Sunday, June 3, 2018

कर्म का सामना

महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा "मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ? दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था.द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया. श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले- "कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ ।उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा।मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया। जब मैं चल भी नही पाता था.. तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए। कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े ।जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था! जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा।हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनौतिओं से रहित नहीं है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नहीं होता ।सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं।इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है, इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान होता है, इस बात से भी कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार कर्मज्ञान के साथ करते हैं।कर्मज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है

Saturday, June 2, 2018

नज़र

मजनू पागल था लैला के लिए।  उसके गांव के राजा ने उसे बुलाया, क्योंकि उसकी हालत बिगड़ती गयी, बिगड़ती गयी, गांव भर उसकी चर्चा करता, पागल भी लोग उसे कहते, दीवाना भी कहते और दया भी खाते।
आखिर राजा ने उसे बुलाया और कहा—तू इस लैला के पीछे पड़ा है, मैं तेरी लैला को जानता हूं; सच तो यह है कि तेरा इतना लगाव देखकर मैं भी उत्सुक हो गया था कि देखूं यह लैला है कौन?

मगर पाया कि एक साधारण सी स्त्री; तू व्यर्थ परेशान हो रहा है। तुझ पर मुझे दया आती है। तू महल के सामने से रोता निकलता है, जब देख तेरे आंसू गिरते रहते हैं, हर गली तूने भर दी है गांव कीं—लैला लैला। मुझे तुझ पर इतनी दया आती है कि तू मेरे राजमहल से कोई भी स्त्री चुन ले

उसने बारह युवतियां खड़ी करवा दीं। सुंदरतम स्त्रियां थीं राजमहल में, देश की सुंदरतम स्त्रियां थीं। मजनू से कहा—चुन ले। मजनू उनके पास गया, एक—एक को इनकार करता गया, फिर आखिर में बोला—लेकिन इनमें लैला तो कोई भी नहीं।

राजा हंसा, उसने कहा—तू पागल है, तू निश्चित पागल है, लोग ठीक ही कहते हैं। लैला इनके सामने कुछ भी नहीं, और मैंने तेरी लैला को देखा है, और मैं ज्यादा अनुभवी हूं, जिंदगी में मैंने बहुत सुंदर स्त्रियां जानी हैं, तूने अभी जाना क्या, जवान छोकरा है!

मजनू ने कहा—आप कहते हैं ठीक ही कहते होंगे, लेकिन लैला को देखने के लिए मजनू की नजर चाहिए, उसके बिना कोई लैला को देख ही नहीं सकता

आपके पास मेरी आंख कहां? आपने अपनी आंख से देखा होगा। मेरी आंख से देखें, तब लैला दिखायी पड़ेगी

इसलिए प्रेमी पागल मालूम होता है, क्योंकि किसी और को तो दिखायी नहीं पड़ता, प्रेमी को न मालूम क्या क्या दिखायी पड़ता है..