Tuesday, March 30, 2010

Panch Teerath

Kashi, is the amongst the oldest city of the world. It is the abode of 330 million gods and goddesses.As per mytholology, this city stands on the trident(trishul) of Lord Shiva. Just to meet Lord Shiva, the river Ganga changes its direction of flow for this city only. The spiritual life of kashi present around the ghaats(banks) of river Ganga. There are nearly 84 ghaats in varanasi. But to begin the spiritual journey, 5 ghaats are considered as most sacred.It is a ritual to bath in these ghaat first. This ritual is called “Panch-teerath” yaatra.

Assi Ghaat is the southern most bank of the river Ganga from where this yaatra commences. The order of yaatra is as follows

1) Assi ghaat

2) Dashashwamedh ghaat

3) Adi-keshav ghaat

4) Panch ganga ghaat

5) Manikarnika ghaat

But in modern days, adi-keshav ghaat is replaced by Kedar ghaat in yaatra. Bathing in these 5 ghaats bring salvation. This journey is conducted in a boat. Only after bathing in these sacred ghaat, one should visit the Lord Kaashi Vishwanath temple, the most sacred jyotirlinga form of Lord Shiva. Even amongst the above 5, the Dashashwamedh ghaat, Panch ganga ghaat and Manikarnika ghaat are the most sacred one constituting the “tri-teerath” yaatra.




This picture was clicked when I was doing Panch-teerath yaatra

Saturday, March 20, 2010

काशी यात्रा का महत्व

काशी भगवान् शिव की नगरी है।इस का उल्लेख पुरानो में वर्णित है। यह सप्त पवित्रतम क्षेत्रों में से एक है जो कि मोक्षदायक है। ऐसी मान्यता है कि प्रलय काल के दौरान सिर्फ काशी ही ऐसा क्षेत्र है जो उस के प्रभाव से बच पाया था। काशी रहस्य के अनुसार भगवान् शिव ने कहा था कि यह मेरा सब से प्रिये निवास स्थान है। यहाँ का हर कण शिवमय है। उन्हों ने इस स्थान का नाम आनंदवन दिया था। यह क्षेत्र भगवान् शिव को बहुत ही प्रमोददायक है। शिव् पुराण के अनुसार इश्वार कि शक्तियां किसी भी क्षण और किसी भी स्थिति में इस स्थान कि नहीं त्यागती। इसी लिए काशी को अविमुक्त भी कहा गया है। काशी ही एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर यम का भय नहीं होता। काशी में मृत्यु विशेष रूप से मोक्ष्दाय्नी है । शिव पुराण में स्पष्ट रूप से लिखा है कि काशी में मृत्यु के लिए न तो ज्ञान क़ी अपेक्षा है और न ही भक्ति क, न कर्म की आवश्यकता है और न ही दान की,न संस्कृति की अपेक्षा है और न ही धर्म की, यहाँ तक की पूजन की भी अपेक्षा नहीं है। ठीक इसी तरह यदि इस पावन और पवित्र नगरी में यदि पाप हो जाए तो वे अत्यंत कठिन यम की यातना भोगनी पड़ती है। गंगा नदी के तट पर स्थित इस शहर की पवित्रता इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि केवल यहीं पर गंगा नदी जो कि हिमालय से उत्तर दिशा से दक्षिण कि तरफ (अपने से ) बहती है, अपना मार्ग बदल कर दक्षिण दिशा से काशी में प्रवेश करती है और उत्तर दिशा कि तरफ से बहार निकल जाती है। इस विचित्र मार्ग परिवर्तन इस बात का प्रतिक है कि जिस प्रकार शिवलिंग में जल हमेशा उत्तर दिशा कि तरफ ही गिरता है उसी तरह इस शिवमय नगरी में गंगा अपना मार्ग परिवर्तन कर के उत्तर कि तरफ से नगर से बाहर निकल जाती है.अपनी यात्रा के दौरान गंगा काशी में दो नदियों से संगम करती है-वरुणा और अस्सी। इसी कारण काशी अब वाराणसी नाम से भी प्रसिद्धहै। शायद यही कारण है कि काशी यात्रा ने मेरी ज़िंदगी बदल दी है.