Tuesday, December 12, 2017

समर्पण

एक बुढ़िया थी उसके पास जो कुछ था बह सब परमात्मा को अर्पण कर चुकि थी।इसके अलावा भी उसके पास जो भी होता सभी परमात्मा पर चढ़ा देती ! चाहे वह भोतिक हो चाहे वह दिल के उदगार हो या मन बिचार यहां तक कि सुबह वह जो घर का कचरा वगैरह फेंकती, वह भी घूरे पर जाकर कहती यह भी तुझको ही समर्पित ! लोगों ने जब यह सुना तो उन्होंने कहा - यह तो हद हो गई ! फूल चढ़ाओ, मिष्ठान चढ़ाओ ! कचरा ? कचरा तो कोई भी नही चढाते। एक फकीर गुजर रहा था, उसने देखा कि वह बुढ़िया गई घूरे पर, उसने जाकर सारा कचरा फेंका और कहा -हे प्रभु, तुझको ही समर्पित ! उस फकीर ने कहा - माई , ठहर ! मैंने बड़े—बड़े संत देखे ! पर तू यह क्या कह रही है ? उसने कहा --मुझसे मत पूछो उससे ही पूछो ! जब सब कुछ प्रभु को दे दिया तो कचरा भी मैं क्यों बचाऊं ? फकीर चला गया उस फकीर ने उस रात एक स्वप्न देखा कि वह स्वर्ग ले जाया गया है। परमात्मा के सामने खड़ा है। स्वर्ण सिंहासन पर परमात्मा विराजमान है ! सुबह हो रही है, सूरज ऊग रहा है, पक्षी गीत गाने लगे सपना देख रहा है और तभी अचानक एक टोकरी भर कचरा आ कर परमात्मा के सिर पर पड़ा और प्रभू ने कहा - यह माई भी एक दिन नहीं चूकती ! फकीर ने कहा -- मैं जानता हूं इस माई को कल ही तो मैंने इसे देखा था और कल ही मैंने उससे कहा था कि यह तू क्या करती है ? घंटे भर वहां रहा फकीर, बहुत से लोगों को जानता था जो फूल मिष्ठान चढ़ाते हैं , लेकिन उनका चढ़ावा तो कंही नजर नहीं आया ! उसने परमात्मा से पूछा -प्रभु फूल चढ़ाने वाले लोग भी तो हैं जो सुबह सुबह से ही फूल तोड़ते हैं, आसपास से फूल तोड़कर चढ़ाते हैं उनके फूल तो कहीं गिरते नहीं दिखते ? परमात्मा ने उस फकीर को कहा - जो आधाआधूरा चढ़ाता है, उसका यहां पहुंचता नहीं ! इस माई ने सब कुछ चढ़ा दिया है, कुछ नहीं बचाती, जो है सब चढ़ा दिया है !अपना जो सब कुछ चढ़ाता है, उसका ही मेरे पास पहुंचता है। सारी उम्र भर हम अपने अहंकार को ही नहीं छोड़ पाते | हम दूसरों को बिना लोभ कुछ अर्पण भी नहीं कर पाते थ| भगवान् को भी कुछ पाने की लालसा से ही प्रसाद चढाते हैं, लालसा पूर्ण नहीं होती तो भगवान् बदल लेते हैं | जबकि भगवान् तो एक ही है |घबड़ाहट में फकीर की नींद खुल गई । जो पसीने—पसीने हो रहा था, छाती धड़क रही थी । क्योंकि अब तक की गयी मेहनत, उसे याद आयी कि वह सब व्यर्थ गई । मैं भी तो छांटछांट कर चढ़ाता रहा हूँ !!समर्पण सम्पूर्ण ही हो सकता है अधूरा नही !!