गुरू नानक जी के समय संगत का नियम था कि वह सुबह सुबह गुरू जी की हजूरी में भक्ति के शब्द पढ़ती थी| गुरू साहिब ने देखा कि एक छोटा सा लड़का रोज आकर चुपचाप आकर उनके पीछे खड़ा होकर शब्द सुनता|
एक दिन गुरु जी ने पूछा- बेटा, तू रोज सवेरे यहां क्यों आता है, तेरा यह सोने का समय होता है, तुझे वाणी के पाठ से क्या मिलता है? इस उमऱ मे तो तुझे साथियों के साथ खेलना चाहिए, पर तू यहां क्यों आ जाता है?
गुरू साहिब की बात का जबाव लड़के ने बड़े प्यार से दिया," एक बार मेरी मां ने मुझे चूल्हे में लकड़ियां जलाने को कहा| मैनै देखा कि आग पहले छोटी-२ लकड़ियों को लगती है| पर मोटी व बड़ी लकड़ियों को मुशि्कल से आग लगती है| उस समय से मैं डरने लगा कि बड़ी उम्र वालों से पहले मुझे मौत की आग न लग जाए| अतः मैं हमेशा आपकी संगत में रहना चाहता हूं|"
गुरू साहिब उसकी समझदारी देखकर बहुत खुश हूए और बोले," तू उम्र मे बच्चा हैै, पर अक्ल का बूढ़ा है|"
हम क्यों नहीं, और हमें तो हमारे सतगुरू ने कोई कमी नहीं रखी| कमी हमारी अपनी है| आओ हम एक अच्छे सत्संगी बनें जी|
Contributed by
Mrs Gunjan ji
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