But within him he was also searching for the answer that will make his teacher happy.

This time hesitatingly he replied, “Four...”

The disappointment stayed on teacher’s face.

She remembered that the boy loves strawberries.

She thought maybe he doesn’t like apples and that is making him lose focus.

This time with exaggerated excitement & twinkling eyes she asked ...

“If I give you one strawberry & one strawberry & one strawberry, then how many will you have?”

Seeing the teacher happy, the #young boy calculated on his fingers again.

There was no pressure on him, but a little on the teacher.

She wanted her new approach to succeed.

With a hesitating smile, the young boy replied, “Three?”

The teacher now had a victorious smile. Her approach had succeeded.

She wanted to congratulate herself.

But one last thing remained.

Once again she asked him, “Now if I give you one apple and one apple and one more apple how many will you have?”

Promptly the answer was “Four!”

The teacher was aghast.

“How.... tell me, How?” she demanded in a little stern and irritated voice.

In a voice that was low and hesitating young boy replied, “Because I already have one apple in my bag.”

Lessons to Learn: When someone gives you an answer that is different from what you are expecting, it is not necessarily they are wrong.

There may be an angle that we may not have understood at all.

We need to learn to appreciate and understand different perspectives.

*** Quite often, we try and impose our perspectives on others and then wonder what went wrong.

The next time someone gives you a different perspective than yours, sit down and gently ask " can you please help me understand"?......

Contributed by
Mrs Shruti Chaabra ji

Saturday, December 17, 2016

Help Others

Once there was a small boy named Shankar. He belonged to a poor family.  One day, he was crossing through the forest carrying some woods. He saw an old man who was very hungry.  Shankar wanted to give him some food, but he did not have food for his own.  So he continued on his way.  On his way, he saw a deer who was very thirsty.  He wanted to give him some water, but he did not have water for himself.  So he went on his way ahead.

Then he saw a man who wanted to make a camp but he did not have woods.  Shankar asked his problem and gave some woods to him.  In return, he gave him some food and water.  Now he went back to the old man and gave him some food and gave some water to the deer. The old man and the deer were very happy.   Shankar then happily went on his way.

However, one day Shankar fell down the hill.  He was in pain but he couldn’t move and no one was there to help him.  But, the old man who he had helped before saw him, he quickly came and pulled him up the hill.  He had many wounds on his legs.  The deer whom shankar had given water saw his wounds and quickly went to the forest and brought some herbs.  After some time his wounds were covered.   All were very happy that they were able to help each other.

If you help others, then they will also help you.

Contributed by
Mrs Preeti ji

Wednesday, December 14, 2016

Hand of God

Wishing to encourage her young son’s progress on the piano, a mother took her boy to a Paderewski concert. After they were seated, the mother spotted a friend in the audience and walked down the aisle to greet her. Seizing the opportunity to explore the wonders of the concert hall, the little boy rose and eventually explored his way through a door marked “No Admittance.”

When the house lights dimmed and the concert was about to begin, the mother returned to her seat and discovered that the child was missing. Suddenly, the curtains parted and spotlights focused on the impressive Steinway on stage. In horror, the mother saw her little boy was sitting at the keyboard, innocently picking out “Twinkle, Twinkle Little Star.” At that moment, the great piano master made his entrance, quickly moved to the piano, and whispered in the boy’s ear, “Don’t quit. Keep playing.”

Then, leaning over, Paderewski reached down with his left hand and began filling in a bass part. Soon his right arm reached around to the other side of the child and he added a running obbligato. Together, the old master and the young novice transformed a frightening situation into a wonderfully creative experience. The audience was so mesmerized they couldn’t recall what else the great master played. Only the classic “Twinkle, Twinkle Little Star.”

That’s the way it is with God. What we can accomplish on our own is hardly noteworthy. We try our best, but the results aren’t exactly graceful flowing music. But with the hand of the Master, our life’s work truly can be beautiful. Next time you set out to accomplish great feats, listen carefully. You can hear the voice of the Master, whispering in your ear,
"Don’t quit. Keep playing.”

Feel His loving arms around you. Know that His strong hands are there helping you turn your feeble attempts into true masterpieces.

Contributed by
Mrs Preeti ji

The learning

"Life should not be measured by just the numbers of years you live but by the experiences you had & learnings you got from them"

These can be good as well as painful.

Good relationships as well as those which were broken.

Wining as well as loosing.......

However the bottomline is the willingness to learn from the experiences and being open to improve with each experience.

More you want to learn from each experience,more you are open to do new experiments,

More you experiment, more you become innovative. You will start  working  on the new opportunities,would try the new markets, new products, new strategies & would become more flexible.

This gives you more learning which is beyond the books and which is  beyond the physical age.

From here the growth starts and history of successful persons begins.

Start your journey of real learning today. Be motivated and define your own destiny. Learn from experience and don't give up.

All the best! God bless!

Contributed by
Mr Gaurav Narang ji

Its just a bend

When I got enough confidence, the stage was gone…..
When I was sure of Losing, I won…….
When I needed People the most, they Left me…….
When I learnt to dry my Tears, I found a shoulder to Cry on……
When I mastered the Skill of Hating, Someone started Loving me from the core of the Heart……
And, while waiting for Light for Hours when I fell asleep, the Sun came out…..
That’s LIFE!!
No matter what you Plan, you never know what Life has Planned for you……
Success introduces you to the World…….
But Failure introduces the World to you…….
……Always be Happy!!
Often when we lose Hope and think this is the end…
God smiles from above and says,
“Relax Sweetheart; It’s just a Bend, not the End..

Contributed by
Mrs Ojasvita ji

मन का सौंदर्य

एक बार इंद्र अपने दरबार में सभी देवताओं के साथ बैठे पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा कर रहे थे। पृथ्वी के जीवन, वहां की समस्यओं व मांगों के विषय में सभी अपने अपने विचार रख रहे थे। इंद्र का आग्रह था कि पृथ्वी के जीवन के विषय में उन्हें सही विषयवस्तु का ज्ञान हो जाए तो वे सुधार की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाएं। देवताओं ने उन्हें काफी कुछ जानकारी दी। इनमें से एक अहम बात यह सामने आई कि पृथ्वीवासियों को कई वस्तुएं कुरूप लगती है जिनसे वे असहज हो जाते हैं। यह सुनकर इंद्र ने पृथ्वी पर घोषणा करवाई कि जिसे जो भी वस्तु कुरूप लगती है उसे वे यहां लाकर सुंदरता में बदलवा लें। इंद्र की यह घोषणा सुनकर पृथ्वीवासियों की खुशी का ठिकाना न रहा। सभी ने इस सुअवसर का लाभ उठाना उचित समझा और अपनी वस्तुओं की सुंदर करवाने ले गए। इंद्र ने पुन: कोज करवाई कि कहीं कोई इस सुविधा से वंचित तो नहीं रह गया। पता लगा कि एक छोटी-सी कुटिया में रहने वाले साधु ने कुछ भी परिवर्तित नहीं करवाया है। कारण पूछने पर उसने कहा- मनुष्य जीवन से सुंदर अन्य कुछ है ही नहीं और अत्मसंतुष्टि से बढ़कर कोई आनंद नहीं है। मेरे पास ये दोनों ही वस्तुएं है। फिर मुझे इन्हें बदलवाने की भला क्या जरूरत है?
सार यह है कि सुंदरता के सही मायने आंतरिकता में ही बसते है। बाहरी सौन्दर्य नेत्रों को प्रीतिगत लगता है किंतु मन का आंनद तो आंतरिक सौन्दर्य में ही निहित होता है।

Contributed by
Mrs Rashmi Gogia ji

मन का सौंदर्य

एक बार इंद्र अपने दरबार में सभी देवताओं के साथ बैठे पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा कर रहे थे। पृथ्वी के जीवन, वहां की समस्यओं व मांगों के विषय में सभी अपने अपने विचार रख रहे थे। इंद्र का आग्रह था कि पृथ्वी के जीवन के विषय में उन्हें सही विषयवस्तु का ज्ञान हो जाए तो वे सुधार की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाएं। देवताओं ने उन्हें काफी कुछ जानकारी दी। इनमें से एक अहम बात यह सामने आई कि पृथ्वीवासियों को कई वस्तुएं कुरूप लगती है जिनसे वे असहज हो जाते हैं। यह सुनकर इंद्र ने पृथ्वी पर घोषणा करवाई कि जिसे जो भी वस्तु कुरूप लगती है उसे वे यहां लाकर सुंदरता में बदलवा लें। इंद्र की यह घोषणा सुनकर पृथ्वीवासियों की खुशी का ठिकाना न रहा। सभी ने इस सुअवसर का लाभ उठाना उचित समझा और अपनी वस्तुओं की सुंदर करवाने ले गए। इंद्र ने पुन: कोज करवाई कि कहीं कोई इस सुविधा से वंचित तो नहीं रह गया। पता लगा कि एक छोटी-सी कुटिया में रहने वाले साधु ने कुछ भी परिवर्तित नहीं करवाया है। कारण पूछने पर उसने कहा- मनुष्य जीवन से सुंदर अन्य कुछ है ही नहीं और अत्मसंतुष्टि से बढ़कर कोई आनंद नहीं है। मेरे पास ये दोनों ही वस्तुएं है। फिर मुझे इन्हें बदलवाने की भला क्या जरूरत है?
सार यह है कि सुंदरता के सही मायने आंतरिकता में ही बसते है। बाहरी सौन्दर्य नेत्रों को प्रीतिगत लगता है किंतु मन का आंनद तो आंतरिक सौन्दर्य में ही निहित होता है।

Contributed by
Mrs Rashmi Gogia ji

ईश्वर का वास

एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये, दुकान मे अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे, एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए सन्यासी ने दुकानदार से पूछा, इसमे क्या है ? दुकानदारने कहा - इसमे नमक है ! सन्यासी ने फिर पूछा, इसके पास वाले मे क्या है ? दुकानदार ने कहा, इसमे हल्दी है !इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा, अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा उस  अंतिम डिब्बे मे क्या है?दुकानदार बोला, उसमे राम-राम है ! सन्यासी ने पूछा, यह राम-राम किस वस्तु का नाम है ! दुकानदार ने कहा - महात्मन ! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं, पर यह डिब्बा खाली है, हम खाली को खाली नही कहकर राम-राम कहते हैं ! संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! ओह, तो खाली मे राम रहता है !भरे हुए में राम को स्थान कहाँ ?लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ? राम यानी ईश्वर तो खाली याने साफ-सुथरे मन मे ही निवास करता है ! एक छोटी सी दुकान वाले ने सन्यासी को बहुत बड़ी बात समझा दी!

Contributed by
Mrs Seema Rekha ji

चन्दन और कोयला

*सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा - हे पानी पिलाने वाले ! किसी दिन मेरी राजधानी में अवश्य आना, मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, लकड़हारे ने कहा - बहुत अच्छा।*

*इस घटना को घटे पर्याप्त समय व्यतीत हो गया, अन्ततः लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता राजधानी में जा पहुँचा और राजा के पास जाकर कहने लगा - मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने आपको पानी पिलाया था, राजा ने उसे देखा और अत्यन्त प्रसन्नता से अपने पास बिठाकर सोचने लगा कि-  इस निर्धन का दुःख कैसे दूर करुँ ? अन्ततः उसने सोच-विचार के पश्चात् चन्दन का एक विशाल उद्यान(बाग) उसको सौंप दिया। लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया। चलो अच्छा हुआ। इस बाग के वृक्षों के कोयले खूब होंगे, जीवन कट जाएगा।*

*यह सोचकर लकड़हारा प्रतिदिन चन्दन काट-काटकर कोयले बनाने लगा और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा। थोड़े समय में ही चन्दन का सुन्दर बगीचा एक वीरान बन गया, जिसमें स्थान-स्थान पर कोयले के ढेर लगे थे। इसमें अब केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो लकड़हारे के लिए छाया का काम देते थे।*

*राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया। चलो, तनिक लकड़हारे का हाल देख आएँ। चन्दन के उद्यान का भ्रमण भी हो जाएगा। यह सोचकर राजा चन्दन के उद्यान की और जा निकला। उसने दूर से उद्यान से धुआँ उठते देखा। निकट आने पर ज्ञात हुआ कि चन्दन जल रहा है और लकड़हारा पास खड़ा है। दूर से राजा को आते देखकर लकड़हारा उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ा। राजा ने आते ही कहा - भाई ! यह तूने क्या किया ? लकड़हारा बोला - आपकी कृपा से इतना समय आराम से कट गया। आपने यह उद्यान देकर मेरा बड़ा कल्याण किया। कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ। अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं। यदि कोई और उद्यान मिल जाए तो शेष जीवन भी व्यतीत हो जाए।*

*राजा मुस्कुराया और कहा - अच्छा, मैं यहाँ खड़ा होता हूँ। तुम कोयला नहीं, प्रत्युत इस लकड़ी को ले-जाकर बाजार में बेच आओ। लकड़हारे ने दो गज [लगभग पौने दो मीटर] की लकड़ी उठाई और बाजार में ले गया। लोग चन्दन देखकर दौड़े और अन्ततः उसे तीन सौ रुपये मिल गये, जो कोयले से कई गुना ज्यादा थे, लकड़हारा मूल्य लेकर रोता हुआ राजा के पास आय और जोर-जोर से रोता हुआ अपनी भाग्यहीनता स्वीकार करने लगा।*

*मेरी कहानी यहीं रुक जाती है ।*

*इस कथा में चन्दन का बाग मनुष्य का शरीर और हमारा एक-एक श्वास चन्दन के वृक्ष हैं पर अज्ञानता वश हम इन चन्दन को कोयले में तब्दील कर रहे हैं। लोगों के साथ बैर, द्वेष, क्रोध, लालच, ईर्ष्या, मनमुटाव, को लेकर खिंच-तान आदि की अग्नि में हम इस जीवन रूपी चन्दन को जला रहे हैं। जब अंत में स्वास रूपी चन्दन के पेड़ कम रह जायेंगे तब अहसास होगा कि व्यर्थ ही अनमोल चन्दन को इन तुच्छ कारणों से हम दो कौड़ी के कोयले में बदल रहे थे, पर अभी भी देर नहीं हुई है हमारे पास जो भी चन्दन के पेड़ बचे है उन्ही से नए पेड़ बन सकते हैं। आपसी प्रेम, सहायता, सौहार्द, शांति,भाईचारा, और विश्वास, के द्वारा अभी भी जीवन सँवारा जा सकता है।

Contributed by
Mrs Megha ji

Tuesday, December 13, 2016

झूठी भक्ति

एक मुसलिम फकीर थे हाजी मोहम्मद साधु पुरुष थे । एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया है और एक चौराहे पर खड़ा है, जहां से एक रास्ता स्वर्ग को जाता है, एक नरक को; एक रास्ता पृथ्वी को जाता है, एक मोक्ष को । चौराहे पर एक देवदूत खड़ा है—एक फरिश्ता, और वह हर आदमी को उसके कर्मों के अनुसार रास्ते पर भेज रहा है ।हाजी मोहम्मद तो जरा भी घबडाया नहीं; जीवनभर साधु था । हर दिन की नमाज पांच बार पूरी पढ़ी थी । साठ बार हज की, इसलिए हाजी मोहम्मद उसका नाम हो गया । वह जाकर द्वार पर खड़ा हो गया देवदूत के सामने । देवदूत ने कहा, 'हाजी मोहम्मद! ' देवदूत ने इशारा किया, 'नरक की तरफ यह रास्ता है ।’ हाजी मोहम्मद ने कहा, ' आप समझे नहीं शायद । कुछ भूल — चूक हो रही है ।
60 बार हज किये हैं । देवदूत ने कहा, 'वह व्यर्थ गयी; क्योंकि जब भी कोई तुमसे पूछता तो तुम कहते, हाजी मोहम्मद ! तुमने उसका काफी फायदा जमीन पर ले लिया । तुम बड़े अकड़ गये उसके कारण । कुछ और किया है ?' हाजी मोहम्मद के पैर थोडे डगमगा गये । जब साठ बार की हज व्यर्थ हो गयी, तो अब आशा टूटने लगी । उसने कहा, *रोज पांच बार की नमाज पूरी—पूरी पढ़ता था ।*’ उस देवदूत ने कहा, 'वह भी व्यर्थ गयी; क्योंकि *जब कोई देखने वाला होता था तो तुम जरा थोड़ी देर तक नमाज पढ़ते थे । जब कोई भी न होता तो तुम जल्दी खत्म कर देते थे ।* *तुम्हारी नजर परमात्मा पर नहीं थी; देखने वालों पर थी ।* एक बार तुम्हारे घर कुछ लोग बाहर से आये हुए थे, तो तुम बड़ी देर तक नमाज पढ़ते रहे । *वह नमाज झूठी थी । ध्यान में परमात्मा न था, वे लोग थे ।* लोग देख रहे है तो जरा ज्यादा नमाज, ताकि पता चल जाये कि मैं धार्मिक आदमी हूं हाजी मोहम्मद; वह बेकार गयी; कुछ और किया है ?' अब तो हाजी मोहम्मद घबड़ा गया और घबड़ाहट में उसकी नींद टूट गयी । सपने के साथ जिंदगी बदल गयी । उस दिन से उसने अपने नाम के साथ हाजी बोलना बंद कर दिया । नमाज छिपकर पढ़ने लगा; किसी को पता भी न हो । गांव में खबर भी पहुंच गयी कि हाजी मोहम्मद अब धार्मिक नहीं रहा । कहते हैं कि नमाज तक बंद कर दी है ! बुढ़ापे में सठिया गया है । लेकिन उसने इसका कोई खंडन न किया । वह चोरी छिपे नमाज पढ़ता । वह नमाज सार्थक होने लगी । संतजनों कहने का भाव *सिर्फ इतना की भक्ति हो तो केवल प्रभु को रिझाने के लिए न की दुसरो को दिखाने के लिए* क्योंकी ये तो घट घट की जानता है भले बुरे की पीर पहचानता । हम लोगो को नही प्रभु को नही सतगुरु को नही बल्कि खुद को ही धोका दे रहे होते है आओ संतो कृपा करो की मनो के भाव और हमारे कर्म एकसमान हो । और एक भक्ति वाला हमारा जीवन बने किसी प्रकार का दिखावा हमारे जीवन में न हो भीतर और बहार दोनों तरफ से हम एकसमान हो इस ब्रह्म रस का आनंद प्राप्त कर पाये यही प्रार्थना दातार प्रभु के चरणो में है ।

Contributed by
Mrs Megha Gupta ji