Saturday, March 12, 2016

मेरे ठाकुर जी

एक सेठजी थे, उनके घर उनके गुरूजी आये जो उच्चकोटि के संत थे।

सेठजी उन्हें अपना घर दिखाने लगा, संत महाराज जी ने कहा:- ये गाडी किसकी है?

सेठजी बोले:- ठाकुर जी की।

गुरूजी ने पुछा:- ये किसके बच्चे हैं?

सेठजी बोले:- ठाकुर जी के।

गुरुजी बोले:- ये सब लोग कौन है?

सेठजी बोले:- ठाकुर जी के।

जब सारा घर देख लिया तो ऊपर गए जिधर मंदिर था।

महाराज जी ने कहा:- ये मंदिर किसका है?

सेठ जी बोले:- ठाकुर जी का।

गुरुजी ने पुछा:- और सोने-चाँदी के बर्तन किसके है?

सेठजी:- ठाकुर जी के।

गुरुजी:- और वस्त्र किसके है?

सेठजी:- ठाकुर जी के।

और सबसे आखिर में संत ने ठाकुरजी की और संकेत करते हुआ पूछा:- ये किसके है?

सेठजी ने बड़े ही भावपूर्वक बोला:- गुरुजी ये तो केवल मेरे है, मेरे हैं, केवल मेरे हैं….

अर्पण मेरे हैं सदा तुममें जीवन-प्राण।
तुम्हीं एक आधार हो, तुम्हीं परम कल्याण॥

तुम ही मेरी परम गति, प्रीति बिना परिमाण।
मिलो तुरत, मेरा करो विरह-कष्ट से त्राण॥

Contributed by
Sh Sanjeev ji

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