Friday, August 23, 2019

भक्ति की शक्ति

एक बार महर्षि नारद वैकुंठ की यात्रा पर जा रहे थे, नारद जी को रास्ते में एक औरत मिली और बोली। मुनिवर आप प्रायः भगवान नारायण से मिलने जाते है। मेरे घर में कोई औलाद नहीं है आप प्रभु से पूछना मेरे घर औलाद कब होगी? नारद जी ने कहा ठीक है, पूछ लूंगा इतना कह कर नारदजी नारायण नारायण कहते हुए यात्रा पर चल पड़े ।वैकुंठ पहुंच कर नारायण जी ने नारदजी से जब कुशलता पूछी तो नारदजी बोले जब मैं आ रहा था तो रास्ते में एक औरत जिसके घर कोई औलाद नहीं है। उसने मुझे आपसे पूछने को कहा कि उसके घर पर औलाद कब होगी? नारायण बोले तुम उस औरत को जाकर बोल देना कि उसकी किस्मत में औलाद का सुख नहीं है।नारदजी जब वापिस लौट रहे थे तो वह औरत बड़ी बेसब्री से नारद जी का इंतज़ार कर रही थी।औरत ने नारद जी से पूछा कि प्रभु नारायण ने क्या जवाब दिया ? इस पर नारदजी ने कहा प्रभु ने कहा है कि आपके घर कोई औलाद नहीं होगी।यह सुन कर औरत ढाहे मार कर रोने लगी नारद जी चले गये ।कुछ समय बीत गया। गाँव में एक योगी आया और उस साधू ने उसी औरत के घर के पास ही यह आवाज़ लगायी कि जो मुझे 1 रोटी देगा मैं उसको एक नेक औलाद दूंगा।यह सुन कर वो बांझ औरत जल्दी से एक रोटी बना कर ले आई। और जैसा उस योगी ने कहा था वैसा ही हुआ।उस औरत के घर एक बेटा पैदा हुआ। उस औरत ने बेटे की ख़ुशी में गरीबो में खाना बांटा और ढोल बजवाये।कुछ वर्षों बाद जब नारदजी पुनः वहाँ से गुजरे तो वह औरत कहने लगी क्यूँ नारदजी आप तो हर समय नारायण , नारायण करते रहते हैं ।आपने तो कहा था मेरे घर औलाद नहीं होगी। यह देखो मेरा  बेटा।फिर उस औरत ने उस योगी के बारे में भी बताया।नारदजी को इस बात का जवाब चाहिए था कि यह कैसे हो गया? वह जल्दी जल्दी नारायण धाम की ओर गए और प्रभु से ये बात कही कि आपने तो कहा था कि उस औरत के घर औलाद नहीं होगी।क्या उस योगी में आपसे भी ज्यादा शक्ति है?नारायण भगवान बोले आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है ।मैं आपकी बात का जवाब बाद में दूंगा पहले आप मेरे लिए औषधि का इंतजाम कीजिए,नारदजी बोले आज्ञा दीजिए प्रभु, नारायण बोले नारदजी आप भूलोक जाइए और एक कटोरी रक्त लेकर आइये।नारदजी कभी इधर, कभी उधर घूमते रहे पर प्याला भर रक्त नहीं मिला।उल्टा लोग उपहास करते कि नारायण बीमार हैं ।चलते चलते नारद जी किसी जंगल में पहुंचे , वहाँ पर वही साधु मिले , जिसने उस औरत को बेटे का आशीर्वाद दिया था।वो साधु नारदजी को पहचानते थे, उन्होंने कहा अरे नारदजी आप इस जंगल में इस वक़्त क्या कर रहे है?इस पर नारदजी ने जवाब दिया। मुझे प्रभु ने किसी इंसान का रक्त लाने को कहा है यह सुन कर साधु खड़े हो गये और बोले कि प्रभु ने किसी इंसान का रक्त माँगा है।उसने कहा आपके पास कोई छुरी या चाक़ू है।नारदजी ने कहा कि वह तो मैं हाथ में लेकर घूम रहा हूँ। उस साधु ने अपने शरीर से एक प्याला रक्त दे दिया। नारदजी वह रक्त लेकर नारायण जी के पास पहुंचे और कहा आपके लिए मैं औषधि ले आया हूँ।नारायण ने कहा यही आपके सवाल का जवाब भी है।जिस साधू ने मेरे लिए एक प्याला रक्त मांगने पर अपने शरीर से इतना रक्त भेज दिया।क्या उस साधु के प्रार्थना करने पर मैं किसी को बेटा भी नहीं दे सकता।उस बाँझ औरत के लिए प्रार्थना आप भी तो कर सकते थे पर आपने ऐसा नहीं किया।रक्त तो आपके शरीर में भी था पर आपने नहीं दिया 

Thursday, August 22, 2019

अमर प्रेम

 एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया।  पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को जारी रखा। एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब कृष्ण उन्हें मनाने गया तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मनाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में पुकार करते हुए घूमने लगे। जब वो बरसाने, राधा रानी की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे।

मैं दूर गाँव से आई हूँ, 
देख तुम्हारी ऊंची अटारी,
दीदार की मैं प्यासी, 
दर्शन दो वृषभानु दुलारी।
हाथ जोड़ विनंती करूँ, 
अर्ज मान लो हमारी,
आपकी गलिन गुहार करूँ, 
लील्या गुदवा लो प्यारी।।

 जब किशोरी जी ने यह आवाज सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा।  घूंघट में अपने मुँह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरीजी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले की  सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूँ?  किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और 
क्या लिखवाना है?  किशोरी जी बता रही हैं....


माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी..
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी..
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी..
कानो में केशव, भृकुटी पे चार भुजा धारी..
 बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया..
नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी..
चरणों में चोर चित का, मन में मोर मुकुट धारी..
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी..
और रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी

  जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पर मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभु। उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे।उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस लालिहारण को क्या हो गया? और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी को उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि अरे...ये तो बांके बिहारी ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। 

Wednesday, August 21, 2019

प्रतिबिम्ब

एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा मेरे कर्मचारी, मेरी पत्नी मेरे बच्चे और सभी दुनिया के लोग मतलबी हैं। कोई भी सही नहीं हैं क्या करूं?गुरु थोडा मुस्कुराये और उसे एक कहानी सुनाई। एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमे 1000 शीशे लगे थे। एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी। उसने देखा 1000 बच्चे उसके साथ खेल रहे है और वो उन प्रतिबिम्ब बच्चो के साथ खुश रहने लगी। जैेसै ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते। उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है यहां वह् सबसे ज्यादा खुश रहती है वो यहां बार बार आना चाहेगी। थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया। उसने अपने चारो तरफ हजारो दुख से भरे चेहरे देखे। वह बहुत दुखी हुआ और उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा.. तो उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है। उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है वह यहां दुबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़ दी।इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमे हजारों शीशे लगे है। जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमे लोटा देती है।

Tuesday, August 20, 2019

मुंड माला

एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से आग्रह करने लगी कि आपके गले मे जो मुंड की माला है उसका रहस्य क्या है? जब बहुत समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने इसका रहस्य बता ही दिया। शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला मे जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। इस बात को सुनकर सती दंग रह गयी। सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं।
इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है।इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। इस माला मे अभी एक मुंड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं किन्तु आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते। शिव हंसते हुए बोले 'मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता।' इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें निद्रा आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड मे कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा। शिव ने सती के मुंड को भी माला मे गूंथ लिया।इस प्रकार 108 मुंड की माला तैयार हो गयी। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप मे हुआ। इस जन्म मे पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा

Monday, August 19, 2019

गहरी खायी

 एक संत थे।  वह जन्म से अन्धे थे और उनका नित्य का एक नियम था कि वह शाम के समय   पहाड़ों में भृमण करने के लिये निकल जाते और हरि नाम का संकीर्तन करते जाते।एक दिन उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा "बाबा आप हर रोज इतने ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर भृमण हेतु जाते हैं वहां बहुत गहरी गहरी खाइयां भी हैं
और आपको आंखों से दिखलाई नहीं देता।क्या आपको डर नहीं लगता ? अगर कभी पांव लड़खड़ा गये तो ?
बाबा ने कुछ नहीं कहा और शाम के समय शिष्य को साथ ले चले।" पहाड़ों के मध्य थे तो बाबा ने शिष्य से कहा जैसे ही कोई गहरी खाई आये तो बताना। दोनों चलते रहे और जैसे ही गहरी खाई आयी शिष्य ने बताया कि बाबा गहरी खाई आ चुकी है।बाबा ने कहा मुझे इसमें धक्का दे दे।अब तो शिष्य इतना सुनते ही सकपका गया।उसने कहा बाबा मैं आपको धक्का कैसे दे सकता हूँ।मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता।आप तो मेरे गुरुदेव हैं। मैं तो किसी अपने शत्रु को भी इस खाई में नहीं धकेल सकता।बाबा ने फिर कहा मैं कहता हूं कि मुझे इस खाई में धक्का दे दो।यह मेरी आज्ञा है। और मेरी आज्ञा की अवहेलना करोगे तो नर्क गामी होगे।शिष्य ने कहा बाबा मैं नर्क भोग लूंगा मगर आपको हरगिज इस खाई में नहीं धकेल सकता। तब बाबा ने शिष्य से कहा "जब तुझ जैसा एक साधारण प्राणी मुझे खाई में नहीं धकेल सकता तो बता मेरा मालिक भला कैसे मुझे खाई में गिरने देगा।"  

लोटे की चमक

एक ऋषी रोज लोटा मांजते थे, एक शिष्य ने कहा के लोटे को रोज़ मांजने की क्या जरूरत है? सप्ताह में एक बार मांज लें, ऋषी ने कहा -बात तो सही है और उसके बाद उन्होंने उसे नही मांजा। उस लोटे की चमक फीकी पड़ने लगी, सप्ताह बाद ऋषी ने शिष्य को कहा कि लोटे को साफ कर दो। शिष्य लोटे को बहुत देर मांजने के बाद भी पहले वाली चमक नहीं ला सका। फिर और मांजा, तब जाकर लोटा कुछ चमका, ऋषी बोले- लोटे से सीखो, जब तक इसे रोज मांजा जाता रहा, यह रोज चमकता रहा। ऐसे ही साधक होता है अगर वह रोज मन को साफ न करे तो मन संसारी विचारो से अपनी चमक खो देता है, इसको रोज ध्यान से चमकाना चाहिए। यदि एक दिन भी भजन सिमरन का अभ्यास छोड़ा तो चमक फीकी पड़ जाएगी.

Thursday, August 15, 2019

मूढ़ आदमी

दो मित्र थे, एक अंधा और एक लंगड़ा। साथ रहते और साथ ही भीख मांगते। साथ रहना जरूरी भी था, क्योंकि अंधा देख नहीं सकता था, लंगड़ा चल नहीं सकता था। तो अंधा लंगड़े को अपने कंधे पर बिठाकर चलता था। भीख अलग— अलग मांगी भी नहीं जा सकती थी . फिर जैसे सभी साझेदारों में झगड़े हो जाते हैं, कभी—कभी उनमें भी झगड़े हो जाते थे। कभी लंगड़ा ज्यादा पैसे पर कब्जा कर लेता, कभी अंधा ज्यादा पैसे पर कब्जा कर लेता।  एक दिन तो बात ऐसी बढ़ गयी कि दोनों ने एक—दूसरे को डटकर पीटा।  भगवान को बड़ी दया आयी  भगवान ने सोचा कि अंधे को अगर आंखें और लंगड़े को अगर पांव दे दिए जाएं तो कोई एक—दूसरे का आश्रित न रहेगा, एक—दूसरे से मुक्त हो जाएंगे और इनके जीवन में शांति होगी। भगवान प्रगट हुआ और उसने उन दोनों से कहा कि तुम वरदान माग लो, तुम्हें जो चाहिए हो मांग लो। क्योंकि स्वभावत:, भगवान ने सोचा कि अंधा आंख मांगेगा, लंगड़ा पैर मांगेगा। मगर नहीं, आदमी की बात पूछो ही मत!उन्होंने लंगड़े को दर्शन दिया, पूछा कि तू मांग ले, तुझे क्या मांगना है? लंगड़े ने कहा— भगवान, उस अंधे को भी लंगडा बना दो।   फिर अंधे के सामने प्रगट हुए। अंधे ने कहा—प्रभु, उस लंगडे को अंधा बना दो।दोनों एक—दूसरे को दंड देने में उत्सुक थे।  अंधा लंगड़ा भी हो गया, और लंगड़ा अंधा भी हो गया, हालत और खराब हो गयी। शायद इसीलिए अब भगवान इतनी जल्दी दया नहीं करता और ऐसे आ— आकर प्रगट नहीं हो जाता, और कहता नहीं कि वरदान मांग लो। 

Wednesday, August 14, 2019

जैसी दृष्टि , वैसी सृष्टि

एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा भोज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीनकर राजकोष में जमा कर दी जाए। व्यापारी जब तक वहां रहा भोज का मन रह रहकर उसकी संपत्ति को हड़प लेने का करता। कुछ देर बाद व्यापारी चला गया, उसके जाने के बाद राजा को अपने राज्य के ही एक निवासी के लिए आए ऐसे विचारों के लिए बड़ा खेद होने लगा। राजा भोज ने सोचा कि मैं तो प्रजा के साथ न्यायप्रिय रहता हूं। आज मेरे मन में ऐसा कलुषित विचार क्यों आया ? उन्होंने अपने मंत्री से सारी बात बताकर समाधान पूछा मन्त्री ने कहा - इसका उत्तर देने के लिए आप मुझे कुछ समय दें। राजा मान गए। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था, वह इधर- धर के सोच-विचार में समय न खोकर सीधा व्यापारी से मैत्री गाँठने पहुंचा। व्यापारी से मित्रता करने के बाद उसने पूछा- मित्र तुम चिन्तित क्यों हो ? भारी मुनाफे वाले चन्दन का व्यापार करते हो, फिर चिंता कैसी? पारी बोला- मेरे पास उत्तम कोटि के चंदन का बड़ा भंडार जमा हो गया है। चंदन से भरी गाडियां लेकर अनेक शहरों के चक्कर लगाए पर नहीं बिक रहा है। बहुत धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान से बचने का कोई उपाय नहीं है। पारी  बातें सुनकर मंत्री ने पूछा - क्या हानि से बचने का कोई उपाय नहीं ? व्यापारी हंसकर कहने लगा - अगर राजा   ज की मृत्यु हो जाए तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चन्दन बिक सकता है। अब तो मुझे यही एक अंतिम मार्ग दिखता है। व्यापारी की इस बात से मंत्री को राजा के उस प्रश्न का उत्तर मिल चुका था जो उन्होंने व्यापारी के संदर्भ में पूछा था। मंत्री ने कहा - तुम आज से प्रतिदिन राजा का भोजन पकाने के लिए चालीस किलो चन्दन राज रसोई भेज दिया करो, पैसे उसी समय मिल जाएंगे। व्यापारी यह सुनकर बड़ा खुश हुआ। प्रतिदिन और नकद दन बिक्री से तो उसकी समस्या ही दूर हो जाने वाली थी। वह मन ही मन राजा के दीर्घायु होने की कामना करने लगा ताकि राजा की रसोई के लिए चंदन लंबे समय तक बेचता रहे। एक दिन राजा अपनी सभा में बैठे थे। वह व्यापारी दोबारा राजा के दर्शनों को वहां आया। उसे देखकर राजा के मन में विचार आया कि यह कितना आकर्षक व्यक्ति है। इसे कुछ पुरस्कारस्वरूप अवश्य दिया जाना चाहिए।  राजा ने मंत्री से कहा - यह व्यापारी पहली बार आया था तो उस दिन मेरे मन में कुछ बुरे भाव आए थे और मैंने तुमसे प्रश्न किया था। आज इसे देखकर मेरे मन के भाव बदल गए। इसे दूसरी बार देखकर मेरे मन में इतना परिवर्तन कैसे हो गया ? मन्त्री ने उत्तर देते हुए कहा - महाराज ! मैं आपके दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं। यह जब पहली बार आया था तब यह आपकी मृत्यु की कामना रखता था और अब यह आपके लंबे जीवन की कामना करता रहता है, इसलिए आपके मन में इसके प्रति दो तरह की भावनाओं ने जन्म लिया है। "जैसी भावना अपनी होती है, वैसा ही प्रतिबिम्ब दूसरे के मन पर पडने लगता है। यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है"  जब हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर रहे होते हैं तो उसके मन में उपजते भावों का उस मूल्यांकन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।  

Saturday, August 10, 2019

पागल

एक गांव के संबंध में मैंने सुना है कि वहां एक दिन एक जादूगर आ गया था और उस गांव के कुएं में उसने एक पुड़िया डाल दी थी और कहा था कि इस कुएं का पानी जो भी पीएगा, वह पागल हो जाएगा। एक ही कुआं था उस गांव में। एक कुआं और था, लेकिन वह गांव का कुआं न था, वह राजा के महल में था। सांझ होते —होते तक गांव के हर आदमी को पानी पीना पड़ा। चाहे पागलपन की कीमत पर भी पीना पड़े, लेकिन मजबूरी थी। प्यास तो बुझानी पड़ेगी, चाहे पागल ही क्यों न हो जाना पड़े। गांव के लोग अपने को कब तक रोकते, उन्होंने पानी पीया। सांझ होते —होते पूरा गांव पागल हो गया।
सम्राट बहुत खुश था, उसकी रानियां बहुत खुश थीं, महल में गीत और संगीत का आयोजन हो रहा था। उसके वजीर खुश थे कि हम बच गए, लेकिन सांझ होते —होते उन्हें पता चला कि गलती में हैं वे, क्योंकि सारा महल सांझ होते —होते गांव के पागलों ने घेर लिया। पूरा गांव हो गया था पागल। राजा के पहरेदार और सैनिक भी हो गए थे पागल। सारे गांव ने राजा के महल को घेर कर आवाज लगाई कि मालूम होता है कि राजा का दिमाग खराब हो गया है। हम ऐसे पागल राजा को सिंहासन पर बर्दाश्त नहीं कर सकते। महल के ऊपर खड़े होकर राजा ने देखा कि बचाव का अब कोई उपाय नहीं है। राजा अपने वजीर से पूछने लगा कि अब क्या होगा? हम तो सोचते थे कि भाग्यवान हैं हम कि हमारे पास अपना कुआं है। आज यह महंगा पड़ गया है।    वजीर से राजा कहने लगा, क्या होगा अब? वजीर ने कहा, अब कुछ पूछने की जरूरत नहीं है। आप भागे पीछे के द्वार से, और गांव के उस कुएं का पानी पीकर जल्दी लौट आएं। अन्यथा यह महल खतरे में है। सम्राट ने कहा, उसे कुएं का पानी! क्या तुम मुझे पागल बनाना चाहते हो? वजीर ने कहा, अब पागल बने बिना बचने का कोई उपाय नहीं है।
राजा भागा, उसकी रानियां भागी। उन्होंने जाकर उस कुएं का पानी पी लिया। उस रात उस गांव में एक बड़ा जलसा मनाया गया। सारे गांव के लोगों ने खुशी मनाई, बाजे बजाए, गीत गाए और भगवान को धन्यवाद दिया कि हमारे राजा का दिमाग ठीक हो गया है। क्योंकि राजा भी भीड़ में नाच रहा था और गालियां बक रहा था। अब राजा का दिमाग ठीक हो गया।

Thursday, August 8, 2019

ऐसा क्यों ?

एक आदमी का पूरा परिवार गुरुद्वारे जाकर गुरु की सेवा किया करता था। उस परिवार में एक लड़का जो कि दोनों पैरों से अपाहिज था, वह भी वहाँ बैठे-बैठे बहुत सेवा किया करता था। सेवा करते करते बरसों बीत गए उसका परिवार यह सोचता था कि हम सब गुरुद्वारे जा कर इतनी  सेवा रोज किया करते हैं, फिर हमारे परिवार में यह बच्चा ऐसे क्यों हुआ, इसका क्या दोष था।

एक दिन गुरु पूर्णिमा के दिन सत्संग चल रहा था। हजारों लाखों श्रद्धालुओं के बीच उस अपाहिज पुत्र के पिता ने गद्दी पर बैठे हुए गुरु से एक सवाल किया जय गुरु देव हम सब इतनी गुरुद्वारे में सेवा करते हैं कभी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचते हैं ना ही किसी का बुरा करते हैं फिर ऐसा क्या गुनाह हुआ जो हमारा बच्चा अपाहिज पैदा हुआ? फिर गुरु ने जवाब दिया वैसे तो यह बात बता नहीं सकते थे, पर इस समय तूने हजारों लाखों संगत के बीच में यह सवाल पूछा है,अब अगर मैंने तेरे बात का उत्तर नहीं दिया तो हजारो लाखो संगत का विश्वास डामाडोल हो जाएगा।

इसलिए पूछता है तो सुन। यह जो बच्चा हैं जो दोनों टांगों से बेकार है, पिछले जन्म यह एक किसान का बेटा था। रोज खेत में अपने पिता को दोपहर में भोजन ले जाया करता था। एक दिन इसकी मां ने इसे दोपहर खाना लगा कर दिया कि बेटा खाना खाकर पिता जी को  भोजन दे आ ।  मां ने खाना परोस कर थाली में रखा कि इतने में इसके किसी दोस्त ने आवाज लगाई तो यह खाना वही छोड़ कर अपने दोस्त से बात करने बाहर चला गया। इतने में एक कुत्ता घर में घुस आया और उसने थाली में मुंह डाला और रोटी खाने लगा। लडका जैसे ही घर में वापिस आया और कुत्ते को थाली में मुंह डालता हुआ देखकर पास ही में एक लोहे का बड़ा सा डंडा पड़ा हुआ था इसने यह भी नहीं सोचा कि खाना तो झूठा हो चुका है बिना सोचे समझे उस कुत्ते की दोनों टांगों पर इतनी जोर से लोहे का डंडा मारा कि वह कुत्ता अपनी जिंदगी जब तक जिंदा रहा दोनों पैरों से बेकार हो कर घसीटते घसीटते जिंदगी जिया और तड़प तड़प कर मर गया। यह उसी कुत्ते की बद्दुआ का फल है जो इस जन्म में यह दोनों टांगों से अपाहिज पैदा हुआ है।

यह सुनने के बाद उस पिता को अपने सारे सवालों का जवाब मिल गया। और वो पुनः सेवा में जुट गया

Tuesday, August 6, 2019

कृतज्ञता

एक 80 वर्षीय बुजुर्ग के हृदय का ऑपरेशन हुआ ।
बिल आया 8 लाख रुपया, बिल देखने के बाद बुजुर्ग की आँखों में आंसू आ गए। यह देखकर डॉक्टर को दया आ गई अतः उसने कहा - "रोइये मत ! मैं इसे कम कर देता हूँ।"  कृतज्ञता भरे स्वर में, आँखों में ख़ुशी के आंसू लिए, मंद - मंद मुस्कुराते हुए बुजुर्ग ने कहा - " यह बिल तो बहुत कम है, अगर 10 लाख भी होता तो मैं देने में समर्थ हूँ। आँसू तो इस लिए आये कि जिस प्रभु ने 80 वर्ष तक इस दिल को सम्भाला, उसने अभी तक कोई बिल नही भेजा जबकि आपने केवल तीन घंटे सम्भाला और 8 लाख रूपये का बिल।

Saturday, August 3, 2019

ईश्वर कहाँ है ?

एक बार किसी सन्त के पास कोई जिज्ञासु आया और उस सन्त को कहा कि महाराज तुम भगवान की बात करते हो तो मुझे दिखाओ कहाँ है तुम्हारा भगवान ? मुझे नजर क्यों नहीं आता ? सन्त ने कहा कि भइया सन्त तो अनुभव की चीज है मैं तुम्हें कैसे दिखाऊँ ? मैं अनुभव कर सकता हूँ मैं उनको देख सकता हूँ मेरे भजन से प्रसन्न होकर वो मुझे अपनी झलक दिखाते हैं पर मैं तुझे कैसे दिखाऊँ ? उस जिज्ञासु को ये सब बातें अच्छी नहीं लगी उसने हठ करते हुए सन्त को कहा कि मुझे ये सब मत बोलो ये ज्ञान की बातें मुझे नहीं सुननी। तुम दिखा सकते हो तो दिखाओ कहाँ है तुम्हारा भगवान ? सन्त ने उसे बहुत समझाया भजन की साधना की बात बताई पर उसको कुछ समझ ही नहीं आता वो बार बार कहता कि तुम मुझे अपना भगवान दिखाओ, कहाँ है तुम्हारा भगवान, मुझे दिखाओ। जब वह किसी तरह नहीं माना तो सन्त ने तुरन्त पास में पड़ी अपनी लाठी उठाई और उसके पैर पर जोर से दे मारी। जितनी जोर से लाठी पड़ी उतने ही जोर से वह दर्द से तड़प उठा। चीखने लग गया, हाय मैं मर गया, हाय मेरे चोट लग गई, बड़ी तकलीफ होती है, बड़ा दर्द होता है। जब उसने ये बातें कहीं तो सन्त ने उसको हँसते हुए पूछा कि दिखा कहाँ है तेरा दर्द ? दिखा मुझे कहाँ है ? वो रोता-रोता तड़पता-तड़पता पीड़ा में बोला अरे महाराज ! दर्द को तो महसूस किया जा सकता है, कोई दिखाया थोड़ी जा सकता है मैं दिखाऊँ कैसे कि कहाँ है मेरा दर्द। सन्त ने हंसकर कहा पागल इसी तरह से परमात्मा को दिखाया नहीं जा सकता, पर उसको देखा जा सकता है उसका दर्शन किया जा सकता है। जिस पर वो कृपा कर दें उसको उनका दर्शन हो जाता है

Friday, August 2, 2019

गुरु मिले तो बंधन छूटे

एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’।  तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’।पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया।गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?  तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था।  एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक मनुष्य ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये।
एक सेठ ने मुझे मनुष्य को कुछ पैसे देकर खरीद लिया।  अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’। तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए।  गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली, रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।