Friday, April 16, 2010
कुम्भ स्नान - एक दुर्लभ तीर्थ
भौतिक ज़रूरतें तो धन से पूरी हो जाती हैं पर आत्मा कि ज़रुरत तो तीरथ ही पूरी करतें हैं। शायद मेरी आत्मा कुछ विशेष ही तलाश कर रही थी। बृहस्पति जब कुम्भ राशि में प्रवेश करता है तब समझ जाना चाहिए कि हरद्वार में अमृत बरसने वाला है। परन्तु उसी समय जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो वो ग्रह स्थिति सब से सर्वोत्तम होती है। इसी लिए उस दिन पवित्र गंगा के स्नान को " प्रमुख शाही स्नान " का नाम दिया गया है। बस इसी बात ने मुझे झकझोर कर रख दिया। शायद यह मौका मेरे जीवन का पहला और अंतिम है इस लिए में इसे किस्सी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। १४ अप्रैल २०१० को वो क्षण आ ही गया जिस का मुझे बेसब्री से इंतज़ार था। प्रात काल कि शुभ वेला में में, मैं अपनी पत्नी सहित अपने लक्ष्य को पाने हरिद्वार प्रस्थान कर गया। मेरा हौंसला बहुत ही बुलंद था। मैं किसी भी विपरीत स्थिति से साक्षात्कार करने के लिए तैयार था। स्टेशन पर उतरते ही यह स्पष्ट हो गया था कि लक्ष्य को पाना बेहद ही कठिन होगा। चारो तरफ पुलिस गिद कि तरह नज़रे जमाये खड़ी रही थी। जदोजेहद के बाद हम राम भवन धरमशाल पहुंचे। इस के बाद यही निर्णय किया कि किसी नजदीक के घाट पर स्नान कर कुम्भ स्नान आरम्भ करते हैं । हमने अति शीघ्र भाटिया घाट पर प्रथम स्नान किया। सर्वप्रथम अपने इष्ट को प्रणाम कर सभी सगे सम्भंधियों के नाम कि डूबकी लगाई। अंततः अपने पूर्वजों का तर्पण किया। ऐसी मान्यता है कि तीर्थों पर यदि अपने पूर्वजों को याद किया जाए तो वेह विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं. अब बस एक ही इच्छा शेष थी कि ब्रह्म कुण्ड तक कैसे पहुँच जाए। ब्रह्म कुण्ड , हरिद्वार के सब से पवित्रतम क्षेत्र है। "हर कि पौड़ी " नामक घाट पर स्थित यह कुण्ड भगवान् विष्णु के चरण अपने अन्दर समेटे हुए है। चौकसी और नाकेबंदी इतनी ज़बरदस्त थी कि शाही स्नान के दौरान वहां पर केवल साधुओं के अलावा परिंदा भी पर नहीं मर सकता था। एक घंटा आराम करने के बाद हमने बड़ा भारी जोखिम उठाते हुए ब्रह्म कुण्ड कि और जाने का निश्चय किया। शाम ५ बजे गुमनाम गलियों को चीरते हुए उत्तर दिशा कि और बढ चले। ब्रह्म कुण्ड से मात्र १०० मीटर पहले पुलिस ने सारी जनता को रोक दिया। लाखो लोग उस लक्ष्मण रेखा के पार जाने जाने के लिए कई घंटो से बेताब थी। सौभाग्यवश हमे लाइन में सबसे आगे लगने का मौका मिल गया. अगले २.५ घंटो तक हम एक सूत भी नहीं हिल पाए. पुलिस अपना काम मुस्तेदी से कर रही थी. मैंने एक विचित्र चीज दखी। सिर्फ एक पुलिस वाला सिपाही ऐसा था जो अपने स्वाभाव के विरुद्ध बड़े ही शांत भाव से ओर बड़ी ही विनम्र भाषा में लोगो से बैठने के लिए निवेदन कर रहा था।उस का नाम था "तरुण नायक". उस कि आँखों में एक अलग सी ही चमक थी. उस ने भीड़ से वादा किया कि वो स्वयं सब को ब्रह्म कुण्ड तक ले जाएगा जब पुलिस कि नाके बंदी १ घंटे के बाद हट जायेगी. मैं लगातार उस पुलिस सिपाही पर नज़र लगा कर बैठा था।लगभग शाम के ७,३० बज चुके थे. "निर्मल अखारे" के साधुओ ने अंतिम स्नान किया. हम सब उत्साहित थे कि अब हमारी बारी आने ही वाली थी। तभी अचानक एक घोषणा हुई कि जिस द्वार पर हम खड़े थे उसे सील कर दिया गया है और वो अब नहीं खुलेगा। यह सुनते ही जनता आक्रोश से भर गयी। मैं सहस के साथ तरुण जी के पास गया और हाथ जोर कर उन्हें उन का वादा याद दिलाया। वो सिपाही अपने अफसरों कि परवाह न करते हुए मेरा हाथ पकड़ कर विपरीत दिशा मैं चलने लगा। मैं साए कि तरह उस के साथ चलने लगा। लाखो कि संख्या में लोगो कि बीच में एक अजीब शक्ति मुझे खींचे चली जा रही थी। उस शक्ति ने मुझे कुण्ड से सिर्फ २० फुट कि दूरी पर पहुंचा दिया। अपनी मंजिल इतनी नजदीक पा कर पूरे शरीर पर सिरहन दौड़ पड़ी । सब कुछ एक दुर्लभ स्वप्न सा लग रहा था। हम बिजली सी तेजी दिखाते हुए कुण्ड की तरफ दौड़ पड़े। अनगिनित लोग वहां पहले से ही मजूद थे। अगले ही पल में ब्रह्म कुण्ड में था। मेरी आत्मा गद गद हो गई गंगा का स्पर्श पाते ही. एक पल तो ऐसा लगा मनो पूर्वजन्म के पुण्य कर्म संचित हो कर मेरे सामने ही खड़े हो। मुझे यकीं हो गया की गंगा सच मुच आज अमृत समेटे हुए बह रही है। मैंने विशेष मंत्रो द्वारा स्नान पूर्ण किया। तत्पश्चात कुण्ड से जल रुपी अमृत मैने एक पात्र में संकलित किया। आज भी जब में उस सिपाही के बारे में याद करता हूँ तो आँखें नाम हो जाती है क्योंकि निश्चित रूप से वो वही पूर्ण आत्मा थी जिसने मुझे यात्रा आरम्भ होने से पहले हरिद्वार में मिलने का वादा किया था.
Wednesday, April 7, 2010
Curse to god
Once Sage Mandavya was meditating in aashram. One day , a thief who stole the valuables from the king tried to hide himself in his aashram to escape the punishment. The soldiers of the king reached the aashram in search of thief and found the valuables of king which was hidden by the thief in the aashram.The soldiers suspected sage to be thief. They produced the sage in court. The king sentenced him severe punishment. This hurts the sage too much. After the completion of punishment, he decided to visit Yamlokam, the abode of Dharmraj(Yam), the god of death. Sage questions him about the reason for his sufferings on earth. Dharmraj ordered his accountant,Chitragupt to clarify the doubts of the sage. Chitragupta is the assistant of Dharmraj, who keep the account of all the good and bad deeds of every creature on earth. He explained the one sin of sage Mandavya which he done in his childhood. As per Chitragupta, the sage used to tease the insects by piercing the needles. But this explanation was not satisfactory answer for sage. He argued with Dharmraj that the child mind is innocent and lacks discretion and there should be no punishment for that. Sage was filled with anger for such rules of God as he thought it to be unjustified. The sage Mandavya cursed Dharmraj for making such rules that he too has to be reborn as a human on earth. Also he stated that from now , if a sin committed by a child by mistake then it will not be qualify for punishment. Vice versa if a sin committed towards child then it will be liable for punishment.After that curse Dharmraj born as Vidur.He became minister in the court of Dhritraashtra.
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