Monday, August 22, 2016

परमात्मा और पुरुष

मीरा जब वृंदावन पहुंची तो वृंदावन में जो कृष्ण का सबसे प्रमुख मंदिर था, उसका जो पुजारी था, उसने तीस वर्षों से किसी स्त्री को नहीं देखा था। वह बाहर नहीं निकलता था और स्त्रियों को मंदिर में आने की मनाही थी। द्वारपाल थे, जो स्त्रियों को रोक देते थे।

कैसी अजीब दुनिया है! भगवान कृष्ण का भक्त और कृष्ण के मंदिर में स्त्रियों को न घुसने दे! और कृष्ण का जीवन किसी पलायनवादी संन्यासी का जीवन नहीं है, मेरे संन्यासी का जीवन है! सोलह हजार स्त्रियों के बीच यह नृत्य चलता रहा भगवान कृष्ण का!

मगर यह सज्जन जो पुरोहित थे, इनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। प्रतिष्ठा का कुल कारण इतना था कि वे स्त्री को नहीं देखते थे।

हम अजीब बातों को आदर देते हैं! हम मूढूताओं को आदर देते हैं। हम रुग्णताओं को आदर देते हैं। हम विक्षिप्तताओं को आदर देते हैं। हमने कभी किसी सृजनात्मक मूल्य को आदर दिया ही नहीं। हमने यह नहीं कहा कि इस महात्मा ने एक सुंदर मूर्ति बनायी थी, कि एक सुंदर गीत रचा था, कि इसने सुंदर वीणा बजायी थी, कि बांसुरी पर आनंद का राग गाया था। नहीं, यह सब कुछ नहीं; इसने स्त्री नहीं देखी तीस साल तक। बहुत गजब का काम किया था!

मीरा आयी। मीरा तो इस तरह के व्यर्थ के आग्रहों को मानती नहीं थी। फक्कड़ थी। वह नाचती हुई वृंदावन के मंदिर में पहुंच गयी। द्वारपालों को सचेत कर दिया गया था, क्योंकि मंदिर का प्रधान बहुत घबड़ाया हुआ था कि मीरा आयी है, गांव में नाच रही है उसके गीत की खबरें आ रही हैं, उसकी मस्ती की खबरें आ रही हैं,भगवान कृष्ण की भक्त है, जरूर मंदिर आएगी, तो द्वार पर पहरेदार बढ़ा दिये थे।

नंगी तलवारें लिये खड़े थे, कि रोक देना उसे। भीतर प्रवेश करने मत देना। दीवानी है, पागल है, सुनेगी नहीं, जबरदस्ती करनी पड़े तो करना मगर मंदिर में प्रवेश नहीं करने देना।…..

मीरा नाचती गयी। द्वार पर नाचने लगी, भीड़ लग गयी। नाच ऐसा था, ऐसा रस भरा था कि मस्त हो गये द्वारपाल भी भूल ही गये कि रोकना है। तलवारें तो हाथ में रहीं मगर स्मरण न रहा तलवारों का। और मीरा नाचती हुई भीतर प्रवेश कर गयी।

पुजारी पूजा कर रहा था, मीरा को देखकर उसके हाथ से थाल छूट गया पूजा का। झनझनाकर थाल नीचे गिर पड़ा। चिल्लाया क्रोध से ऐ स्त्री, तू भीतर कैसे आयी?

बाहर निकल! मीरा ने जो उत्तर दिया, बड़ा प्यारा है।

मीरा ने कहा, मैंने तो .सुना था

🌹की एक ही पुरुष है-परमात्मा कृष्ण-और हम सब तो उसकी ही सखियां हैं, मगर आज पता चला कि दो पुरुष हैं 🌹

एक तुम भी हो। तो तुम सखी नहीं हो! तुम क्या यह शृंगार किये खड़े हो, निकलो बाहर! इस मंदिर का पुरोहित होने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। यह पूजा की थाली अच्छा हुआ तुम्हारे हाथ से गिर गयी। यह पूजा की थाली तुम्हारे हाथ में होनी नहीं चाहिए। तुम्हें अभी स्त्री दिखायी पड़ती है ?

तीस साल से स्त्री नहीं देखी तो तुम मुझे पहचान कैसे गये कि यह स्त्री है? :(

और मीरा ने कहा कि यह जो कृष्ण की मूर्ति है, इसके बगल में ही राधा की मूर्ति है—यह स्त्री नहीं है?
और अगर तुम यह कहो कि मूर्ति तो मूर्ति है, तो फिर तुम्हारे कृष्ण की मूर्ति भी बस मूर्ति है, क्यों मूर्खता कर रहे हो?

किसलिए यह पूजा का थाल और यह अर्चना और यह धूप-दीप और यह सब उपद्रव, यह यह सब आडंबर?

और अगरभगवान कृष्ण की मूर्ति मूर्ति नहीं है, तो फिर यह राधा?
राधा पुरुष है ?

तो मेरे आने में क्या अड़चन हो गयी?

मैं सम्हाल लूंगी…..अब इस मंदिर को, तुम रास्ते पर लगो!

मीरा ने ठीक कहा।
जीवन को अगर कोई पलायन करेगा तो परिणाम बुरे होंगे। पराङ्मुख मत होना। जीओ जीवन को, क्योंकि जीने से ही मुक्ति का अपने- आप द्वार खुलता है।

Contributed by
Mrs Seema ji

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