Wednesday, November 25, 2015

महत्व

एक राजा अपने लश्कर के साथ नाव में लौट रहा था..राजा ने कुछ गुलाम भी खरीदे थे जो उसी नाव में लौट रहे थे.  जैसे ही नाव चली तो एक गुलाम डर के मारे चिल्लाने लगा क्यों की वो कभी नाव में बैठा नहीं था.  परेशान राजा ने वजीर से कहा की इसे चुप कराओ..  राजा की बात सुनके वजिर ने उसे चुप कराने का प्रयत्न किया और ना चुप रहने पर आखिर कार उसे पानी में फेंक दिया.  फिर वजीर ने कहा इसे पानी से निकालो, पानी से निकाल ने के बाद गुलाम चुप बैठ गया.  राजा ने कहा वजीर ये क्या माजरा है, गुलाम एकदम से चुप कैसे बैठ गया.. वजीर ने कहा जहापनाह ये गुलाम नाव में सुरक्षित बैठने का आराम और पानी में डूबने की तकलीफ नहीं जानता था,  जब इसे पानी में फेंका गया तब इसे समझ में आया की नाव में सुरक्षित बैठना क्या होता है..

Contributed by
Mrs Shruti Chhabra ji

Tuesday, November 24, 2015

Ticket to Heaven

There once was a sick child named John. He had a rare and serious illness, and all the doctors confirmed that he would not live long, though they couldn't say exactly how long it would be. John spent long days in the hospital, saddened by not knowing what would happen, until one day a clown who was passing by saw how sad John was and came over to say: -"How come you're standing there like that? Haven't they told you about the Heaven for sick children? John shook his head, but continued listening intently.- "Well, it's the best place you could ever imagine, much better than heaven for parents or anyone else. They say it's like that to compensate children for having being sick. But to enter it there is one condition."
-"What is it?"
asked John, concerned.
-"You cannot die without having filled the bag."
-"The bag?"
-"Yes, yes. The bag. A large grey bag like this," said the clown as he pulled one out from under his jacket and gave it to John.
-"You were lucky I had one on me. You have to fill it with notes so you can buy your ticket."
-"Notes? It's no use then. I haven't any money."
-"No, not ordinary notes, my boy. Special notes: notes for good deeds, pieces of paper on which you write every good thing you do. At night an angel comes and checks all this paperwork, and exchanges the good ones for tickets to heaven."
-" Really?"
-" Of course! But be sure to hurry up and fill your bag. You've been sick a long time and we don't know if you have enough time left to fill the bag. This is a unique opportunity and you cannot die before completing it; that would be a terrible shame!"
The clown was in a hurry, and when he left the room John was pensive, staring at the bag. What his new friend had told him seemed wonderful, and he had nothing to lose by trying. That same day, when John's mother arrived to see him, he gave her the best of smiles, and made an effort to be more cheerful than usual, since he knew this made her happy. Then, when he was alone, he wrote on a piece of paper:
-"Mum smiled today." And he put the piece of paper in the bag. The next morning, as soon as he woke up, John ran to see the bag. And there it was! A real ticket to heaven! The ticket looked so magical and wonderful that it filled John with excitement, and he spent the rest of that day doing everything he knew to cheer up the doctors and nurses, and he was company to the children who felt most lonely. He even told jokes to his little brother and took some books to study a little. And for every one of those things he put a piece of paper in his bag. And so it continued, every day John woke up with the excitement of counting his new tickets to heaven, and working on getting a lot more. He did as much as he could, because he realised it was no good just to accumulate tickets in the bag in any way he could: every night the angel arranged them in the tidiest way, taking up the least space. And John was forced to continue doing good works at top speed, with the hope of filling the bag before getting too sick ...And although he spent many days on this, he never filled the bag. John had become the most beloved child at the hospital, and he had done so in the most cheerful and helpful way,… and this ended up completely healing him. Nobody knew how it happened: some said that his joy and his attitude must have cured him, others were convinced that the hospital staff loved him so much that they spent extra hours to try to find a cure and provide the best care, and some told how a couple of elderly millionaires who John had cheered up lot during their illness had paid for him to have expensive experimental treatment. The fact is that all these were true because, as the clown had seen so many times, you only have to put a bit of heaven in your old grey bag each night to transform what seems like a dying existence into the very best days of your life, however long they should last.

Contributed by
Mrs Shruti Chhabra ji

Monday, November 23, 2015

लक्ष्मी निवास

एक बूढे सेठ थे । वे खानदानी रईस थे, धन-ऐश्वर्य प्रचुर मात्रा में था परंतु लक्ष्मीजी का तो है चंचल स्वभाव । आज यहाँ तो कल वहाँ!!  सेठ ने एक रात को स्वप्न में देखा कि एक स्त्री उनके घर के दरवाजे से निकलकर बाहर जा रही है।  उन्होंने पूछा : ‘‘हे देवी आप कौन हैं ? मेरे घर में आप कब आयीं और मेरा घर छोडकर आप क्यों और कहाँ जा रही हैं? वह स्त्री बोली : ‘‘मैं तुम्हारे घर की वैभव लक्ष्मी हूँ । कई पीढयों से मैं यहाँ निवास कर रही हूँ किन्तु अब मेरा समय यहाँ पर समाप्त हो गया है इसलिए मैं यह घर छोडकर जा रही हूँ । मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि जितना समय मैं तुम्हारे पास रही, तुमने मेरा सदुपयोग किया । संतों को घर पर आमंत्रित करके उनकी सेवा की, गरीबों को भोजन कराया, धर्मार्थ कुएँ-तालाब बनवाये, गौशाला व प्याऊ बनवायी । तुमने लोक-कल्याण के कई कार्य किये । अब जाते समय मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ । जो चाहे मुझसे माँग लो ।  सेठ ने कहा : ‘‘मेरी चार बहुएँ है, मैं उनसे सलाह-मशवरा करके आपको बताऊँगा । आप कृपया कल रात को पधारें । सेठ ने चारों बहुओं की सलाह ली ।  उनमें से एक ने अन्न के गोदाम तो दूसरी ने सोने-चाँदी से तिजोरियाँ भरवाने के लिए कहा । किन्तु सबसे छोटी बहू धार्मिक कुटुंब से आयी थी। बचपन से ही सत्संग में जाया करती थी । उसने कहा : ‘‘पिताजी ! लक्ष्मीजी को जाना है तो जायेंगी ही और जो भी वस्तुएँ हम उनसे माँगेंगे वे भी सदा नहीं टिकेंगी । यदि सोने-चाँदी, रुपये-पैसों के ढेर माँगेगें तो हमारी आनेवाली पीढी के बच्चे अहंकार और आलस में अपना जीवन बिगाड देंगे। इसलिए आप लक्ष्मीजी से कहना कि वे जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें किन्तु हमें यह वरदान दें कि हमारे घर में सज्जनों की सेवा-पूजा, हरि-कथा सदा होती रहे तथा हमारे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में प्रेम होगा तो विपत्ति के दिन भी आसानी से कट जायेंगे।  दूसरे दिन रात को लक्ष्मीजी ने स्वप्न में आकर सेठ से पूछा : ‘‘तुमने अपनी बहुओं से सलाह-मशवरा कर लिया? क्या चाहिए तुम्हें ? सेठ ने कहा : ‘‘हे माँ लक्ष्मी ! आपको जाना है तो प्रसन्नता से जाइये परंतु मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे घर में हरि-कथा तथा संतो की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम बना रहे।
यह सुनकर लक्ष्मीजी चौंक गयीं और बोलीं : ‘‘यह तुमने क्या माँग लिया। जिस घर में हरि-कथा और संतो की सेवा होती हो तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रीति रहे वहाँ तो साक्षात् नारायण का निवास होता है और जहाँ नारायण रहते हैं वहाँ मैं तो उनके चरण पलोटती (दबाती)हूँ और मैं चाहकर भी उस घर को छोडकर नहीं जा सकती। यह वरदान माँगकर तुमने मुझे यहाँ रहने के लिए विवश कर दिया है !!!!!

Contributed by
Mrs Ojasvita ji

Sunday, November 22, 2015

दिशा

एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है। टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो। मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा। वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे? टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये। उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ। टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है। उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया। इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ।हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।

Contributed by
Mrs Shruti Chhabra ji

ईश्वर प्राप्ति

एक राजा था।वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था।वह नित्य अपने इष्ट देव को बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ ओर याद करता था।एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा---"राजन् मे तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी  कोई इच्छा है ?" प्रजा को चाहने वाला राजा बोला---"भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हॆ। आपकि कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख शान्ति हॆ। फिर भी मेरी एक ईच्छा हैं कि जॆसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वॆसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन  दीजिये।" "यह तो सम्भव नहीं  हॆ।" ---भगवान ने राजा को समझाया ।परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले,--"ठिक हॆ, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।" राजा अत्यन्त प्रसन्न. हुअा ओर  भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के निचे मेरे साथ पहुँचे,वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देगें । दुसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा ओर स्वजनों को साथ लेकर पहाडी कि ओर चलने लगा।चलते-चलते रास्ते  मे एक स्थान पर तांबे कि सिक्कों  का पहाड देखा। प्रजा मे से कुछ एक उस ओर भागने लगे।तभी ज्ञानि राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे,क्योकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो,इन तांबे के सिक्कों  के पिछे अपना भाग्य को लात मत मारो। परन्तु लोभ-लालच मे वशीभूत कुछ एक प्रजा तांबे कि सिक्कों वाली पहाडी कि ओर भाग गयी ओर सिक्कों कि गठरी बनाकर अपनी घर कि ओर चलने लगे। वे मन हि मन सोच रहे थे,पहले ये सिक्खों  को समेट ले, भगवान से तो फिर कभी मिल लेगे। राजा खिन्न मन से आगे बढे। कुछ दुर चलने पर चांदी कि सिक्कों का चमचमाता पहाड दिखाई दिया।इस वार भी बचे हुये प्रजा में से कुछ लोग, उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपनी घर कि ओर चलने लगे।उनके मन मे विचार चल रहा था कि,ऎसा मॊका बार-बार नहीं  मिलता हॆ। चांदी के इतने सारे सिक्के  फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल जायेगें . इसी प्रकार कुछ दुर ओर चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड नजर आया।अब तो प्रजाजनो मे बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों कि तरह सिक्कों  कि गठरि लाद कर अपने-अपने घरों कि ओर चल दिये। अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे।राजा रानी से कहने लगे---"देखो कितने लोभी ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व हि नहीं  जानते हॆ। भगवान के सामने सारी  दुनियां कि दॊलत क्या चीज हॆ?" सही  बात हॆ--रानि ने राजा कि बात को समर्थ किया ओर वह आगे बढने लगे। कुछ दुर चलने पर राजा ओर रानी  ने देखा कि सप्तरंगि आभा बिखरता हीरों का पहाड हॆ।अब तो रानी से रहा नहीं गया,हीरों कि आर्कषण से वह भि दॊड पडी,ओर हीरों कि गठरी बनाने लगी ।फिर भी उसका मन नहीं  भरा तो साढि के पल्लु मे भि बांधने लगी ।रानि के वस्त्र देह से अलग हो गये,परंतु हीरों का तृष्णा अभी भी नहीं  मिटी।यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि ओर विरक्ति हुई।बडि दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढते गये। वहाँ सचमुच भगवान खड़े उसका इन्तजार कर रहे थे।राजा को देखते ही भगवान मुसकुराये ओर पुछा --"कहाँ  हॆ तुम्हारी प्रजा ओर तुम्हारे प्रियजन। में  तो कब से उनसे मिलने के लिये बेकरारि से उनका इन्तजार कर रहा हुं।" राजा ने शर्म ओर आत्म-ग्लानि सेअपना सर झुका दिया।तब भगवान ने राजा को समझाया--
"राजन जो लोग भॊतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते हॆ, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती ओर वह मेरे स्नेह तथा आर्शिवाद से भी वंचित रह जाते हॆ।"

सार......
जो आत्मायें अपने मन ओर बुद्धि से भगवान पर कुर्बान जाते हॆ, ओर सर्वसम्बधों से प्यार करते हॆ............वह भगवान के दिलतख्तनशीन बनते हॆ।

Contributed by Sh Deep ji

Saturday, November 21, 2015

Stay Connected

Father is flying a kite. His son is watching him carefully. After some time son says "Dad. Because of the string the kite is not able to go any further higher."Hearing this, the father smiles and breaks the string.The kite goes higher and then shortly after that, it comes and falls on the ground. The child is very dejected and sad. The father sits next to him and calmly explains: "Son, in life we reach a certain level and then we feel that there are certain things that are not letting us grow any further like Home, Family, Culture etc. We feel we want to be free from those strings which we believe are stopping us from going higher. But, remember son."That our home , family and culture are the things that will help us stay stable at the high heights . If we try to break away from those strings our condition will be similar to the kite."we'll fall down soon..
Moral: "Never go away from home culture, family, and relationships as they help keep us stable while we are flying high."
Life is Beautiful Stay connected

Contributed by
Mrs Shruti Chhabra

Childhood

When I was small....

• I'd put my arms in my shirt and told people I lost my arms
 
• Would restart the video
game whenever I knew I was going to lose

• Had that one pen with
four colors, and tried to push all the buttons at once

• Waited behind a door to
scare someone, then leaving because they're taking too long to come out.

• Faked being asleep,so I
could be carried to bed.

• Used to think that the moon followed our car

• Tried to balance the switch between On/Off

• Watching two drops of
rain roll down window and pretending it was a race

• The only thing i had to
take care of was a school bag.

• Swallowed a fruit seed I
was scared to death that a tree was going to grow in my tummy.

• Closed the fridge
extremely slowly to see
when the lights went off.

• Walked into a room,. forgot what you needed, Walked out, and then remember.

Remember when we were
kids and couldn't wait to grow up? and now we think why did we even grow up?

Childhood Was The Best Part Of our Life

Contributed by Mrs Rashmi  ji

No matter

1. No matter how beautiful and handsome you are, just remember Baboon and Gorillas also
attract tourists.
***Stop Boasting!

2. No matter how big and strong you are, you will not carry yourself to your Grave.
***Be Humble!

3. No matter how tall you are, you can never see tomorrow.
***Be Patient!

4. No matter how Light Skinned you are, you will always need light in Darkness.
***Take Caution!

5. No matter how Rich and how many Cars you have,
you will always walk to Bed.
***Be Contented!

Yesterday was Experience.
Today is Experiment.
Tomorrow is Expectation.

So, use your Experience in your Experiment to achieve your Expectations.
GOD BLESS US ALL


Contributed by Dr Mala Sharma ji

Friday, November 20, 2015

गुरु का स्थान

एक बार देवताओं के अन्दर विचार विमर्श चल रहा था कि संसार में सबसे बड़ा कौन है ? तो उन्होंने कहा— सबसे बड़ी पृथ्वी है तो विचार भी किया। हाँ, पृथ्वी सबसे बड़ी है लेकिन एक देव उससे सहमत नहीं हुआ। वह कहने लगा — यदि पृथ्वी बड़ी है तो बताओ कि वह शेषनाग के सिर पर क्यों टिकी है ? जो इतनी बड़ी पृथ्वी का वजन सहन कर रहा है तो वह उससे बड़ा है। सबकी अक्ल में आयी और कहा— हाँ , शेषनाग जी सबसे बड़े हैं। सब कहने लगे — हाँ भाई ! शेषनाग जी सबसे बड़े हैं।

लेकिन एक देव कहने लगा कि जब शेषनाग जी बड़े हैं तो वह शंकर जी के गले में क्यों पड़े हैं? तो सबकी अक्ल में आयी की शंकर जी सबसे बड़े होने चाहिए । तो सब कहने लगे कि शंकर जी सबसे बड़े हैं । एक देव कहने लगा — यदि शंकरजी सबसे बड़े हैं तो वह वैलाश पर्वत पर क्यों पड़े हैं ? तो सभी कहने लगे कि हाँ भाई वैलाश पर्वत सबसे बड़ा है । तो एक देव कहने लगा — कि वैलाश पर्वत सबसे बड़ा है तो यह हनुमान जी के हाथों में क्यों उठा है ? तब सबने कहने लगे कि हनुमानजी सबसे बड़े हैं ? फिर एक देव कहने लगा — कि हनुमान जी सबसे बड़े हैं तो रामचन्द्र जी के चरणो में क्यों पड़े हैं? तो फिर सब कहने लगे — कि सबसे बड़े रामचन्द्र जी है, रामचन्द्र जी बड़े हैं तो एक देव कहने लगा कि रामचन्द्र जी बड़े है तो वह गुरु वशिष्ठ के चरणों में क्यों पड़े हैं? तो सबको मालूम हुआ कि गुरु का स्थान सबसे बड़ा है।



Wednesday, November 18, 2015

ईश्वर और विश्वास

एक पादरी महाशय समुद्री जहाज से यात्रा कर रहे थे रास्ते में एक रात तुफान आने से जहाज को एक द्वीप के पास लंगर डालना पडा। सुबह पता चला कि रात आये तुफान में जहाज में कुछ खराबी आ गयी है। जहाज को एक दो दिन वहीं रोक कर उसकी मरम्मत करनी पडेगी। पादरी महाशय नें सोचा क्यों ना एक छोटी बोट से द्वीप पर चल कर घूमा जाये, अगर कोई मिल जाये तो उस तक प्रभु का संदेश पहँचाया जाय और उसे प्रभु का मार्ग बता कर प्रभु से मिलाया जाये। तो वह जहाज के केप्टन से इज़ाज़त ले कर एक छोटी बोट से द्विप पर गये, वहाँ इधर उधर घूमते हुवे तीन द्वीपवासियों से मिले। जो बरसों से उस सूने द्विप पर रहते थे। पादरी महाशय उनके पास जा कर बातचीत करने लगे। उन्होंने उनसे ईश्वर और उनकी आराधना पर चर्चा की.. उन्होंने उनसे पूछा- “क्या आप ईश्वर को मानाते हैं?” वे सब बोले- “हाँ..।“ फिर पादरी ने पूछा- “आप ईश्वर की आराधना कैसे करते हैं?” उन्होंने बताया- ''हम अपने दोनो हाथ ऊपर करके कहते हैं "हे ईश्वर हम आपके हैं, आपको याद करते हैं, आप भी हमें याद रखना"..॥'' पादरी महाशय ने कहा- "यह प्रार्थना तो ठीक नही है।" एक ने कहा- "तो आप हमें सही प्रार्थना सिखा दीजिये।" पादरी महाशय ने उन सबों को बाईबल पढना, और प्रार्थना करना सिखाया। तब तक जहाज बन गया। पादरी अपने सफर पर आगे बढ गये। तीन दिन बाद पादरी ने जहाज के डेक पर टहलते हुवे देखा, वह तीनो द्वीपवासी जहाज के पीछे-पीछे पानी पर दौडते हुवे आ रहे हैं। उन्होने हैरान होकर जहाज रुकवाया, और उन्हे ऊपर चढवाया। फिर उनसे इस तरह आने का कारण पूछा- “वे बोले ''फादर!! आपने हमें जो प्रार्थना सिखाई थी, हम उसे अगले दिन ही भूल गये। इसलिये आपके पास उसे दुबारा सीखने आये हैं, हमारी मदद कीजिये।" पादरी ने कहा- " ठीक है, पर यह तो बताओ तुम लोग पानी पर कैसे दौड सके?" उसने कहा- " हम आपके पास जल्दी पहुँचना चाहते थे, सो हमने ईश्वर से विनती करके मदद माँगी और कहा "हे ईश्वर!! दौड तो हम लेगें बस आप हमें गिरने मत देना।" और बस दौड पडे।“ अब पादरी महाशय सोच में पड गये. उन्होने कहा- " आप लोग और ईश्वर पर आपका विश्वास धन्य है। आपको अन्य किसी प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है। आप पहले कि तरह प्रार्थना करते रहें।" ये कहानी बताती है... ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर की आराधना प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है॥संत कबीरदास ने कहा है...
“माला फेरत जुग गया, फिरा ना मन का फेर,
कर का मन का डारि दे, मनका-मनका फेर॥“
"हे ईश्वर!! दौड तो हम लेंगे, बस आप हमें गिरने मत देना ।

From Rashmi ji's Collection

Negative Thought

To recognize what is negative and waste is to have the ability to overcome
them.

Thought to Ponder: When something negative or waste comes up, I need to
recognize it immediately. If I am not able to do that, I actually invite
it into my life, make it my guest, give it attention and encourage it
further. So, it is important to recognize immediately and change anything
negative or waste that comes my way.

Point to Practice: Today I will keep a check on my thoughts from time to
time. As soon as I find something waste or negative coming up, I will not
encourage it further. I will immediately either create another thought or
move away from the situation temporarily till I change my thoughts. Such
attention over a period of time, will help me recognize quickly and
overcome what is negative and waste...

compiled and edited by
Sh Deep ji

Too Late

All of life's problems are only due to two words "early" and "late".

We dream too early and act too late.

We trust too early and forgive too late.

We get angry too early and apologise too late.

We give up too early and restart too late.

We cry too early  and smile too late.

Change "early" or it will be too late...

Compiled and edited by
Mrs. Shruti Chabra

क्रोध

1- क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है।
2- मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है,
किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।
3- क्रोध करने का मतलब है, दूसरों की गलतियों कि  सजा स्वयं को देना।
4- जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो।
5- क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का  पात्र होता है।
6- क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म  होता है।
7- क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक  जाती है।
8- जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता,  उसी को क्रोध अधिक आता है।
9- क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें  सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए।
10- क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति  भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश  हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो  जाता है।
11- क्रोध यमराज है।
12- क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है।
13-क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं।
14- जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा  करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट  से रक्षा करता है।
15- सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं  थकता जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में थक जाता है।
16- क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो,  अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक।
17- क्रोध क्या हैं ? क्रोध भयावह हैं, क्रोध भयंकर हैं,  क्रोध बहरा हैं, क्रोध गूंगा हैं, क्रोध विकलांग है।
18- क्रोध की फुफकार अहं पर चोट लगने से उठती है।
19- क्रोध करना पागलपन हैं, जिससे सत्संकल्पो का  विनाश होता है।
20- क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है।

edited and compiled by
Sh Vineet ji

मैं पैसा हूँ।

मैं पैसा हूँ....
सबसे पहले मैं आपको अपना परिचय दूँ - मैं हूँ पैसा...
मेरा साधारण रूप है, दुर्बल सी काया है, लेकिन मै दुनियाँ को पूनर्व्यवस्थित करने की क्षमता रखता हूँ. मैं इन्सान का व्यवहार और प्रकृति बदलने की क्षमता  रखता हूँ क्योंकि इन्सान मुझे आदर्श मानता हैं.कई लोग अपने व्यवहार को बदल देते है,अपने दोस्तों को धोखा देते है,अपना शरीर बेच देते है यहाँ तक की अपना धर्म छोड़ देते है,सिर्फ मेरे लिए.  मैं नेक भ्रष्ट मे फर्क नही करता, लोग मुझे प्रतिष्ठा के मानक के तौर पर इस्तेमाल करते है कि आदमी अमीर है या गरीब,इज्जतदार है या नही.मै शैतान नहीं हूँ, लेकीन लोग अक्सर मेरी वजह से गुनाह करते है.  मैं तीसरा व्यक्ति नहीं हूँ, लेकिन मेरी वजह से पति पत्नी आपस मे झगड़ते है. ये सही है की मैं भगवान नहीं हूँ लेकिन लोग मुझे भगवान की तरह पूजते है यहाँ तक की भगवान को पूजने वाले भी मेरी भक्ति करते है भले ही वो आपको इससे दूर रहने की सलाह देते हैं. वैसे तो मुझे लोगों की सेवा करनी चाहिये लेकीन लोग मेरे गुलाम बनना चाहते हैं. मैने कभी किसी के लिए बलिदान नहीं दिया लेकीन कई लोग मेरे लिए अपनी जान दे रहे हैं. मै याद दिलाना चाहता हूँ कि मैं आपके लिए सब कुछ खरीद सकता हूँ,आपके लिए दवाईयाँ ला सकता हूँ लेकीन आपकी उम्र नहीं बढा सकता.  एक दिन जब भगवान का बुलावा आयेगा तो मै आपके साथ नहीं जाऊँगा बल्कि आपको अपने पाप भुगतने के लिए अकेला छोड दूँगा.और यह स्थिती कभी भी आ सकती है आपको अपने बनाने वाले को खुद ही जवाब देना पडेगा और उसका निर्णय स्वीकारना होगा.  उस समय सर्व शक्तिमान आपका फैसला करेगा और मेरे बारे मे पूछेगा, लेकीन मै आपसे अभी पूछता हूँ "क्या आपने जीवनभर मेरा सही इस्तेमाल किया या  आपने मुझे ही भगवान बना दिया ?"

एक अंतिम जानकारी मेरी तरफ से....

मैं " उपर " आपके साथ नहीं जाऊँगा बल्कि आपकी सत्कर्मों की पूंजी ही आपके साथ चलेगी.
मुझे वहाँ मत ढूँढ़ना |

compiled and edited by
Smt Kachan ji
मैं पैसा हूँ.....।।।।

Tuesday, November 17, 2015

अनूठी भक्ति

महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारिका गए. इस बार रथ अर्जुन चलाकर ले गए. द्वारिका पहुंचकर अर्जुन बहुत थक गए थे इसलिए विश्राम करन अतिथिभवन में चले गए. संध्या को रूक्मिणीजी ने श्रीकृष्ण को भोजन परोसा. प्रभु रूक्मिणीजी से बोले- प्रिय घर में अतिथि आए हुए हैं. हम अतिथि को भोजन कराए बिना भोजन कैसे ग्रहण कर लूं. रूक्मिणीजी ने कहा- भगवन आप भोजन आरंभ तो करिए मैं अर्जुन को अभी बुलाकर आती हूं. रूक्मिणीजी जब अतिथिकक्ष में पहुंची तो वहां अर्जुन गहरी नींद में सो रहे थे. रूक्मिणीजी यह देखकर आश्चर्य में थीं कि नींद में सोए अर्जुन के रोम-रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि निकल रही है. यह देख रूक्मिणी अर्जुन को जगाना भूल आनंद में डूब गईं और धीमे-धीमे ताली बजाने लगीं. प्रभु के दर्शन के लिए नारदजी पहुंचे तो देखा प्रभु के सामने भोग की थाली रखी है और वह प्रतीक्षा में बैठे हैं. नारदजी ने श्रीकृष्ण से कहा- भगवन भोग ठण्डा हो रहा है, इसे ग्रहण क्यों नहीं करते. श्रीकृष्ण बोले- नारदजी, बिना अतिथि को भोजन कराए कैसे ग्रहण करूं. नारदजी ने सोचा कि प्रभु को अतिथि की प्रतीक्षा में विलंब हो रहा है. इसलिए बोले- प्रभु मैं स्वयं बुला लाता हूं आपके अतिथि को. नारदजी भी अतिथिशाला की ओर चल पड़े. वहां पहुंचे तो देखा अर्जुन सो रहे हैं. उनके रोम- रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि सुनकर देवी रूक्मिणी आनंद विभोर ताली बजा रही हैं. प्रभुनाम के रस में विभोर नारदजी ने वीणा बजानी शुरू कर दी. सत्यभामाजी प्रभु के पास पहुंची. प्रभु तो प्रतीक्षा में बैठे हैं. सत्यभामाजी ने कहा- प्रभु भोग ठण्डा हो रहा है प्रारंभ तो करिए. भगवान ने फिर से वही बात कही- हम अतिथि के बिना भोजन नहीं कर सकते. अब सत्यभामाजी अतिथि को बुलाने के लिए चलीं. वहां पहुंचकर सोए हुए अर्जुन के रोम-रोम द्वारा किए जा रहे श्रीकृष्ण नाम के कीर्तन, रूक्मिणीजी की ताली, नारदजी की वीणा सुनी तो वह भी भूल गईं कि आखिर किस लिए आई थीं. सत्यभामाजी ने तो आनंद में भरकर नाचना शुरू कर दिया. प्रभु प्रतीक्षा में ही रहे. जो जाता वह लौट कर ही न आता. प्रभु को अर्जुन की चिंता हुई सो वह स्वयं चले. प्रभु पहुंचे अतिथिशाला तो देखा कि स्वरलहरी चल रही है. अर्जुन निद्रावस्था में कीर्तन कर रहे हैं, रूक्मिणी जाग्रत अवस्था में उनका साथ दे रही हैं, नारद जी ने संगीत छेड़ी है तो सत्यभामा नृत्य ही कर रही हैं. यह देखकर भगवान के नेत्र सजल हो गये. प्रभु ने अर्जुन के चरण दबाना शुरू कर दिया. प्रभु के नेत्रों से प्रेमाश्रुओ की कुछ बूंदें अर्जुन के चरणों पर पड़ी तो अर्जुन वेदना से छटपटा कर उठ बैठे. जो देखा उसे देखकर हतप्रभ तो होना ही था. घबराए अर्जुन ने पूछा- प्रभु यह क्या हो रहा है भगवान बोले- अर्जुन तुमने मुझे रोम-रोम में बसा रखा है इसीलिए तो तुम मुझे सबसे अधिक प्रिय हो. गोविन्द ने अर्जुन को गले से लगा लिया. अर्जुन के नेत्रों से अश्रु की धारा फूंट रही थी. कुछ बूंदें सौभाग्य की, कुछ प्रेम की और कुछ उस अभिमान की जो भक्त को भगवान के लिए हो ही जाती है.

compiled and edited by
Smt Kanchanji