Friday, July 29, 2016

First Class

It was a crowded flight and a beautiful lady aged around 40 years boarded the flight as the passenger. She searched for her seat and found her seat was next to a black man.

She showed that she wasn’t in a hurry to take her seat as she found it too hard and awkward to sit next to a black man.

Feeling disgusted, the beautiful lady called the air hostess and asked her to change her seat.

The air hostess requested for a reason why she would like to change the seat.
She replied, “It is impossible for me to sit next to a black man, I hate it!

The air hostess was shocked to hear these hard words from the one who looked so dignified and composed.
She again demanded her to get her a new seat. The airhostess said she would do so and requested her to wait for a few minutes.

The air hostess went in search of an empty seat for the lady. The air hostess told the lady, ‘I’m afraid Madam, there is no vacant seat in the economy class and the flight is almost full! However, we do follow the policy to fulfil the desires of our passengers to the maximum extent possible. So, give me a minute, I will check with my captain and get back to you, as we feel it is not fair to force a passenger to have an unpleasant seat!’

The lady waited for a couple of minutes and the air hostess came.

The latter replied, ‘Madam, sorry for this inconvenience. We don’t want to make your journey unpleasant by making you sit next to someone with whom you aren’t comfortable. There is one seat available in the First Class. Although we don’t allow any passenger to move from economy class to first class, to make you a happy customer, we are doing this for the first time in our company’s history. Our captain agreed to shift from economy class to first class.!’

Just before the lady said any word as a reply, the air hostess humbly requested the black man and told him, ‘Dear sir, would you please shift your seat to first class? Please retrieve all your personal items from your seat and our captain would like to move you to first class as we don’t really want you to have an uncomfortable journey sitting next an unpleasant person, with an ugly mind!‘

The lady was quiet and frozen! A few of the fellow passengers were happy and gave huge applause for the flight crew!

Kindly read this awesome story - its little lengthy but truly touching.
Also like to request you  to Fwd to all right-thinking people who detest discrimination based on colour, race, caste and religion.

Contributed by
Mr Rajat ji

Monday, July 25, 2016

पूंजी

एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था। एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े,  उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए। कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो  पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा। कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे। मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।" कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला,  "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"  पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो!  अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए"  बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।  पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे।
उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्हलने का अवसर दे दिया।" कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है

Contributed by
Mr Gothi ji

The Heritage

At the point of death, a man, Tom Smith, called his children and he advised them to follow his footsteps so that they can have peace of mind in all that they do..

His daughter, Sara, said,
"Daddy, its unfortunate you are dying without a penny in your bank..
Other fathers' that you tag as being corrupt, thieves of public funds left houses and properties for their children; even this house we live in is a rented apartment..
Sorry, I can't emulate you, just go, let's chart our own course..

Few moments later, their father gave up the spirit..

Three years later, Sara went for an interview in a multinational company..
At interview the Chairman of the committee asked,
"Which Smith are you..??"

Sara replied,
"I am Sara Smith. My Dad Tom Smith is now late.."

Chairman cuts in,
"O my God, you are Tom Smith's daughter..?"

He turned to the  other members and said,
"This Smith man was the one that signed my membership form into the Institute of Administrators and his recommendation earned me where I am today. He did all these free. I didn't even know his address, he never knew me. He just did it for me.."
He turned to Sara,
"I have no questions for you, consider yourself as having gotten this job, come tomorrow, your letter will be waiting for you.."

Sara Smith became the Corporate Affairs Manager of the company with two Cars with Drivers, A duplex attached to the office, and a salary of £1,00,000 per month excluding allowances and other costs..

After two years of working in the company, the MD of the company came from America to announce his intention to resign and needed a replacement. A personality with high integrity was sought after, again the company's Consultant nominated Sara Smith..

In an interview, she was asked the secret of her success,,

With tears, she replied, "My Daddy paved these ways for me. It was after he died that I knew that he was financially poor but stinkingly rich in integrity, discipline and honesty".

She was asked again, why she is weeping since she is no longer a kid as to miss her dad still after a long time..

She replied, "At the point of death, I insulted my dad for being an honest man of integrity. I hope he will forgive me in his grave now. I didn't work for all these, he did it for me to just walk in".

So, finally she was asked, "Will you follow your father's foot steps as he requested ?"

And her simple answer was, "l now adore the man, I have a big picture of him in my living room and at the entrance of my house. He deserves whatever I have after God".

Are you like Tom Smith..?
It pays to build a name, the reward doesn't come quickly but it will come however long it may take and it lasts longer..

Integrity, discipline, self control and fear of God makes a man wealthy, not the fat bank account..

Contributed by
Mr Bharat ji

Sunday, July 24, 2016

भगवान् से मिलन

एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था , पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।

1 दिन उसने 1 थैले में 5 ,6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने के लिये निकल पड़ा।

चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।
उसने देखा एक नदी के तट पर 1 बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं, जिनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी , और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों।

वो 6 -7 साल का मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।
फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाँथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली , माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे ,,,,

बच्चा माता को देखे जा रहा था , जब माता ने रोटी खाली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दे दी ।
माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
,,,,

जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा और वो बार- बार पीछे मुडकर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं ।

बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,
बच्चा बहूत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा,
तो बच्चे ने बताया!

माँ ! ....आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं,,, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ....

उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो गाव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा ..??

माता जी बोलीं,,,, मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी,, मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे सांथ बैठकर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,, भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।

इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।
वास्तव में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए  अगाध सच्चा प्रेम था ।
और प्रभु ने दोनों को , दोनों के लिये, दोनों में ही  ( ईश्वर) खुद को भेज दिया।

जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो, हमे हर एक जीव में वही नजर आता है।

Contributed by
Mrs Preeti ji

परमार्थ

  एक सेठ बड़ा साधु सेवी था। जो भी सन्त महात्मा नगर में आते वह उन्हें अपने घर बुला कर उनकी सेवा करता। एक बार एक महात्मा जी सेठ के घर आये। सेठानी महात्मा जी को भोजन कराने लगी। सेठ जी उस समय किसी काम से बाज़ार चले गये। भोजन करते करते महात्मा जी ने स्वाभाविक ही सेठानी से कुछ प्रश्न किये। पहला प्रश्न यह था कि तुम्हारा बच्चे कितने हैं? सेठानी ने उत्तर दिया कि ईश्वर की कृपा से चार बच्चे हैं। महात्मा जी ने दूसरा प्रश्न किया कि तुम्हारा धन कितना है? उत्तर मिला कि महाराज! ईश्वर की अति कृपा है लोग हमें लखपति कहते हैं। महात्मा जी जब भोजन कर चुके तो सेठ जी भी बाज़ार से वापिस आ गये और सेठ जी महात्मा जी को विदा करने के लिये साथ चल दिये। मार्ग में महात्मा जी ने वही प्रश्न सेठ से भी किये जो उन्होंने सेठानी से किये थे। पहला प्रश्न था कि तुम्हारे बच्चे कितने हैं? सेठ जी ने कहा महाराज! मेरा एक पुत्र है। महात्मा जी दिल में सोचने लगे कि ऐसा लगता है सेठ जी झूठ बोल रहे हैं। इसकी पत्नी तो कहती थी कि हमारे चार बच्चे हैं और हमने स्वयं भी तीन-चार बच्चे आते-जाते देखे हैं और यह कहता है कि मेरा एक ही पुत्र है। महात्मा जी ने दुबारा वही प्रश्न किया, सेठ जी तुम्हारा धन कितना है? सेठ जी ने उत्तर दिया कि मेरा धन पच्चीस हज़ार रूपया है। महात्मा जी फिर चकित हुए इसकी सेठानी कहती थी कि लोग हमें लखपति कहते हैं। इतने इनके कारखाने और कारोबार चल रहे हैं और यह कहता है मेरा धन पच्चीस हज़ार रुपये है। महात्मा जी ने तीसरा प्रश्न किया कि सेठ जी! तुम्हारी आयु कितनी है? सेठ ने कहा-महाराज मेरी आयु चालीस वर्ष की है महात्मा जी यह उत्तर सुन कर हैरान हुए सफेद इसके बाल हैं, देखने में यह सत्तर-पचहत्तर वर्ष का वृद्ध प्रतीत होता है और यह अपनी आयु चालीस वर्ष बताता है। सोचने लगे कि सेठ अपने बच्चों और धन को छुपाये परन्तु आयु को कैसे छुपा सकता है? महात्मा जी रह न सके और बोले-सेठ जी! ऐसा लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो? सेठ जी ने हाथ जोड़कर विनय की महाराज! झूठ बोलना तो वैसे ही पाप है और विशेषकर सन्तोंं के साथ झूठ बोलना और भी बड़ा पाप है। आपका पहला प्रश्न मेरे बच्चों के विषय में था। वस्तुतः मेरे चार पुत्र हैं किन्तु मेरा आज्ञाकारी पुत्र एक ही है। मैं उसी एक को ही अपना पुत्र मानता हूँ। जो मेरी आज्ञा में नहीं रहते वे मेरे पुत्र कैसे? दूसरा प्रश्न आपका मेरा धन के विषय में था। महाराज! मैं उसी को अपना धन समझता हूँ जो परमार्थ की राह में लगे। मैने जीवन भर में पच्चीस हज़ार रुपये ही परमार्थ की राह में लगाये हैं वही मेरी असली पूँजी है। जो धन मेरे मरने के बाद मेरे बन्धु-सम्बन्धी ले जावेंगे वह मेरा क्योंकर हुआ? तीसरे प्रश्न में आपने मेरी आयु पूछी है। चालीस वर्ष पूर्व मेरा मिलाप एक आप जैसे साधु जी से हुआ था। उनकी चरण-शरण ग्रहण करके मैं तब से भजन-अभ्यास और साधु सेवा कर रहा हूँ। इसलिये मैं इसी चालीस वर्ष की अवधि को ही अपनी आयु समझता हूँ।
              कबीर संगत साध की, साहिब आवे याद।
              लेखे में सोई घड़ी, बाकी दे दिन बाद। ।
जब कभी सन्त महापुरुषों का मिलाप होता है-उनकी संगति में जाकर मालिक की याद आती है, वास्तव में वही घड़ी सफल है। शेष दिन जीवन के निरर्थक हैं।

Contributed by
Sh Vineet ji

परमार्थ

  एक सेठ बड़ा साधु सेवी था। जो भी सन्त महात्मा नगर में आते वह उन्हें अपने घर बुला कर उनकी सेवा करता। एक बार एक महात्मा जी सेठ के घर आये। सेठानी महात्मा जी को भोजन कराने लगी। सेठ जी उस समय किसी काम से बाज़ार चले गये। भोजन करते करते महात्मा जी ने स्वाभाविक ही सेठानी से कुछ प्रश्न किये। पहला प्रश्न यह था कि तुम्हारा बच्चे कितने हैं? सेठानी ने उत्तर दिया कि ईश्वर की कृपा से चार बच्चे हैं। महात्मा जी ने दूसरा प्रश्न किया कि तुम्हारा धन कितना है? उत्तर मिला कि महाराज! ईश्वर की अति कृपा है लोग हमें लखपति कहते हैं। महात्मा जी जब भोजन कर चुके तो सेठ जी भी बाज़ार से वापिस आ गये और सेठ जी महात्मा जी को विदा करने के लिये साथ चल दिये। मार्ग में महात्मा जी ने वही प्रश्न सेठ से भी किये जो उन्होंने सेठानी से किये थे। पहला प्रश्न था कि तुम्हारे बच्चे कितने हैं? सेठ जी ने कहा महाराज! मेरा एक पुत्र है। महात्मा जी दिल में सोचने लगे कि ऐसा लगता है सेठ जी झूठ बोल रहे हैं। इसकी पत्नी तो कहती थी कि हमारे चार बच्चे हैं और हमने स्वयं भी तीन-चार बच्चे आते-जाते देखे हैं और यह कहता है कि मेरा एक ही पुत्र है। महात्मा जी ने दुबारा वही प्रश्न किया, सेठ जी तुम्हारा धन कितना है? सेठ जी ने उत्तर दिया कि मेरा धन पच्चीस हज़ार रूपया है। महात्मा जी फिर चकित हुए इसकी सेठानी कहती थी कि लोग हमें लखपति कहते हैं। इतने इनके कारखाने और कारोबार चल रहे हैं और यह कहता है मेरा धन पच्चीस हज़ार रुपये है। महात्मा जी ने तीसरा प्रश्न किया कि सेठ जी! तुम्हारी आयु कितनी है? सेठ ने कहा-महाराज मेरी आयु चालीस वर्ष की है महात्मा जी यह उत्तर सुन कर हैरान हुए सफेद इसके बाल हैं, देखने में यह सत्तर-पचहत्तर वर्ष का वृद्ध प्रतीत होता है और यह अपनी आयु चालीस वर्ष बताता है। सोचने लगे कि सेठ अपने बच्चों और धन को छुपाये परन्तु आयु को कैसे छुपा सकता है? महात्मा जी रह न सके और बोले-सेठ जी! ऐसा लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो? सेठ जी ने हाथ जोड़कर विनय की महाराज! झूठ बोलना तो वैसे ही पाप है और विशेषकर सन्तोंं के साथ झूठ बोलना और भी बड़ा पाप है। आपका पहला प्रश्न मेरे बच्चों के विषय में था। वस्तुतः मेरे चार पुत्र हैं किन्तु मेरा आज्ञाकारी पुत्र एक ही है। मैं उसी एक को ही अपना पुत्र मानता हूँ। जो मेरी आज्ञा में नहीं रहते वे मेरे पुत्र कैसे? दूसरा प्रश्न आपका मेरा धन के विषय में था। महाराज! मैं उसी को अपना धन समझता हूँ जो परमार्थ की राह में लगे। मैने जीवन भर में पच्चीस हज़ार रुपये ही परमार्थ की राह में लगाये हैं वही मेरी असली पूँजी है। जो धन मेरे मरने के बाद मेरे बन्धु-सम्बन्धी ले जावेंगे वह मेरा क्योंकर हुआ? तीसरे प्रश्न में आपने मेरी आयु पूछी है। चालीस वर्ष पूर्व मेरा मिलाप एक आप जैसे साधु जी से हुआ था। उनकी चरण-शरण ग्रहण करके मैं तब से भजन-अभ्यास और साधु सेवा कर रहा हूँ। इसलिये मैं इसी चालीस वर्ष की अवधि को ही अपनी आयु समझता हूँ।
              कबीर संगत साध की, साहिब आवे याद।
              लेखे में सोई घड़ी, बाकी दे दिन बाद। ।
जब कभी सन्त महापुरुषों का मिलाप होता है-उनकी संगति में जाकर मालिक की याद आती है, वास्तव में वही घड़ी सफल है। शेष दिन जीवन के निरर्थक हैं।

Contributed by
Sh Vineet ji

निमित्त


एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना..कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि---
प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया।लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। उसने बिना कल की चिंता किए, उसने सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं।उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।साधु ने समझाया, तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया, इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।
सार-किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं , हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो ये मैंने दिया! दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं तो कहते हैं मैंने दिलाया, । वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निहित मात्र बनाया हैं उन तक उनकी जरूरतों को पहूचानें के लिये तो निहित होने का घमंड कैसा??

Contributed by
Mrs Rashmi ji

Mind to NO Mind

There was once a very poor man, who woke up hungry with only
10 rupees left in his pocket.
He decided to go to the market and see if his 10 rupees could buy him some food.

At the market, he met a fancy clothed man behind a table with a beautiful oil lamp on it, and a sign that read, "10 rupees".

The poor man could not believe his eyes, and asked the man what the catch is. "It's true, the lamp only costs 10 rupees", the man said. He further explained, that in the lamp there lived a genie, who fulfilled all your desires.

"Then why do you sell it?", the poor man asked.

"Well, the genie is always active and rather impatient", said the man.
"And if you don't pay attention to him, he will start taking things away".

"Well OK", said the poor man,
"Since I don't have much to lose,
I will buy it from you".

On arriving home, he rubbed the lamp and the genie appeared. "How can I serve you, master?", he asked.

"Prepare me a meal worthy of a King", the poor man commanded. Within a second the genie served an opulent meal with multiple courses.

The poor man was delighted, but when he started eating,
the genie asked again - "And now, how can I serve you master?"

Keeping in mind that the genie can also take away all the goodies, the poor man commanded, "Build me a beautiful castle, suitable for a King."

Only a few seconds passed by, and the man found himself in a beautiful palace. He started to explore it, but there came the genie again, and asked "How can I serve you, master?"

The man got annoyed at the pace of the genie hence went to the village sage, and explained his problem.

After a silent conversation with the sage he returned and now when the genie asked him for work, the man said, "Genie, build me a large pole and stick it in the ground".

The genie immediately built a pole and stuck it in the ground.

"Now genie, I want you to climb up and down the pole, over and over again", the man said.

The genie started to climb up and down the pole, right away.

The man now had time to eat his meal, explore his palace and do other things. The sage came to meet him and when they both went to see what the genie was doing, they saw that he had fallen asleep next to the pole.

"And so it is, with the thinking genie of every man...the Mind", said the sage. "It is restless in its desire to satisfy every desire, and thus fragments our being. The pole is a tool called a 'mantra' or 'divine name'. By repeating it over and over again, our restless mind is kept busy until it gets so absorbed in it, that it falls asleep. And this way our true self can enjoy peace and calm."

*Lesson:* We are more than our mind but very often we act as per the dictates of the mind, due to our inability to keep it in check.
A mighty warrior like Arjuna too, had expressed his inability and despondency to control the mind,
to Lord Krishna. The Lord agreed to Arjuna but advised that mind can be slowly got under control with the continuous practice of chanting the divine name.

Contributed by
Mrs Ojasvita ji

Lord Shiva and Nandi

Generally We see him sitting directly opposite the main door of temple where Shiva's idol or Shivalingam is located.

He is not waiting for him to come out and say something.

He is in waiting.

Nandi is a symbolism of eternal waiting, because waiting is considered the greatest virtue in Indian culture.

One who knows how to simply sit and wait is naturally meditative.

He is not expecting anything. He will wait forever.

Nandi is Shiva’s closest accomplice because he is the essence of receptivity.

Before you go into a temple, you must have the quality of Nandi - to simply sit.

So, just by sitting here, he is telling you, “When you go in, don’t do your fanciful things.

Don’t ask for this or that. Just go and sit like me."

The fundamental difference between Prayer & Meditation is that - Prayer means you are trying to talk to God. Meditation means you are willing to listen to God.

You are willing to just listen to existence, to the ultimate nature of creation.

You have nothing to say, you simply listen.

That is the quality of Nandi – he just sits, alert, not sleepy. He is not sitting in a passive way, very active, full of alertness, full of life, but just sitting – that is Meditation.

Contributed by
Mr Gaurav Narang ji

कुंडली और पुनर्जन्म

यह प्रकृति का नियम है कि जिनका जन्म होता है उन्हें एक दिन मरना भी होगा। अगर मुक्ति नहीं मिली तो वापस पृथ्वी पर आकर अपने कर्मों का फल फिर से भोगना पड़ेगा। इस तरह जीवन और मृत्यु का सिलसिला चलता रहता है लेकिन जीवन और मृत्यु के बीच में प्राण कहां रहता है यह जानने की चाहत हर व्यक्ति की होती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इसे जानना भी बहुत आसान है। जब व्यक्ति का जन्म होता है तब पूर्व जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक की सभी स्थितियों को भगवान ग्रहों एवं राशि के माध्यम से जन्मकुण्डली में निर्धारित कर देते हैं।
ज्योतिष में मरणोपरांत पुर्नजन्म एवं परलोक
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जीवात्मा एक देह से दूसरी देह में जन्म लेती है. शरीर का नाश होता है, आत्मा का नहीं. पुराणों के अनुसार मनुष्य पाप और पुण्य का फल भोगने के लिए ही पुनर्जन्म लेता है. पुराणों में भी भगवान विष्णु के दस मुखय अवतारों (पुनर्जन्म) की धारणा को स्वीकारा गया है. महर्षि पराशर के अनुसार सूर्य से राम, चंद्रमा से कृष्ण, मंगल से नरसिंह, बुध से भगवान बुद्ध, गुरु से वामन, शुक्र से परशुराम, शनि से कूर्म, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुए हैं. भगवान गौतम बुद्ध के बारे में कहा गया है कि उन्हें अपने पूर्व के 5000 जन्मों की स्मृति थी. मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार 84 लाख योनीयों में से किसी एक योनी में जन्म लेता है. मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि मैं पूर्व जन्म में कौन था, किस योनी में था और कहां से आया हूं? इन सब प्रश्नों के उत्तर भारतीय ज्योतिष के द्वारा संभव है. जन्म कुंडली का पंचम भाव, पंचम भाव का स्वामी एवं पंचम भाव स्थित ग्रह व सूर्य और चंद्रमा में जो ग्रह बली हो उसकी द्रेष्काण में स्थिति, पुर्नजन्म के बारे में बताती है. महर्षि पराशर के ग्रंथ बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्मकालिक सूर्य और चंद्रमा में से जो बली हो, वह ग्रह जिस ग्रह के द्रेष्काण में स्थित हो, उस ग्रह के अनुसार जातक का संबंध उस लोक से था. कुंडली के पंचम भाव के स्वामी ग्रह से जातक के पूर्वजन्म के निवास का पता चलता है.
पूर्नजन्म में जातक की दिशा : जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित राशि के अनुसार जातक के पूर्वजन्म की दिशा का ज्ञान होता है.
पूर्नजन्म में जातक की जाति : जन्म कुंडली में पंचमेश ग्रह की जो जाति है, वही पूर्व जन्म में जातक की जाति होती है.
पूर्नजन्म के संकेत : मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं. इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है. मृत्यु के 13 दिन बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है. यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है. यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो, द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से दृष्टि होने पर मोक्ष प्राप्ति का योग होता है. यदि बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो, तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है. जन्म कुंडली में गुरु और केतु का संबंध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
जन्मपत्रिका और प्रेत आत्माओं का गहरा सम्बन्ध है। पत्रिाका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति आत्माओं का सम्बन्ध पूर्व कर्म के कर्मो से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाती है। शनि के पहे घर या बाद के घर में राहू की उपस्थिति या दोनों की युति और साथ में गुरु होने की दृष्टि या प्रभाव जातक पर प्रेत आत्माओं के प्रभाव को बढ़ा देता है।
गुरु, शनि, राहु किस प्रकार जन्म पत्रिाका को प्रभावित करते है, कुछ उदाहरण से देखें :-
1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्र्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति कों अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।
2. दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।
3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।
4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करना चाहिए।
5. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।
6. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रळा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्टध्प्रवृत्त
ि के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं ।
7. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्रा मंत्रा गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।
8. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।
अब शनि का प्रेतात्माओं पूर्वजों से सम्बन्ध देखिए :-
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1. शनि का लग्न या प्रथम स्थान पर होना दर्शाता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं जड़ी-बुटी, गूढ़विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसे व्यक्ति को अच्छी अदृश्य आत्माएं सहायता करती है। इनका बचपन बीमारी या आर्थिक परेशानीपूर्ण रहता है। ये ऐसे मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेत आत्माओं का निवास रहता हैं। उनकी पूजा अर्चना करने से लाभ मिता हैं।
2. शनि दूसरे स्थान पर हो तो माना जाता है। कि ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने या कष्ट देने से उनकी बददुआ के कारण आर्थिक, शारीरिक परिवारिक परेशानियां भोगता है। राहु का सम्बन्ध होने पर निद्रारोग, डऱावने स्वप्न आते हैं या किसी प्रेत आत्मा की छाया उदृश्य रुप से प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान रहते हैं।
3. शनि या राहु तीसरे या छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती है। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीडि़त पाये जाते हैं।
4. चौथे स्थान पर शनि या राहु पूर्वजों का सर्पयोनी में होना दर्शाता है। सर्प की आकृति या सर्प से डर लगता है। इन्हें जानवर या सर्प की सेवा करने से लाभ होता है। पेट सम्बन्धी बीमारी के इलाज से सफलता मिलती है।
5. पॉचवें स्थान पर शनि या राहु की उपस्थिति पूर्व जन्म में किसी को घातक हथियार से तकलीफ पहुचाने के कारण मानी जाती है। इन्हें सन्तान संबंधी कष्ट उठाने पड़ते हैं। पेट की बीमारी, संतान देर से होना इत्यादि परेशानियॉ रहती हैं।
6. सातवें स्थान पर शनि या राहू होने पर पूर्व जन्म संबंधी दोष के कारण ऑख, शारीरिक कष्ट, परिवारिक सुख में कमी महसूस करते हैं । धार्मिक प्रवृत्ति और अपने इष्ट की पूजा करने से लाभ होता है।
7. आठवें स्थान पर शनि या राहु दर्शाता है कि पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति पर तंत्रा-मंत्रा का गलत उपयोग करने से अकारण भय से ग्रसित रहता हैं। इन्हें सर्प चोर मुर्दों से भय बना रहता हैं। इन्हें दूध का दान करने से लाभ होता है।
8. नवें स्थान पर शनि पूर्व जन्म में दूसरे व्यक्तियों की उन्नति में बाधा पहुचाने का दोष दर्शाता है। अतरू ऐसे व्यक्ति नौकरी में विशेष उन्नति नहीं कर पाते हैं।
9. शनि का बारहवें स्थान पर होना सर्प के आशीर्वाद या दोष के कारण आर्थिक लाभ या नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति ने सर्पाकार चांदी की अंगुठी धारण करनी चाहिए ऐसे ोग सर्प की पूजा करने से लाभान्वित होते हैं। भगवान शंकर पर दूध पानी चढ़ाने से भी लाभ मिलता है।
10. जन्म पत्रिका के किसी भी घर में राहु और शनि की युति है ऐसा व्यक्ति बाहर की हवाओं से पीडि़त रहता है। इनके शरीर में हमेंशा भारीपन रहता है, पूजा अर्चना के वक्त अबासी आना आलसी प्रवृत्ती, क्रोधी होने से दोष पाया जाते हैं।
व्यक्ति नियमित रुप से प्राणायाम करें और गाय जानवरों की सेवा करे तो इन सब दोषों से राहत पा सकता ह

Friday, July 15, 2016

विश्वास

कृष्ण भोजन के लिए बैठे थे। एक दो कौर मुँह में लेते ही अचानक उठ खड़े हुए। बड़ी व्यग्रता से द्वार की तरफ भागे, फिर लौट आए उदास और भोजन करने लगे।
          रुक्मणी ने पूछा," प्रभु,थाली छोड़कर इतनी तेजी से क्यों गये ? और इतनी उदासी लेकर क्यों लौट आये?"
          कृष्ण ने कहा, " मेरा एक प्यारा राजधानी से गुजर रहा है। नंगा फ़कीर है। इकतारे पर मेरे नाम की धुन बजाते हुए मस्ती में झूमते चला जा रहा है। लोग उसे पागल समझकर उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं। उस पर पत्थर फेंक रहे हैं। और वो है कि मेरा ही गुणगान किए जा रहा है। उसके माथे से खून टपक रहा है। वह असहाय है, इसलिए दौड़ना पड़ा "
           " तो फिर लौट क्यों आये?"
कृष्ण बोले, " मैं द्वार तक पहुँचा ही था कि उसने इकतारा नीचे फेंक दिया और पत्थर हाथ में उठा लिया। अब वह खुद ही उत्तर देने में तत्पर हो गया है। उसे अब मेरी जरूरत न रही। जरा रूक जाता, *पूर्ण विश्वास* करता तो मैं पहुँच गया होता।"

Contributed by
Mrs Ojasvita ji

Sunday, July 10, 2016

नर्क का द्वार

एक झेन फकीर के पास
एक सम्राट मिलने गया था।
सम्राट, सम्राट की अकड़! झुका
भी तो झुका नहीं। औपचारिक था
झुकना। फकीर से कहा: मिलने आया हूं,
सिर्फ एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूं। वही प्रश्न
मुझे मथे डालता है। बहुतों से पूछा है; उत्तर संतुष्ट
करे कोई, ऐसा मिला नहीं। आप की बड़ी खबर सुनी
है कि आपके भीतर का दीया जल गया है। आप, निश्चित
ही आशा लेकर आया हूं कि मुझे तृप्त कर देंगे।

फकीर ने कहा:
व्यर्थ की बातें छोड़ो,
प्रश्न को सीधा रखो। दरबारी
औपचारिकता छोड़ो, सीधी - सीधी
बात करो, नगद!

सम्राट थोड़ा चौंका:
ऐसा तो कोई उस से कभी
बोला नहीं था! थोड़ा अपमानित
भी हुआ, लेकिन बात तो सच थी। फकीर
ठीक ही कह रहा था कि व्यर्थ लंबाई में क्यों
जाते हो? बात करो सीधी, क्या है प्रश्न तुम्हारा?

सम्राट ने कहा:
प्रश्न मेरा यह है कि
स्वर्ग क्या है और नर्क क्या
है? मैं बूढ़ा हो रहा हूं और यह
प्रश्न मेरे ऊपर छाया रहता है कि
मृत्यु के बाद क्या होगा - स्वर्ग या नर्क?

फकीर के पास उसके शिष्य बैठे थे,
उस ने कहा: सुनो, इस बुद्धू की बातें सुनो!
और सम्राट से कहा कि कभी आईने में अपनी
शक्ल देखी? यह शक्ल लेकर और ऐसे प्रश्न पूछे
जाते हैं! और तुम अपने को सम्राट समझते हो? तुम्हारी
हैसियत भिखमंगा होने की भी नहीं है!

यह भी कोई उत्तर था!
सम्राट तो एकदम आगबबूला
हो गया। म्यान से उसने तलवार
निकाल ली। नंगी तलवार, एक क्षण
और कि फकीर की गर्दन धड़ से अलग
हो जाएगी। फकीर हंसने लगा और उसने
कहा: यह खुला नर्क का द्वार!

एक गहरी चोट -
एक अस्तित्वगत उत्तर:
यह खुला नर्क का द्वार! समझा
सम्राट। तत्क्षण तलवार म्यान में भीतर
चली गई। फकीर के चरणों पर सिर रख दिया।
उत्तर तो बहुतों ने दिए थे - शास्त्रीय उत्तर - मगर
अस्तित्वगत उत्तर, ऐसा उत्तर कि प्राणों में चुभ जाए
तीर की तरह, ऐसा स्पष्ट कर दे कोई कि कुछ और पूछने को शेष न रह जाए - यह खुला नर्क का द्वार! झुक गया फकीर के चरणों में। अब इस झुकने में औपचारिकता न थी दरबारीपन
न था। अब यह झुकना हार्दिक था।

फकीर ने कहा:
और यह खुला स्वर्ग का द्वार!
पूछना है कुछ और? और ध्यान रखो,
स्वर्ग और नर्क मरने के बाद नहीं है; स्वर्ग
और नर्क जीने के ढंग हैं, शैलियां हैं। कोई चाहे
यहीं स्वर्ग में रहे, कोई चाहे यहीं नर्क में रहे।

~ ओशो ~

Contributed by
Mrs Rashmi ji

Wednesday, July 6, 2016

Law of Karma

After Kurukshetra war,
Dhritrarashtra asked Krishna,
“I had 100 sons.
All of them were killed.
Why?

Krishna replied,
“50 lifetimes ago,
You were a hunter.
While hunting,
You tried to shoot a male bird.
It flew away.
In anger,
You ruthlessly slaughtered the 100 baby birds in the nest.
Father-bird had to watch in helpless agony.
Because you caused that father-bird the pain of seeing the death of his 100 sons,
You too had to bear the pain of your 100 sons dying.

Dhritarastra said,
“Ok,
But why did I have to wait for fifty lifetimes?”
Krishna answered, “You were accumulating
' Punya' during the last
fifty lifetimes to get 100 sons -
Because that requires a lot of Punya .
Then you got the reaction for the 'Paap' (sin) that you have done fifty lifetimes ago.”

Krishna says in the Bhagavad-gita (4.17) "Gahana Karmano Gatih"
The way in which action and reaction works is very complex.
God knows best which reaction has to be given at what time in what condition.
Therefore,
Some reaction may come in this lifetime,
Some in the next and Some in a distant future lifetime.

There is a saying,
“The mills of God grind slow;
but,
They grind exceedingly fine.”
So, every single action will be accounted for,
Sooner or Later.

Srimad Bhagavatam gives example:
If we have a cowshed with 1000 calves and
If we leave a mother cow there,
She will easily find out where her calf is among those thousands.
She has this Mystical Ability.

Similarly,
Our karma will find us among the millions on this planet.
There may be thousands going on the road but only one meets with an accident.
It is not by chance,
it’s by Karma.

Thus,
the Law of Karma works exceedingly fine;
it may be
'Slow to Act',
but
' No one can Escape '.

Contributed by
Sh Bharat ji

Monday, July 4, 2016

टिपण्णी

"वाणी पर नियंत्रण रखें"-

एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके
पड़ोस में रहने वाला
नौजवान चोर है l

यह बात दूर - दूर तक फैल गई आस - पास के लोग उस नौजवान
से बचने लगे l
नौजवान परेशान हो गया कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था l

तभी गाँव में चोरी की एक
वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया उसे गिरफ्तार कर लिया
गया l
लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो
गया l
निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा
उसने बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए
मुकदमा दायर कर दिया पंचायत में

बूढ़े आदमी ने अपने
बचाव में सरपंच से कहा ,
'मैंने जो कुछ कहा था, वह एक टिप्पणी से अधिक
कुछ नहीं था किसी को नुकसान पहुंचाना
मेरा मकसद नहीं था l"

सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा, 'आप एक कागज के
टुकड़े पर वो सब बातें लिखें,
जो आपने उस नौजवान के बारे में कहीं थीं, और जाते समय उस कागज के टुकड़े - टुकड़े करके घर के रस्ते पर फ़ेंक दें कल फैसला सुनने
के लिए आ जाएँ"  

बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किया l

अगले दिन सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला
सुनने से पहले आप
बाहर जाएँ और उन कागज के टुकड़ों को,
जो आपने कल बाहर फ़ेंक दिए थे,
इकट्ठा कर ले आएं l

बूढ़े आदमी ने कहा मैं ऐसा नहीं कर
सकता उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से
कहीं उड़ा कर ले गई होगी,
अब वे
नहीं मिल सकेंगें मैं
कहाँ - कहाँ उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा ?

सरपंच ने कहा 'ठीक इसी तरह, एक
सरल -
सी टिप्पणी भी
किसी का मान - सम्मान उस सीमा तक
नष्ट कर सकती है,
जिसे वह व्यक्ति किसी भी दशा में दोबारा
प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकता l

इसलिए यदि किसी के बारे में कुछ अच्छा नहीं कह सकते, तो चुप रहें l

वाणी पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए, ताकि हम शब्दों के दास न बनें l

Contributed by
Sh Deep ji