Saturday, June 2, 2018

नज़र

मजनू पागल था लैला के लिए।  उसके गांव के राजा ने उसे बुलाया, क्योंकि उसकी हालत बिगड़ती गयी, बिगड़ती गयी, गांव भर उसकी चर्चा करता, पागल भी लोग उसे कहते, दीवाना भी कहते और दया भी खाते।
आखिर राजा ने उसे बुलाया और कहा—तू इस लैला के पीछे पड़ा है, मैं तेरी लैला को जानता हूं; सच तो यह है कि तेरा इतना लगाव देखकर मैं भी उत्सुक हो गया था कि देखूं यह लैला है कौन?

मगर पाया कि एक साधारण सी स्त्री; तू व्यर्थ परेशान हो रहा है। तुझ पर मुझे दया आती है। तू महल के सामने से रोता निकलता है, जब देख तेरे आंसू गिरते रहते हैं, हर गली तूने भर दी है गांव कीं—लैला लैला। मुझे तुझ पर इतनी दया आती है कि तू मेरे राजमहल से कोई भी स्त्री चुन ले

उसने बारह युवतियां खड़ी करवा दीं। सुंदरतम स्त्रियां थीं राजमहल में, देश की सुंदरतम स्त्रियां थीं। मजनू से कहा—चुन ले। मजनू उनके पास गया, एक—एक को इनकार करता गया, फिर आखिर में बोला—लेकिन इनमें लैला तो कोई भी नहीं।

राजा हंसा, उसने कहा—तू पागल है, तू निश्चित पागल है, लोग ठीक ही कहते हैं। लैला इनके सामने कुछ भी नहीं, और मैंने तेरी लैला को देखा है, और मैं ज्यादा अनुभवी हूं, जिंदगी में मैंने बहुत सुंदर स्त्रियां जानी हैं, तूने अभी जाना क्या, जवान छोकरा है!

मजनू ने कहा—आप कहते हैं ठीक ही कहते होंगे, लेकिन लैला को देखने के लिए मजनू की नजर चाहिए, उसके बिना कोई लैला को देख ही नहीं सकता

आपके पास मेरी आंख कहां? आपने अपनी आंख से देखा होगा। मेरी आंख से देखें, तब लैला दिखायी पड़ेगी

इसलिए प्रेमी पागल मालूम होता है, क्योंकि किसी और को तो दिखायी नहीं पड़ता, प्रेमी को न मालूम क्या क्या दिखायी पड़ता है..

No comments: